Sunday 4 June 2023

हिंदू और हिन्दू धर्म के लोगो की जागरूकता : एक अवलोकन

 


 हिंदू और हिन्दू धर्म के लोगो की जागरूकता : एक अवलोकन 


विश्व में संभवतः भारत एक ऐसा देश है जिसने अपनी मूल संस्कृति के अलावा भी अनेको संस्कृतियों को अपने यहाँ समाहित किया है पर इसका प्रभाव भी मूल संस्कृति पर पड़ा है | भारत में मंदिर की स्थापना कब से हुई ये एक विवाद का विषय हो सकता है पर सिकंदर( ३२३ इसवी पूर्व ) के आक्रमण के बाद से भारत में मंदिर दिखाई देने लगे | मंदिर को उपासना का केंद्र मान कर स्थापित किया जाता रहा और धीरे धीरे धर्म की सबसे महत्वपूर्ण इकाई के रूप में भारत में मंदिरों का प्रसार होता चल गया | सनातन तो बाद में फारसी की त्रुटि (स को ह और च को स कहने की परम्परा ) के करण हिन्दू कहलाने लगा | अपनी श्रद्धा को भगवान् के समक्ष रखने में अपनी सम्पत्ति का कुछ हिस्सा जिसमे जमीन , सोना, चांदी और धन था , को भगवान् को समर्पित करने लगा और यही समर्पित धन मंदिर के भगवान् का होने के कारण धीरे धीरे एक अपार सम्पत्ति के रूप में इकठ्ठा होने लगी और इसने भी विदेशी अक्रान्ताओ को भारत में आने के लिए प्रेरित किया जिसमे महमूद गजनवी के १७ बार आक्रमण और सोम नाथ मंदिर की लूट प्रमुख है| इतिहास भरा पड़ा है कि भारत में अनगिनत मंदिर तोड़े गए और लूटे गए और ये सिलसिला भारत की स्वतंत्रता तक चलता रहा | १९९१ की जनगणना के अनुसार भारत में २३९५००० मंदिर थे जिनमे से हजारो में अकूत पैसा था | 8वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने पद्मनाम मंदिर को बनाया था| सबसे अहम बात ये है कि इसका ज़िक्र 9वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है| 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को 'पद्मनाभ दास' बताया, जिसका मतलब 'प्रभु का दास' होता है| इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया| इस वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दिया| केरल के तिरुवनन्तपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर काफ़ी प्रसिद्ध है| यह मंदिर पूरी तरह से भगवान विष्णु को समर्पित है| यह भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में से एक है| देश-विदेश के कई श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं| इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है, शेषनाग पर शयन मुद्रा में भगवान विराजमान है | यह मंदिर काफ़ी रहस्यों से भरा है| यह विश्व का सबसे अमीर मंदिर है| इस मंदिर में करीब 1,32,000 करोड़ की मूल्यवान संपत्ति है, जो स्विटज़रलैंड की संपत्ति के बराबर है| ऐसे ही मंदिरों से भरा पड़ा है भारत देश | स्वतंत्रता के बाद सबसे पहले सरकार ने जो काम किया वो था देश के मंदिरों के लिए मिलने वाले धन के लिए कानून बनाना | और इसी लिए आज ये जानना जरुरी है कि इस कानून से देश के मंदिरों और और उनको मानने वालो को कितना फायदा हुआ |


