हम सब नग्न ही पैदा होते है और सभी जीव जंतु पूरे जीवन ही नग्न रहते है पर मानव ने सस्कृति बना कर एक ऐसा विकल्प टायर किया जिससे कालांतर में हमारा ऐसा मनोवैज्ञानिक विकास किया कि कपडा उतरना सबसे बड़ा अपराध बोध सा हो गया | पर कपडा उतरने के पीछे क्या दर्शन काम कर रहा है उसको भी ध्यान में रख कर ही पोर्न मुद्दे पर एक सार्थक बात रखी जा सकती है | सबसे पहले तो यह बात समझना होगा कि कपडा संस्कृति के एक ऐसे वाहक के रूप में स्थापित हुआ इसने यह सन्देश में सफलता पाई कि मानव के जीवन में नग्नता , प्रजनन , आदि का महत्त्व तो है पर सिर्फ यही एक काम मानव का शेष हो , ऐसा नही है क्योकि संस्क्रती के अनुरूप आने को सामाजिक बनाये रखने और एक जैविक मानव से ज्यादा सांस्कृतिक मानव के रूप में खुद ओ स्थापित करने के लिए यह जरुरी था कि मानव , जानवरों के क्रिया कलापों से इतर एक ऐसी व्यवस्था का पोषक बने जिस से उसमे और जानवर में सीधा अंतर किया जा सके और इसी कड़ी में मानव का कपडा पहनना एक विशेष सांस्कृतिक क्रिया है और इस अर्थ में किसी का भी स्राव्जनिक स्थान पर कपडा उतरना और नग्न प्रदर्शन करना एक अपसंस्कृति का कार्य माना जाना चाहिए | अगर यह एक अप्संस्क्रिरी पूर्ण कार्य इसी को नही लगता तो सड़क पर यौन सम्बन्ध बनाना , प्रजनन करना आदि को भी गलत नही माना जाना चाहिए अपर इन सब से यह बा उभर कर जरुर आती है कि फिर नग्न घूम रहे जानवर और खुले रूप से सम्भोग कर रहे जानवर से हम अपने को अलग कैसे करेंगे ? हो सकता है कि लियों यह कह दे कि यह मेरे व्यक्तिगत जीवन का प्रश्न है पर वह व्यक्तिगत कैसे हो सकती है जब वह अपने शरीर का प्रदर्शन एक समाज में कर रही है जहा का अधिकांश व्यक्ति ऐसी क्रिया पसंद नही कर रहा है | इसका सीधा एक ही जवाब है कि मानव तो नंगे भालू और बंदर का नाच देखता है तो क्या वह भालू बंदर हो जायेगा ? और रही यह बात कि क्यों और क्या प्रबह्व पड़ेगा तो मुझे पियाजे का नैतिकता का सिद्धांत याद आ रहा है जिसने खा कि ५ वर्ष तक के बच्चे को जो भी दिखया या सिखाया जाता है वह आने पूरे जीवन न तो भूलता है और न ही छोड़ता है और यही कारण है कि जब आज का बच्चा पैदा हने के बाद से ही नग्नता देखेगा और उसी के कैलेंडर देखेगा तो आने वाले समय में उसे नग्नता में कोई बुरे ही नही दिखाई देगी और बच्चा पूरी तरह एक पुशु समाज का हिस्सा बनता चल जायेगा | ऐसा नही कि यह सब कोई काल्पनिक बात हो क्योकि आज कल जिस तरह बच्चो में सेक्स के पार्टी रूचि बढ़ी है और जिस तरह से शिचिता में कमी आई है \ बिना विवाह के गर्भपात के केस बढे है उस से तो यही सिद्ध होता है बच्चो में नग्नता का प्रभाव पड़ रहा है और मूल्य घट रहे है | किसी के भी घर में बच्चा जन्म के बाद से ५ वर्ष तक जो रिश्ते समझ लेता है वही रिश्ते वह पूरी सिद्दत से निभाता है और उस उम्र के बाद बने रिश्ते में वह गहराई नही रहती है | लियों क्या यह बता पायेगी कि जिस माँ ने एक बच्चे को अपने वक्ष से लगा कर दूध पिलाया होता है वही माँ एक समय बाद अपने बच्चे से भी अपना वक्ष ढक लेती है क्या वह नही कह सकती इ मई तो