इस पर्थिवी पर पाए जाने वाले सभी प्राणियों में सिर्फ मानव ऐसा प्राणी है जिसमे प्रजनन के लिए कोई समय निश्चित नही है और यही कारण है कि वह वर्ष भर प्रजनन कार्य करता है और इसी व्यवहार ने यह अनिश्चितता भी पैदा कर दी कि आप यह नही जन सकते कि कब खा किसने यौन समबन्ध बना लिए या बनाये | इस तथ्य को बहुत कुछ मानव ने संस्कृति बना कर दूर किया और उसने शुचिता का सिद्धांत प्रतिपादित किया और विवाह के लिए भी एक आयु निश्चित कर दी और इन सब के पीछे यौन संबंधो के लिए नियमन का ही उद्देश्य था और ऐसा भी नही कि इस से समाज में फायेदा नही हुआ | भारतीय परिवेश में रिश्तो से ज्यादा कुछ भी नही रहा और यौन सम्बन्ध बिना विवाह के स्वप्न में भी संभव नही था/है और अगर मनु स्मृति को धयन में रख कर बात करे तो यदि पिता के घर रहते हुए लड़की को मासिक शुरू हो जाता था तो पिता को ब्रह्म हत्या लगता था | यहा यह स्पष्ट है कि लड़की के साथ यौन सम्बन्ध काफी कम उम्र में बन ने लगता था और जो बाल विवाह के रूप में काफी समय तक भारत में प्रचलित रहा है /है | यहा पर एक बात और भी महत्वूर्ण है कि विज्ञानं में डार्विन ने प्राकृतिक चयन की बात कही है जिस में प्रकृति उन्ही शारीरिक विशेषको को उद्विकसिये क्रम में आगे चलने देती है जिसकी आवश्यकता होती है |और प्रकृति ने लड़की में प्रजनन क्षमता ९-१० वर्ष में ही उत्पन्न कर दी और लड़के में १२-१३ साल की उम्र में | यानि प्रकृति यह मानती है की इस उम्र में लड़का -लड़की प्रजनन के लिए पूरी तरह उपयुक्त है पर संस्कृति के पोषक होने के कारण जनसँख्या विस्फोट ने प्रकृति के इस निर्णय को नही माना और चिकित्सीय ज्ञान की सहायता से इस बात को सामने रखा कि प्रजनन क्षमता होने के बाद भी लड़की के लिए १६ साल से पहले माँ बनना ठीक नही जो आज भी मुस्लिम धर्म में मान्य है पर हिन्दू धर्म और देश के कानून के दृष्टिकोण से सातवे दशक के अंत में लड़की के विवाह कि उम्र १८ साल कर दी गई जो अभी चली आ रही है | यहा पर एक दूसरा यक्ष प्रश्न यह है कि चिकित्सिये विज्ञानं का दावा कितना स्वीकार योग्य है क्योकि प्रसव के दौरान जितनी मौत मानव में होती है उतनी किसी भी जीव जंतु में नही होती अर्थात ऐसा क्या कारण है प्रकृति ने मानव के जन्म में उस तरह सहयोग नही किया जिस तरह अन्य जीव जन्तुओ के लिए किया और इस के कई कारण होजे गए है जिनमे उम्र कोई भी कारण नही है | इस बात को समझने के लिए हमें इस बात पर भी धयान देना होगा कि मानव अब मानव संसाधन के रूप में ज्यादा है और इसी लिए लड़की का भी उपयोग बच्चा पैदा करने के अतिरिक्त करने के लिए उम्र को बढ़ाना जरुरी हो गया और इसी लिए ९-१० वर्ष से प्रजनन क्षमता पाने के बाद भी लड़की के सामने सांस्कृतिक और विधिक मूल्यों के प्रकाश में करीब ९ वर्ष का प्रतिबन्ध ( १८ वर्ष तक आने से पहले ) रहता है | हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ के अनुसार लड़की की उम्र १८ वर्ष और लड़के की २१ वर्ष होनी चाहिए जब कि नयायालय में हुए वादों में यदि १६ वर्ष कि उम्र में लड़की द्वारा सहमती से यौन सम्बन्ध बनाये गए है तो कोई अविधिक कार्य नही है पर शादी अगर १८ से पहले कि है तो वह अविधिक है | यहा पर तकनिकी रूप से करीं २ वर्ष लड़की को ऐसे दिए जा रहे है इसमें वह शादी तो नही कर सकती पर सहमति से यौन सम्बन्ध बना सकती है और उपभोक्तावादी संस्कृति और भूमंडली करण के दौर में यही एक खतरनाक संकेत है जो भारत में तकनिकी रूप से चल रहा है और ऐसी स्थिति में १६ से १८ वर्ष के बीच लडकियों को ऐसे कार्य के लिए उतारा जा सकता है जिस में सहमति के नाम पर एक बड़ा सेक्स रैकेट काम कर सकता है | यही करण है कि सरकार को यौन संबंधो कि आयु सीमा को बढ़ने का निर्णय लेना पड़ रहा है | प्राकृतिक रूप से और प्रकृति के नियमन के रक्ष में लड़की लड़का यौन सम्बन्ध ९ वर्ष और १२ वर्ष पर क्रमशः बना सकते है पर आज मानव का प्रयोजन सिर्फ सेक्स और बच्चे पैदा करना नही रह गया है और ऐसी स्थिति में संस्कृति के वाहक होने के कारण यह जरुरी है कि हम अपने यौन व्यवहार का ऐसा प्रबंधन करे कि आने वाली पीढ़िया अपने जीवन सुनिश्चित कर सके और इसी लिए यौन संबंधो की आयु निश्चित की गई है लेकिन इस तरह से जनसँख्या बढ़ने के कारण देह व्यापार एक बड़ा उद्द्योग बन कर उभरा है उसमे यह जरुरी है कि लडकियों के जीवन को और ज्यादा सुरक्षित किया जाये | इसी लिए प्राकृतिक क्षमता के बाद भी एक बेहतर जीवन और कानून व न्याय के बीच तकनीक अवरोध से लडकियों के जीवन को बचने के लिए यौन संबंधो की आयु को बढ़ाना एक सामजिक जरूरत है और शायद ही कोई ऐसा हो जो यह न चाहता हो कि लड़की इस देश में सम्मानजनक तरीके से न रहे | आयु बढ़ने से बेहतर समझ के साथ यौन सम्बन्ध बनाने का परिवेश बन सकता है | वैसे क्या वैश्यावृति इस देश के लिए कभी अछूती नही रही और हर दिन लडकियों को इस दंश को सहना पड़ रहा है | ऐसे में आयु का बढाया जाना एक उचित सामजिक कदम है ..................डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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