 1 9 51 का धार्मिक और चैरिटेबल एंडोवमेंट अधिनियम-


राज्य सरकारों और राजनेताओं को हजारों हिंदू मंदिरों को अपने अधिकार में लेने और उन्हें और उनके गुणों पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति देता है। दावा किया जाता है कि वे मंदिर की संपत्तियों और परि संपत्तियों को बेच सकते हैं और किसी भी तरह से पैसे का उपयोग कर सकते हैं। किसी भी मंदिर प्राधिकरण द्वारा एक भी आरोप नहीं इस कानून पर लगाया गया है और न ही किसी हिन्दू समूह और व्यक्ति ने इस तरफ गंभीरता से कार्य किया है कि देश में जब मंदिर सिर्फ और सिर्फ हिन्दू से ही संदर्भित किये जाते है और संविधान का अनुच्छेद १४ समनाता का अधिकार देता है तो जैसे अन्य धार्मिक स्थानों को सरकार सारी सुविधाए और अनुदान दे रही है वैसे ही मंदिरों के लिए भी होना चाहिए और ये तथ्य भी सोचा जाना चाहिए कि क्या भारत में आज भी सम्पूर्ण देश की जनता का भरण पोषण या कोई अन्य विकास का कार्य मंदिर की संपदा ही कर रही है और यदि किसी भी प्रतिशत में ऐसा है तो उसके लिए एक खुली स्वीकारोक्ति होनी चाहिए| क्योकि देश के लोग जानते ही नहीं है कि देश में मंदिरों का पैसा कहाँ है और किसी काम में लगाया जा रहा है | भारत में धार्मिक उन्माद को लेकर कोई भी व्यक्ति खुल का बोलने से कतराता है और इसी लिए अमेरिका के एक व्यक्ति ने पहले देश के मंदिरों का अध्ययन किया और फिर वह लौट कर जाने के बाद भारत के इस अनोखे कानून के बारे में लिखता है जिसके तथ्य शोध और विमर्श का विषय हो सकते है | एक विदेशी लेखक स्टीफन नैप ने एक पुस्तक (अपराध के खिलाफ भारत और प्राचीन वैदिक परंपरा की रक्षा करने की आवश्यकता) संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रकाशित किया है जो आज देश के सामने उनकी भाषा हिंदी में रखी जानी चाहिए ताकि देश का सामान्य जनमानस इससे परिचित हो सके|


 सदियों से सैकड़ों मंदिरों को भक्त शासकों द्वारा भारत में बनाया गया है और भक्तों द्वारा दिए गए दान (अन्य) लोगों के लाभ के लिए उपयोग किए गए हैं। यदि वर्तमान में, एकत्रित धन का दुरुपयोग किया गया है (और उस शब्द को परिभाषित करने की आवश्यकता है क्योकि ये पैसे के दुरूपयोग को ज्यादा परिभाषित करता है क्योकि मंदिर का पैसा सिर्फ मंदिर और हिन्दू के लिए प्रयोग किया जा रहा हो ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है ऐसे में हिन्दू के अर्थ में ये सिर्फ दुरूपयोग ही है ), भक्तों के विरोध में है | इस अधिनियम के प्रभाव के बारे में कुछ उदहारण से ज्यादा स्पष्टता लायी जा सकती है |


उदाहरण के लिए, ऐसा लगता है कि एक मंदिर सशक्तिकरण अधिनियम के तहत आंध्र प्रदेश में लगभग 43,000 मंदिर सरकारी नियंत्रण में आये हैं और इन मंदिरों के राजस्व का केवल 18 प्रतिशत मंदिर प्रयोजनों के लिए वापस कर दिया गया है, शेष 82 प्रतिशत सरकार अपने प्रोजेक्ट एवं अन्य कार्य के लिए प्रयोग कर रही है |


जिस तिरुमाला की यात्रा के लिए एक हिन्दू हर परेशानी सहन कर के दर्शन के लिए पहुँचता है वो भी इस अधिनियम से अछूता नहीं है | विश्व प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति मंदिर भी इस अधिनियम के आगे विवश है। नेप के अनुसार, मंदिर हर साल 3,100 करोड़ रुपये से अधिक एकत्र करता है और राज्य सरकार ने इस आरोप से इनकार नहीं किया है कि इनमें से 85 प्रतिशत राज्य निकाय में स्थानांतरित कर दिया गया है, जिसमे से ज्यादातर धन का उपयोग उन कार्यो के लिए किया जाता है जो हिन्दू या हिंदी धर्म से बिलकुल सम्बंधित नहीं है |


सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि क्या भारत में भक्त इसी लिए चढवा चढाते है कि सरकार उसका सबसे बाद स्वयं वह चढ़वा हासिल करके अपने अनुसार प्रयोग कर सके | क्या यही कारण है कि भक्त मंदिरों को अपनी भेंट करते हैं?