इसकी माँ हूँ और मैंने तो इसको जन्म दिया है , दूध पलय है तो इससे क्या श्रम और वह अपने बच्चे के सामने ऐसे ही कड़ी हो जाये पर ऐसा नही है क्योकि माँ जानती है कि संस्कृति सिर्फ जैविक प्रकृति को एक आअकर देने का कृत्य भर है और यह एक ऐसा संघर्ध है जिसमे जैविक इच्छा और सांस्कृतिक इच्छा के बीच एक द्वन्द चलता रहता है और इस द्वन्द में वही जीतता है जिसको मूल्य की सही शिक्षा दी गई है | पर माँ के इस दर्शन को लियों को समझना मुश्किल होगा क्योकि आर्थिकी की दुनिया में पशुता वाले कृत्यों के लिए पैसा मिलने का जो प्रक्रम चला वह भी संस्कृति का एक प्रकार कह कर परोसा जाने लगा और मानव को एक ऐसे झंझावाद की तरह ले जाया गया जहा वह अपने को आधुनिक और समय के अनुसार चले वाला कहलाने के लिए वह सब करने को आगे आने लगा जो संस्कृति बनाने से पहले था | अब यक्ष प्रश्न यही कि अगर मानव को नग्नता में आधुनिकता दिखाई देती है या फिर यह एक व्यक्तिगर कार्य लगता है तो आग से ५ लाख साल पहले नंगा खड़ा जंगल में रहने वाला आदमी तो काफी आधुनिक कहा जाना चाहिए और आज से ४००० हजार वर्ष उर्व उसके द्वारा कपडे पहनने की घटना एक पिच्छ्देपन की बात कहलाई जानी चाहिए \ संसद में लूको नंगा बथना चाहिए | नग्नता कितनी ख़राब है यह इसी से पता चल जाती है कि किसी बड़े अभिनेता ने कभी अपने लड़की को फिल्म में लेन कि कोशिश नही की और अगर उसने इसी फिम अभिनित्री से शादी की तो उसे फिल्म में काम नही करने दिया | अब आप ही सोच ले की नग्नता दिखने वाले खुद इस तरह के काम को कितना ख़राब समझते है और किता इससे परहेज़ करते है | जहा तक बात मीडिया की है तो मीडिया एक आर्थिक कार्य ज्यादा है और इसी लिए उसने संचार के नम्म पर कुछ भी छापना स्वीकार कर लिया इसके कारण जो बाते कभी समाज के लिए गोपनीय हुआ करती थी वह बड़ी आसानी से जनता तक उपलब्द्ध हो गई | बुक स्टाल पर कोई ऐसी किताबो को हाथ नही लगाता था जिस पर किसी नग्न महिला की तस्वीर बनी हो क्योकि उससे समाज में उसका चरित्र गिर सकता था पर आज तो घरो में खुलेआम समाचार पात्र में एक पन्ना ऐसे नग्न तस्वीरो को समेटे आता है और पूरा घर उसको अपने नजरो से होकर गुजारता है तो मीडिया में कही न कही समझ को ज्यादा नग्न होने और नग्नता को सोचने के लिए प्रेरित किया है पर बात यही आकर अटक जाती है कि शराब , सिगरेट सब तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है पर क्या वह बंद कर दिए गए बल्कि इनकी खपत ही दिनों दिन बढ़ी है और जिनको नही पीना है वो आज भी नही पी रहे है भले कितने विज्ञपन दिखाए जा रहे हो यानि सब कुछ आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चाहते है पर फिर भी आँखे जो देखती है और बचपन जो देख लेता है उसे न भूल पाता है और न ही पूरे जीवन उस से उबार पाता है | इस लिए पोर्न स्टार को सोचना चाहिए कि उनका नग्न होना आधुनिकता से ज्यादा पशुता और जंगलीपन है जिससे मानव हजरों वर्षो के प्रयास के बाद निजात पाया था | डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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