Thursday 29 May 2014

कितना समझते हो मुझको

मेरे कमरे में पड़ी ,
बेतरतीब तमाम चीज़ो से ,
मेरे जिंदगी की ,
कहानी समझना चाहते हो ,
क्या सन्नाटो में फैली ,
उन तस्वीरो को देखने भी ,
एक पल के  लिए ,
हकीकत में आते हो ,
दीवारों के अंदर भी ,
कितनी आसानी से साँसों को ,
अपनी सांसो के लिए ,
महसूस कर लेते हो ,
कभी उस मासूम को ,
अपनी तरह ही ,
आदम  मान लेने की जुगत ,
में भी दिखाई देते हो ,
कैसे पढ़ पाओगे कमरे में ,
मेरी जिंदगी की कहानी ,
बेतरतीब किया जिसने ,
उसका नाम भी ले पाते हो .................
कितना आसान है की हम कह दे हम से पूछो वो कैसी है पर कीटनाकठिन है कि हम मान पाये कि उसको इस हाल में पहुचने में हम कितना जिम्मेदार है , औरत को सही अर्थो में सामान समझ कर समझिए

No comments:

Post a Comment