यदि एक अन्य प्रकरण में हम कर्णाटक के मंदिरों की स्थिति का मूल्याँकन करे तो ऐसा लगता है कि कर्नाटक में, लगभग दो लाख मंदिरों से 79 करोड़ रुपये एकत्र किए गए थे और उससे, मंदिरों को उनके रखरखाव के लिए सात करोड़ रुपये मिले, यहाँ ये भी विचारणीय है कि भारत में सभी धर्मो से इतर एक धर्म निरपेक्ष व्यवस्था है और सरकार दूसरे धर्मो की सहायता करने में लगी है |मुस्लिम मदरसा और हज सब्सिडी को 59 करोड़ रुपये और चर्चों को 13 करोड़ रुपये दिए गए। इस अर्थ में सरकार का बहुत उदार प्रतीत होती है पर क्या हिन्दू मंदिर के पैसे को कभी हिन्दुओ के उत्थान के लिए भी होना चाहिए यही एक विमर्श का विषय है |


इस तरह के कार्य से क्या होगा इस पर इस वजह से, नैप लिखते हैं, दो लाख मंदिरों में से 25 प्रतिशत या कर्नाटक में लगभग 50,000 मंदिर संसाधनों की कमी के लिए बंद हो जाएंगे, और उन्होंने आगे कहा: सरकार ऐसा इस लिए कर पा रही है क्योकि भारत से देश में मंदिर के भक्त अपने ही धन के लिए खड़े ही नहीं होना चाहते है और इसी कारण इस अधिनियम को बेरोक टोक जारी रखा गया है |


विविधता वाले देश भारत में धन धान्य से परिपूर्ण मंदिर संभवतः दक्षिण भारत में ही ज्यादा है इसी लिए नेप केरल को संदर्भित करता है, जहां वह कहते हैं, कि गुरुवायूर मंदिर से धन से 45 हिंदू मंदिरों में सुधार से इनकार करके उस मंदिर के पैसे को अन्य सरकारी परियोजनाओं में बदल दिया जाता है। अयप्पा मंदिर से संबंधित भूमि पर चर्च ने धीरे धीरे अपने पैर पसारने शुरू कर दिए है और चर्च के अतिक्रमण को शबरीमला के पास हजारों एकड़ में चलने वाले वन भूमि के विशाल क्षेत्रों पर आसानी से देखा जा सकता है पर केरल की सरकार की सोच हिंदूवादी न होने के कारण मंदिर संक्रमण के काल से गुजर रहे है हैं।|


आरोप लगाया जाता है कि केरल की कम्युनिस्ट राज्य सरकार त्रावणकोर और कोचीन स्वायत्त देवस्ववम बोर्ड (टीसीडीबी) को तोड़ने और 1,800 हिंदू मंदिरों के सीमित स्वतंत्र प्राधिकरण को लेने के लिए एक अध्यादेश पारित करना चाहता है। यदि लेखक जो कहता है वह सच है, यहां तक कि महाराष्ट्र सरकार राज्य में करीब 450,000 मंदिर लेना चाहती है जो राज्यों को दिवालिया परिस्थितियों को सही करने के लिए भारी मात्रा में राजस्व प्रदान करेगी।


उपरिलिखित तथ्यों से इतर नेप कहते हैं कि उड़ीसा में, राज्य सरकार जगन्नाथ मंदिर से 70,000 एकड़ की एंडॉवमेंट भूमि बेचने का इरादा रखती है, जिसकी आय मंदिर संपत्तियों के अपने स्वयं के प्रबंधन के द्वारा लाई गई एक बड़ी वित्तीय संकट को हल करेगी।


नेप कहते हैं: ऐसी घटनाएं इतनी लगातार होती रहती है कि यदि दूसरे किसी भी धर्म का की व्यक्ति उसके धार्मिक स्थान को कोई भी क्षति हो जाए तो सेकंड में पूरा विश्व जान लेता है कि भारत में क्या हो रहा है और भारत में तथाकथित लोगो का सांस लेना मुश्किल हो जाता है पर हिन्दुओ के ही मूल देश भारत में चुपचाप हिदुओं के साथ क्या हो रहा है ये कोई जान ही नहीं पाता है और ऐसा इस लिए होता है क्योकि भारतीय मीडिया, विशेष रूप से अंग्रेजी टेलीविजन और प्रेस अक्सर उनके दृष्टिकोण हिंदू विरोधी होते हैं, और इस प्रकार, वो ऐसी हिन्दू खबरों को अधिक कवरेज देने के इच्छुक नहीं हैं, और निश्चित रूप से कोई सहानुभूति नहीं है कुछ भी जो हिंदू समुदाय को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, हिंदू समुदाय के की ही भावना के विरुद्ध काम करने वाली सरकार के कार्यो के प्रति किसी का ध्यान ही आकर्षित नहीं हो पाता है |


