Wednesday 6 June 2012

phul tha khila

रात दिन की तरह रिश्ता कुछ ऐसे चला ,
कही रौशनी तो कही फिर अँधेरा मिला
सूरज से दूर हुए तो चाँद हसता ही मिला ,
गुलाब न सही रात में कोई फूल था खिला ...................
हर समय की अपनी रंगत है और उसी के कारण हम न जाने क्या क्या इन आँखों से देखते है पर कुछ इसको दर्द समझ लेते है और उछ इसको जीवन का रंग कह कर इसी की  खुशबू बन जाते है , क्या आप अपने लिए ऐसा सोचते है ??? शुभ रात्रि , अखिल भारतीय अधिकार संगठन , डॉ आलोक चान्टिया

No comments:

Post a Comment