Sunday 4 June 2023

विश्व पर्यावरण दिवस :इसके होने का सच


 विश्व पर्यावरण दिवस :इसके होने का सच 

डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन 

      जिस देश में जल देवता की पूजा होती रही है, वायु देवता है और यही नहीं पृथ्वी को मां का दर्जा प्राप्त है उस देश में यदि वायु, जल, और  पृथ्वी सभी का क्षरण हो रहा है और उसके कारण लोगों के जीवन अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है तो एक बात तो स्पष्ट है कि लोग स्वयं अपने देश के मूल धर्म और संस्कृति से बहुत दूर चले गए हैं या फिर मूल धर्म और संस्कृति के बीच में ऐसे बहुत से लोग आ गए हैं जो उस संस्कृति के इन बातों को मानने के लिए तैयार नहीं है कि  वायु को देवता मानकर उनका सम्मान किया जाना चाहिए|  पृथ्वी को मां मानकर उनके लिए जीना चाहिए और जल को देवता मानकर ही उसका उपयोग किया जाना चाहिए|   इसीलिए जागरण या जागरूकता जैसे शब्द की उपादेयता से इनकार नहीं किया जा सकता है जिसे भारत सहित पूरे विश्व में जब महसूस किया गया तो 5 जून 1974 से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के माध्यम से लोगों को संवेदनशील करने जागरूक करने का प्रयास किया जाना ही इस दिवस का मूल उद्देश्य है| 

    वैसे तो संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण के चलाए जाने वाले ब्लॉग पर विश्व में मनाए जाने वाले विभिन्न दिवसों  की प्रासंगिकता पर प्रश्न पूछे गए हैं और उसके जवाब में भी यह बताया गया है कि आज की दौड़ती भागती जिंदगी में जब लोग जीवन के अर्थ  में उन तत्वों को भूल रहे हैं जिसके कारण ही वास्तविक अस्तित्व है तो उसकी आवश्यकता को बताने के लिए और जागरूकता फैलाने के लिए ही विश्व में अनेकों दिवस मनाए जाने का प्रचलन बढ़ा है ताकि उस विशेष दिन लोगों को उस तत्व के प्रति संवेदनशील बनाया जाए और यह अपेक्षा की जाए कि वह आने वाले समय में पूरे वर्ष उस एक  दिन के सापेक्ष कार्य करेंगे और उस क्षरण को रोकेंगे जिससे उनके अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न हो गया है| 

      वर्ष 2021 में विश्व पर्यावरण दिवस की थीम पुनर्कल्पना, पुनरुद्भव  और पुनर्स्थापन  रखा गया है और इस बार विश्व में पाकिस्तान वह देश है जो 2021 के पर्यावरण दिवस की अगुवाई कर रहा है|  हर वर्ष किसी एक देश को चुना जाता है जो पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम में विश्व के देशो की अगुवाई करें|  लेकिन इस तथ्य से किसी को भी इंकार नहीं करना चाहिए कि विश्व में भौतिक संस्कृति और व्यक्तिगत सुख की लालसा में दौड़ने वाले व्यक्ति ने प्रत्येक 3 सेकंड में एक  फुटबॉल पिच के बराबर विश्व में जंगल का सर्वनाश किया है और कर रहा है |  करीब एक शताब्दी में 50% कोरल रीफ(प्रवाल भित्ति को प्रवाल शैल-श्रेणियाँ भी कहते हैं जो समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट (CaCo3) से निर्मित होती हैं। वस्तुतः ये इन छोटे जीवों की बस्तियाँ होती हैं। ... इनकी ऊपरी सतह पर प्रवाल निवास पलते और बढ़ते रहते हैं।) नष्ट हो चुका है और जो 50% प्रवाल भित्ति  बचाए है उसके बारे में यदि हम सचेत नहीं हुए तो 2050 तक करीब 90% का क्षरण हो जाएगा और यह भी तब होगा जब पृथ्वी के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक ही नियंत्रित किया जाएगा|  यही कारण है कि विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रत्येक व्यक्ति को सिर्फ सुबह से शाम तक अपनी रोटी के जुगाड़ के साथ साथ यह  भी जानना चाहिए कि पूरे विश्व में पृथ्वी पर ऐसी कौन सी घटनाएं हो रही है जो आने वाले समय में जीवन शब्द को ही गायब कर देंगी | 