नेप स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड पर है। यदि उनके द्वारा उत्पादित तथ्य गलत हैं, तो सरकार उसका कार्यवाही कर सकती है|यह काफी संभव है कि कुछ व्यक्तियों ने आकर्षक कमाई से निपटने के लिए मंदिर स्थापित किए हों। लेकिन, निश्चित रूप से, सरकारों का कोई भी व्यवसाय नहीं है? , सरकार निश्चित रूप से मंदिर समितियों को देखने के लिए स्थानीय समितियों की नियुक्ति कर सकती है ताकि मंदिरों के धन को जनता के लिए काफी अच्छी तरह से उपयोग की जा सके?


नैप कहते हैं: कहीं भी स्वतंत्र, लोकतांत्रिक दुनिया में धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन, गठबंधन और सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है, इस प्रकार देश के लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता को अस्वीकार कर दिया जाता है।और भारत में ऐसा किया जाना निश्चित ही एक आश्चर्य जनक तथ्य है |


लेकिन यह भारत में हो रहा है।सरकारी अधिकारियों ने हिंदू मंदिरों पर नियंत्रण लिया है क्योंकि वे उनमें धन पाते है , वे हिंदुओं की उदासीनता को पहचानते हैं, वे असीमित धैर्य और हिंदुओं की सहिष्णुता से अवगत हैं, वे(सरकार) यह भी जानते हैं कि हिन्दू ज्यादातर अपने कामो में ही व्यस्त रहते है उनके पास आन्दोलन , सड़कों को प्रदर्शित करने, संपत्ति को नष्ट करने, धमकी देने, लूट, नुकसान और / या मारने के लिए कोई समय नहीं होता है वो शांतिपूर्वक भी कोई प्रदर्शन करने में कम ही विश्वास रखते है |


नेप एक बात बहुत ही अच्छी कहते है कि ज्यादातर हिन्दू चुचाप बैठ का अपनी संस्कृति को मरता हुआ देख रहे है ।जबकि उन्हें अपने विचारों को ज़ोरदार और स्पष्ट व्यक्त करने की आवश्यकता है। 


नेप स्वयं नहीं जानते कि उनको ( हिन्दू ) को ऐसा करना चाहिए कि नहीं पर यदि वो ऐसा करते है तो , वे कम्युनिस्टों के रूप में शापित हो जायेंगे ( ये महत्वपूर्ण है कि नेप कम्युनिस्ट को विरोध करने वाले एक योधा मनाता है पर हिन्दू के लिए ऐसी धारणा वो नहीं रखता है )। लेकिन, ऐसा समय आ गया है है जब सभी तथ्यों पर काम करने के लिए कहा जाए ताकि जनता जान सके कि उसके पीछे क्या हो रहा है। 


नेप का मानना है कि पीटर( हिन्दू) को लूट कर पॉल( अन्य धर्म के लोग ) को भुगतान करना धर्मनिरपेक्षता नहीं है। और किसी भी नाम के तहत मंदिर लूटपाट के लिए नहीं हैं। और ऐसा करने वाला गाज़ी काफी लम्बे समय पहले मर चुका है|


