Monday 28 September 2015

माँ के नाम पर राजनीति

माँ पर भी राजनीति!!!!!!!!!!!!!!
देश का प्रधान मंत्री अपनी माँ की बार करते करते अमेरिका के एक कार्यक्रम में रोने लगते है और उनको अपनी माँ के वो कठिन समय याद आते है जब उन्होंने अपने ६ बच्चों को पाला पोसा लेकिन भारत की एक अवशेष पार्टी के शेष लोगो ने उसको भी राजनीति का मुद्दा बना दिया | पर इस में उनका कोई दोष भी नहीं है जिस पार्टी ने भारत माँ के दर्द को ना समझा हो और अपने सुख के लिए उसे १९४७ में दो भागो में बाँट दिया हो उस पार्टी के लोगो को तो इस देश में रहने वालो करोडो माँ एक कीड़े मकोड़े से ज्यादा क्या लगती होंगी | हो सकता है आपको ये बात अतिश्योक्ति लगे पर मुस्लिम धर्म के पैगम्बर मोह्हमद साहेब के अनुसार अगर जन्नत कही है तो वो माँ के कदमो में है और जो जन्नत से दूर होगा उसके आँखों में आंसू तो आएंगे ही वो बात और है कि जीवन को नरक बनाने वालो को ये बात नहीं समझ में आएगी | मेरी ऐसे बुद्धिजीवियों से अनुरोध है कि आप हिटलर की आत्मकथा मिनकाफ निम्फ पढ़ डालिये आपको पता चल जायेगा की दुनिया को अपनी ताकत का एहसास करने वाला हिटलर माँ के लिए कितना तडफता था | क्या वो भी नाटक था पर आप तो हिटलर भी नहीं है क्योकि आप ने नता जी सुभास चन्द्र बोस तक के जीवन को बर्बाद कर डाला क्योकि वो सही अर्थो में माँ को आजाद करना चाहते थे | एक बात और जोर शोर से कही गयी कि अगर देश के प्रधानमंत्री को अपनी माँ की इतनी चिंता और दर्द है तो क्यों नहीं वो उनको अपने पास रखते है ? ये सब उनका नाटक है | ऐसे लोगो को संस्कृति का तनिक भी भान नहीं है उनके लिए लड़की का  मतलब सिर्फ एक गोश्त है इसी लिए इस देश में लड़की का सम्मान नहीं हो पा रहा है | ये सच है कि लड़की की शादी होने पर विदा करने पर हर घर में आंसू गिरते है पर जब वो लड़की किसी को अपने पति के रूप में वरण करती है तो वो सिर्फ शारीरिक मिलान तक सिमित नहीं रह जाती है बल्कि वो आत्मा से उस मिलान को स्वीकार करती है | हो सकता आज के सन्दर्भ में ये बात गलत लगे पर आज से ४० -५० साल पहले की शादियों में लड़की एक बार जिसके साथ बांध गयी तो बांध गयी अगर वो विधवा भी हो गयी तो उस घर द्योढ़ी को नहीं छोड़ना चाहती जिस पर वो ब्याह कर लायी गयी थी | आज भी कितनी माए अपने बच्चो के साथ दूसरे शहर में जाकर रहना स्वीकार नहीं करती क्योकि वो अपने पति के साथ या उनकी यादो के साथ जिन चाहती है और चाहती है कि जब उनकी जान निकले तो वो घर उनके पति का हो | संस्कृति की इसी मिसाल के कारण इस देश के प्रधान मंत्री की माँ हो या फिर किसी भारतीय की बूढी माँ वो अपने घर की चुखात नहीं छोड़ना चाहती और इसी लिए नरेन्द्र जी की माँ भी उनके साथ नहीं रहती |मुझे देश के पूर्व राष्ट्रपति शंकर डायल शर्मा जी उत्तर प्रदश केश्रावस्ती का दौरा याद है जब उन्होंने कहा था कि ये सच है कि आज गौतम बुद्ध नहीं है पर हवा आज भी वही है जिसने उनको स्पर्श किया था और मैं आज भी उनको महसूस कर रहा हूँ | उनकी इसी बात को इस देश के वो माँ भी मानती है जो किसी की पत्नी भी है वो अपने पति की मृत्यु के बाद भी उनको उन हवाओं में महसूस करती है पर इस दिव्यता को अनुभव करना इतना आसान नहीं है | अगर आपको पता हो तो देश के प्रसिद्द वैज्ञानिक माशेलकर की माँ भी लोगोके घर बर्तन और कपडे सी कर उनको पालती थी | एक माँ अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर गुजरती है फिर चाहे वो बच्चा एक जानवर का हो या आदमी का | क्या हम सब को माँ के नाम पर राजनीति करनी चाहिए | पर आप ने तो कभी इस देश को माँ नहीं समझा तो एक हाड मांस की माँ का नाम लेकर अगर देश का प्रधान मंत्री रोता दिखाई दे तो आपको सिर्फ ये सब एक ढोंग या मजाक लगेगा | कहिर आपका दोष भी नहीं है गोस्वामी तुलसी दास कह भी गयी ........जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तेहि तैसी ...कभी तो हाड मांस से ऊपर माँ को सिर्फ माँ रहने दीजिये फिर वो चाहे आपकी हो या प्रधानमंत्री की | माँ कहने का सम्मान पाने  के बाद भी इनके शासन में गंगा मैली हो गयी इस लिए इतनी मैली राजनीति !!!!!!!!!!!!! आइये थोड़ी शर्म इनको दे दे ताकि माँ का सम्मान जिन्दा रहे राजनीति से इतर.....डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन