Tuesday, 27 May 2014

शर्म कीजिये

हौसला नहीं मुझ में ये ,
हौसला पश्तो से पूछिये ,
जिन्होंने बनायीं डगर ,
उन्ही का रास्ता रोक लीजिये ,
द्रौपदी का चीर हरण कर ,
सत्ता को भोग लीजिये ,
जिन्होंने चुने रास्ते सच ,
उन्हें जंगल भेज दीजिये ,
कैसे कहेंगे चार चोर ,
चोरी ही किया  कीजिये ,
लूट कर हर लाज को ,
बस लाश दिया कीजिये ,
पीट कर हर शाम को ,
खामोश रात बस लीजिये ,
आलोक बेनकाब सरेआम ,
अँधेरे में शर्म तो कीजिये ,..............पता नहीं क्या कहने के लिए लिखता चला गया .......
,


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