आज इस लेख को आपके लिए हिंदी में अपनी भाषा में लिखने का सिर्फ एक ही मतलब है कि इस देश में जो भी विधि है विधान है उसके लिए जागृत होना जरुरी है| सोशल मीडिया पर सिर्फ राजनीति के दृष्टिकोण से सब देखने से अपना ही धर्म ही प्रभावित हो सकता है और किसी भी धर्म के लोगो को अपनी बात रखने उसके लिए शांति पूर्वक समूह बनाने के लिए भारतीय संविधान ही अधिकृत करता है और ये हमारा मूल अधिकार है | कितने आश्चर्य की बात है कि एक विदेशी नेप भारत आकर भारत के मूल धर्म हिन्दू और उसके धार्मिक स्थान मंदिरों के पीछे के तथ्यों को समझ गया पर हम सिर्फ आपमें लड़ते हुए आज भी धर्म से ज्यादा व्यक्तिगत सोचा सुख उन्नति के लिए जी रहे है पर इन सब में धर्म और संस्कृति किस विनाश की तरफ बढ़ रही है उसके लिए सोचते ही नहीं है | नेप ही नहीं मैं भी सरकार से प्रार्थना करता हूँ कि यदि नेप की बाते गलत है तो उसका खंडन किया जाए और यदि सही है तो उसकी इन बातो को गंभीरता से लेते हुए देश के हिन्दू धर्म के मानने वालो को एक पारदर्शी व्यवस्था के अंतर्गत बताया जाये कि हमारे धन जो मंदिरों में चढ़ाये उसका उसी धर्म के उत्थान के लिए कितना उपयोग किया जाता है उस धर्म के गरीब लोगो के लिए उसका क्या उपयोग होता है शिक्षा के लिए क्या उपयोग होता है और जो मंदिर उपेक्षित पड़े है उनके निर्माण में इस अधिनियम के अंतर्गत जो पैसा मिलता है, क्या उपयोग होता है | क्योकि देश के हर हिन्दू को भी संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है और हमको इसको समझना होगा |


डॉ आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन

विश्व पर्यावरण दिवस :इसके होने का सच


 विश्व पर्यावरण दिवस :इसके होने का सच 

डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन 

      जिस देश में जल देवता की पूजा होती रही है, वायु देवता है और यही नहीं पृथ्वी को मां का दर्जा प्राप्त है उस देश में यदि वायु, जल, और  पृथ्वी सभी का क्षरण हो रहा है और उसके कारण लोगों के जीवन अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है तो एक बात तो स्पष्ट है कि लोग स्वयं अपने देश के मूल धर्म और संस्कृति से बहुत दूर चले गए हैं या फिर मूल धर्म और संस्कृति के बीच में ऐसे बहुत से लोग आ गए हैं जो उस संस्कृति के इन बातों को मानने के लिए तैयार नहीं है कि  वायु को देवता मानकर उनका सम्मान किया जाना चाहिए|  पृथ्वी को मां मानकर उनके लिए जीना चाहिए और जल को देवता मानकर ही उसका उपयोग किया जाना चाहिए|   इसीलिए जागरण या जागरूकता जैसे शब्द की उपादेयता से इनकार नहीं किया जा सकता है जिसे भारत सहित पूरे विश्व में जब महसूस किया गया तो 5 जून 1974 से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के माध्यम से लोगों को संवेदनशील करने जागरूक करने का प्रयास किया जाना ही इस दिवस का मूल उद्देश्य है| 

    वैसे तो संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण के चलाए जाने वाले ब्लॉग पर विश्व में मनाए जाने वाले विभिन्न दिवसों  की प्रासंगिकता पर प्रश्न पूछे गए हैं और उसके जवाब में भी यह बताया गया है कि आज की दौड़ती भागती जिंदगी में जब लोग जीवन के अर्थ  में उन तत्वों को भूल रहे हैं जिसके कारण ही वास्तविक अस्तित्व है तो उसकी आवश्यकता को बताने के लिए और जागरूकता फैलाने के लिए ही विश्व में अनेकों दिवस मनाए जाने का प्रचलन बढ़ा है ताकि उस विशेष दिन लोगों को उस तत्व के प्रति संवेदनशील बनाया जाए और यह अपेक्षा की जाए कि वह आने वाले समय में पूरे वर्ष उस एक  दिन के सापेक्ष कार्य करेंगे और उस क्षरण को रोकेंगे जिससे उनके अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न हो गया है| 

