Thursday 28 June 2012

anpadh aur naukri

करत  करत अभ्यास से जड़मत होत सुजान.....................
आप मानिये न मानिये ...भारत में कथनी करनी कोई अन्तर  नही मिलेगा आपको .....जो कह दिया सो कह दिया ,,,अब देखिये न कितने समय पहले कहा गया  इस मुहावरे को पर भारत आज तक इस पर कायम है ......क्या आप कम पढ़े लिखे है ..या फिर फेल हो गए है ....आरे भाई कोई बात नही अगर आपके नंबर कम आये है ...सरकार किस दिन के लिए आपके दर्द को समझ कर तो हमने संविधान बनाया ............आरे छोडिये भी संविधान कौन भगवन ने बनाया ...हमने ही तो बनाया ...और किस लिए बनाया ....इसी लिए की आपको कुछ नही आता तो भी नौकरी ले जाइये ...आरे आपको इस बात की क्या परवाह की आप से ज्यादा पढ़ा लिखा नौकरी के बिना पड़ा है उसके घर खाना नही बन रहा है तो न बने ....आप को तो नौकरी मिल रही है ....आखिर हमको दूसरा मुहावरा भी तो सिद्ध करना है ...अंधेर नगरी चौपट रजा ....न न संविधान संशोधन की तरह थोडा सा संशोधन अंधेर नगरी चौपट लोग ....मालग हम भारत के लोग यानि संविधान की प्रस्तावना .....यही तो आत्मा है संविधान की ........पर शुक्ल जी आप क्यों मुह बांये खड़े है ...क्या आपको नौकरी नही मिली आप सिर्फ मराठी में परास्नातक है ??????????????? कोई बात नही आइये आपको ले चलते है उत्तर प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ...जी जी आपने सही समझ रहे है ...कितने समझदार है आप जो तुरंत जान गए की लखनऊ में कालिदास .....आरे वही जिनको विधोय्त्मा ने बुद्धिमान बना डाला था ...धक्का देकर और फिर कालिदास का क्या कहना ...बस ऐसे ही कालिदास अगर आपको बनान है और आप निरे सिरे के बेवकूफ है ...और आपके पास देग्री भी नही है ...क्या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार योग्यता भी नही अहि ???????कोई बात नही आइये आपको विद्द्योत्मा ...न न ....उस विश्वविद्यलय से मिलाये देते है जो धक्का दे देकर आपको आचार्य बना देगा ...मेरी बात पर आपको क्यों कलयुग में विश्वास आने लगा .....जाइये पता कर लीजिये ५२ ऐसे आचार्य उस विश्वविद्यालय में २००४ से काम कर रहे है जिनके पास योग्यता ही नही और वह सरकार का न सिर्फ धन खा रहे है  बल्कि वही पर बाद में पानी योग्यता भी पूरी करके कालिदास बन गए .....आरे ओ भैये रिक्शे वाले ..कहा पसीना भा रहे हो ....आओ तुम भी युनिवेर्सिटी के आचार्य बन जाओ ...चिंता न करो तुम भी धीरे धीरे आचार्य भी बन जाओगे और डिग्री भी यही युनिवेर्सिटी दे देगी ........क्या ऐसा राम राज्य आपने कभी कलयुग में देखा है .....बस बस मैअंत था आपको यही लगेगा की आलोक आज भी व्यंग्य लिख रहे है ...पर मै तो आपको सरल रास्ता बता रहा हूँ एक लाख रूपया पाने वाली नौकरी पाने का ....दौडिए दौडिए ....आरक्षण के ज़माने में ऐसा स्वर्ण मौका जाने न दीजिये ............क्या आपने भैस का भी दूध पिया है सरकार से पूछने के लिए की मेरे बच्चो को कालिदास क्यों पढ़ा रहे है ...पर आप तो मेघदूत की कल्पना में मस्त है ...और मस्त भी क्यों ना हो ....आप प्रेम के भूखे जो है ...वो बात और है कि पाव  भर टमाटर खरीदने में सब्जी वाले के साथ आप मोल भाव में पूरी जान लगा देंगे पर कालिदास  पढाये  या मलिदास ...भारत में डिग्री तो मिल ही जाएगी और करना भी क्या है आपके बच्चे को कल तक बिना पढ़ा लिखा आदमी गलियों में अमरुद बेचता हटा ...और अब डिग्री लेकर मॉल में अमरुद बेचेगा ...और किसी न किसी घर कि लड़की का लड़का मिल ही जाये गा शादी के लिए भी ...तो क्यों पूछे कि लखनऊ में ५२ काली दास कहा से आ गए ......आखिर आप अपने देश वालो के खिलाफ कैसे जा सकते है ???????????अंग्रेज होते तो कोई बात भी थी ....और उन्ही को देश निकलने में आपके तेल निकल आये तो अपनों को निकलने में तो आंते बाहर आ जाएँगी .....हहा मै फालतू बात कर रहा हूँ आप तो इतने गंभीर और व्यस्त है कि इन तुतुर्पुन्जियाबातो के लिए आपके पास समय ही नही है ...और ताजुब्ब नही कि आपको यह लग जाये कि मुझे किसी ने पैसा दिया होगा यह सब उछलने के लिए वरना ...इस खुदगर्ज देश में किसके पास फुरर्सत जो दुसरो कि बात करे ,,,,,,,,, तभी तो आप मुझे चंगेज खान जैसे देख रहे है ....सर कलम कर देंगे अगर में और बोला ...ओह हो ..मै तो भूल ही गए कि सच नीम से भी कडुआ होता है ..........और दुसरो के फटे में टांग अड़ाने की आप की आदत नही है और आप तो परम्पराव  के पोषक है तो कैसे कैसे मुहावरे को मर जाने दे ...........बिलकुल नही ...आइये देश की छाती पर मूंग भी दल ले ...ताकि जी तो जुडाये जाये ......अंत भला तो  सब भला ....और आप तो देख ही रहे की बिना योग्यता के कैसे आचार्य बना जाता है ,,,,,,,,,आइये आइये लखनऊ आइये ...स्वर्ग है तो यही है यही है .....आप खुश है न की मुहवर अ तो सच हो गया ...देश जाये भाड़ में ..........भारत माता की जय ......कलि दस की जय ...विद्योत्मा की जय ...और आपकी तो जय ही जय ......डॉ आलोक चान्टिया

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