Tuesday, 5 June 2012

subah

मेरे वजूद का अक्स रौशनी में मिला ,
रात भी आई थी तो क्यों   करू गिला ,
थोडा आराम ही पा गया फिर जिस्म ,
कुछ कम नही सुबह का ये सिलसिला ...................... बिना रात के आये आप सुबह का दीदार सोच भी नही सकते और यही कारण है कि हम सब को अपने अधिकारों के लिए सोचना चाहिए , हमारे जीवन की कमी ही हमें अधिकारों के प्रति और जागरूक बनती है , डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

No comments:

Post a Comment