      वर्ष 2021 में विश्व पर्यावरण दिवस की थीम पुनर्कल्पना, पुनरुद्भव  और पुनर्स्थापन  रखा गया है और इस बार विश्व में पाकिस्तान वह देश है जो 2021 के पर्यावरण दिवस की अगुवाई कर रहा है|  हर वर्ष किसी एक देश को चुना जाता है जो पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम में विश्व के देशो की अगुवाई करें|  लेकिन इस तथ्य से किसी को भी इंकार नहीं करना चाहिए कि विश्व में भौतिक संस्कृति और व्यक्तिगत सुख की लालसा में दौड़ने वाले व्यक्ति ने प्रत्येक 3 सेकंड में एक  फुटबॉल पिच के बराबर विश्व में जंगल का सर्वनाश किया है और कर रहा है |  करीब एक शताब्दी में 50% कोरल रीफ(प्रवाल भित्ति को प्रवाल शैल-श्रेणियाँ भी कहते हैं जो समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट (CaCo3) से निर्मित होती हैं। वस्तुतः ये इन छोटे जीवों की बस्तियाँ होती हैं। ... इनकी ऊपरी सतह पर प्रवाल निवास पलते और बढ़ते रहते हैं।) नष्ट हो चुका है और जो 50% प्रवाल भित्ति  बचाए है उसके बारे में यदि हम सचेत नहीं हुए तो 2050 तक करीब 90% का क्षरण हो जाएगा और यह भी तब होगा जब पृथ्वी के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक ही नियंत्रित किया जाएगा|  यही कारण है कि विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रत्येक व्यक्ति को सिर्फ सुबह से शाम तक अपनी रोटी के जुगाड़ के साथ साथ यह  भी जानना चाहिए कि पूरे विश्व में पृथ्वी पर ऐसी कौन सी घटनाएं हो रही है जो आने वाले समय में जीवन शब्द को ही गायब कर देंगी | 

    प्रत्येक वर्ष करीब 4.7 लाख हैक्टेयर जंगल को विश्व में नष्ट किया जा रहा है जो डेनमार्क के क्षेत्रफल से भी ज्यादा है|  इसके अतिरिक्त 80% पानी को बिना  रिसाइकिल किए हुए नदी और समुद्र में जाने दिया जा रहा है | दलदली भूमि का एक अपना महत्व है जो पिछले 300 साल में करीब 87% तक खत्म हो चुकी है यह कार्बन को सूखने का एक उत्तम कारक है|  इसी दलदली क्षेत्रों के किनारे पर पीटलैंड के बीच क्षेत्र पाए जाते हैं पूरे विश्व की जमीन का 3% हिस्सा है और यह जमीनी कार्बन का करीब 30% अपने अंदर समाहित करता है जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक है| 

   आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का मतलब ज्यादातर लोगों ने वृक्षारोपण लगा लिया है जबकि उन्हें सबसे पहले इस बात को आत्मसात करना होगा कि पर्यावरण का मतलब है कि व्यक्ति का जिस वातावरण में रह रहा है उसके साथ संबंध और यहां पर  वातावरण का तात्पर्य वह वायुमंडल है जिसमें व्यक्ति रह रहा है लेकिन जब पारिस्थितिकी तंत्र की बात होती है तो इस बात को प्रत्येक व्यक्ति को समझना होगा कि उसके अंतर्गत जानवर भी आते हैं, पौधे भी आते हैं और मनुष्य भी आता है और इन सभी के संबंधों के समुच्चय  का नाम पारिस्थितिकी तंत्र है लेकिन जिस तरह से मनुष्य ने पेड़ पौधों का दोहन कर के जंगलों को समाप्त किया है, ना जाने कितनी जानवरों की, जंतुओं की प्रजातियां विलुप्त हुई हैं|  उनका आंकड़ा ही स्पष्ट करता है कि वर्तमान में पारिस्थितिकी तंत्र बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हो चुका है और मानव ना चाहते हुए उस दलदल में स्वयं खड़ा हो गया है जहां एक समय बाद वह स्वयं अपने जीवन को नहीं समझ पाएगा|  वह अपने जीवन को इस पृथ्वी पर कैसे बनाए रखें इसके लिए विवश होगा और उसकी इस व्यवस्था को कटते हुए जंगलों के कारण जानवरों का शहरों की तरफ पलायन और शहरों में मानव द्वारा उन जानवरों को अपने भोजन में शामिल कर लिए जाने का सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कोरोना जैसे विषाणु से फैली महामारी में अनुभव किया जा सकता है|  यही नहीं कुछ दिन पूर्व ही चीन ने इस बात की भी पुष्टि की है कि बर्ड फ्लू जैसी बीमारी भी मनुष्य में पाई जाने लगी है और इसीलिए भारत जैसे देश के दर्शन संतोषम परम सुखम या जियो और जीने दो के सिद्धांतों को फिर से अपनाए जाने की आवश्यकता है | क्योंकि जब पेड़ पौधों के अस्तित्व को हम नहीं समझेंगे, जानवरों को जीने का अवसर नहीं देंगे तो उन के माध्यम से हम मनुष्यों के अस्तित्व पर भी एक प्रभाव पड़ेगा| 

