Friday 21 June 2013

रात का दर्द

निशां की पीड़ा तुम क्या जानो ..........
कालिमा कह उसको पहचानो ...............
सौन्दर्य बोध वो है उसका सच ...........
आलोक को दुश्मन उसका मानो............
कितनी आहत साँझ ढले वो ...........
जब उन्मुक्त नशीली होती है ...............
सूरज को है जीत कर आती ..............
दीपक से चीर तार तार होती है ............
निपट तमस आँखों के भीतर ..........
सुन्दर सपने रात से लाते है .............
कितनी किलकारियों के सृजन ........
ढलते पहरों की गोद में पाते है ..............
फिर क्यों जला उठते हो लट्टू .........
और रात का करते हो अपमान ..........
जी लेने दो चांदनी चकोर को ..............
रजनी का भी कुछ तो है मान ...................ये रात की विकलता है की जब वह अपने सौंदर्य बोध के साथ हमारे सामने आती है तो हम उसके प्रेम का अपमान करके बिजली जला देते है जबकि वो न जाने क्या क्या हमको दे जाती है .........तो रात को प्रेम से देखिये ............शुभ रात्रि

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