 पर्यावरण का तात्पर्य सिर्फ  वृक्षारोपण नहीं लगाया जाना चाहिए एक व्यक्ति के शरीर में 70 प्रतिशत जल होता है और जब जल ही प्रदूषित होता चला जाएगा तो उस प्रदूषित जल के माध्यम से यदि हम अपने को जीवित रखना चाहेंगे तो शरीर के अंदर 70% जल के सापेक्ष करीब 70% बीमारियां भी शरीर को घेर लेंगी  जिसे आज प्रत्येक व्यक्ति की बीमारी में महसूस किया जा सकता है|  कोरोना काल में ऑक्सीजन की समस्या और लोगों द्वारा ऑक्सीजन लेने में परेशानी का अनुभव यह बताता है कि वातावरण में हमने स्वयं पेड़ पौधों का दोहन करके ऑक्सीजन के संतुलन को भी बिगाड़ा है|  इसलिए पेड़ पौधे लगाना पर्यावरण की संपूर्णता में सिर्फ 33 प्रतिशत भाग है|  शेष 33% में जल की शुद्धता है और 33% पृथ्वी या जमीन की उर्वरता और उसके पोषक तत्वों के निर्माण को बनाए रखने का प्रयास है जो हम  समझ नहीं पा रहे हैं या जनसंख्या के विकराल स्वरूप के आगे हमारे सामने सिर्फ यही विकल्प शेष रह गया है कि हम जमीनों को उर्वरकों के माध्यम से नष्ट कर डालें ! रहने के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जंगल काट डाले!

  ऐसे में यह भी आवश्यक है कि विश्व पर्यावरण दिवस को जनसंख्या विस्तार के संदर्भ में भी जागरूक किया जाए और इस तथ्य पर ज्यादा कार्य किया जाए कि जितनी संतुलित जनसंख्या होगी पर्यावरण उतना ही अच्छा होगा और पर्यावरण को स्थापित करने के लिए व्यक्ति को वातानुकूलित घरों में, गाड़ियों में रहने के बजाय पेड़ पौधों से आच्छादित घरों में रहना स्वीकारना होगा|  अपनी इज्जत और समाज में वैभव को दिखाने के सापेक्ष शरीर को स्वस्थ रखने और वायु को प्रदूषित होने से बचाने के लिए या तो पैदल या साइकिल से चलने का प्रयास करना होगा जैसा कि 3 जून को विश्व साइकिल दिवस पर यह संदेश भी देने का प्रयास किया जाता है और इन सभी तत्वों को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने आने वाले दशक 2021 से 2030 तक को पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्स्थापना  का दशक घोषित किया है अर्थात अगले 10 वर्षों में विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों तरफ के जीव-जंतुओं, पौधों और मनुष्यों को जीवित रहने के लिए पृथ्वी के पोषक तत्व, उर्वरता को बनाए रखने के लिए सार्थक प्रयास करना है और इस प्रयास में भारत जैसे देश को इसलिए बड़ा प्रयास करना होगा क्योंकि उसकी संस्कृति में जल, वायु, पृथ्वी सभी को  देवता-देवी  का दर्जा मिला हुआ है|  यदि धर्म की स्थापना करनी है, और  धर्म सर्वोच्चता पर है तो आज मानव धर्म में सबसे बड़ा प्रयास यही होना चाहिए कि धर्म की परिभाषा में हमने जीवित रहने के लिए आवश्यक जिन तत्वों को देवी देवता समझ कर उनके प्रति सम्मान और संरक्षा का एक भाव पैदा किया था उसको निरंतरता प्रदान करते हुए विश्व में भारतीय धर्म को उस सर्वोच्चता पर दिखाने की आवश्यकता है जो आज से नहीं सनातन परंपरा में हजारों साल से पर्यावरण के प्रति पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए किया जाता रहा है लेकिन इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को लगातार प्रयास करना होगा जो विश्व पर्यावरण दिवस की मांग है और आवश्यकता है | ( लेखक दो दशक से मानवधिकार विषयों पर कर कर रहे है )