    प्रत्येक वर्ष करीब 4.7 लाख हैक्टेयर जंगल को विश्व में नष्ट किया जा रहा है जो डेनमार्क के क्षेत्रफल से भी ज्यादा है|  इसके अतिरिक्त 80% पानी को बिना  रिसाइकिल किए हुए नदी और समुद्र में जाने दिया जा रहा है | दलदली भूमि का एक अपना महत्व है जो पिछले 300 साल में करीब 87% तक खत्म हो चुकी है यह कार्बन को सूखने का एक उत्तम कारक है|  इसी दलदली क्षेत्रों के किनारे पर पीटलैंड के बीच क्षेत्र पाए जाते हैं पूरे विश्व की जमीन का 3% हिस्सा है और यह जमीनी कार्बन का करीब 30% अपने अंदर समाहित करता है जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक है| 

   आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का मतलब ज्यादातर लोगों ने वृक्षारोपण लगा लिया है जबकि उन्हें सबसे पहले इस बात को आत्मसात करना होगा कि पर्यावरण का मतलब है कि व्यक्ति का जिस वातावरण में रह रहा है उसके साथ संबंध और यहां पर  वातावरण का तात्पर्य वह वायुमंडल है जिसमें व्यक्ति रह रहा है लेकिन जब पारिस्थितिकी तंत्र की बात होती है तो इस बात को प्रत्येक व्यक्ति को समझना होगा कि उसके अंतर्गत जानवर भी आते हैं, पौधे भी आते हैं और मनुष्य भी आता है और इन सभी के संबंधों के समुच्चय  का नाम पारिस्थितिकी तंत्र है लेकिन जिस तरह से मनुष्य ने पेड़ पौधों का दोहन कर के जंगलों को समाप्त किया है, ना जाने कितनी जानवरों की, जंतुओं की प्रजातियां विलुप्त हुई हैं|  उनका आंकड़ा ही स्पष्ट करता है कि वर्तमान में पारिस्थितिकी तंत्र बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हो चुका है और मानव ना चाहते हुए उस दलदल में स्वयं खड़ा हो गया है जहां एक समय बाद वह स्वयं अपने जीवन को नहीं समझ पाएगा|  वह अपने जीवन को इस पृथ्वी पर कैसे बनाए रखें इसके लिए विवश होगा और उसकी इस व्यवस्था को कटते हुए जंगलों के कारण जानवरों का शहरों की तरफ पलायन और शहरों में मानव द्वारा उन जानवरों को अपने भोजन में शामिल कर लिए जाने का सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कोरोना जैसे विषाणु से फैली महामारी में अनुभव किया जा सकता है|  यही नहीं कुछ दिन पूर्व ही चीन ने इस बात की भी पुष्टि की है कि बर्ड फ्लू जैसी बीमारी भी मनुष्य में पाई जाने लगी है और इसीलिए भारत जैसे देश के दर्शन संतोषम परम सुखम या जियो और जीने दो के सिद्धांतों को फिर से अपनाए जाने की आवश्यकता है | क्योंकि जब पेड़ पौधों के अस्तित्व को हम नहीं समझेंगे, जानवरों को जीने का अवसर नहीं देंगे तो उन के माध्यम से हम मनुष्यों के अस्तित्व पर भी एक प्रभाव पड़ेगा| 

 पर्यावरण का तात्पर्य सिर्फ  वृक्षारोपण नहीं लगाया जाना चाहिए एक व्यक्ति के शरीर में 70 प्रतिशत जल होता है और जब जल ही प्रदूषित होता चला जाएगा तो उस प्रदूषित जल के माध्यम से यदि हम अपने को जीवित रखना चाहेंगे तो शरीर के अंदर 70% जल के सापेक्ष करीब 70% बीमारियां भी शरीर को घेर लेंगी  जिसे आज प्रत्येक व्यक्ति की बीमारी में महसूस किया जा सकता है|  कोरोना काल में ऑक्सीजन की समस्या और लोगों द्वारा ऑक्सीजन लेने में परेशानी का अनुभव यह बताता है कि वातावरण में हमने स्वयं पेड़ पौधों का दोहन करके ऑक्सीजन के संतुलन को भी बिगाड़ा है|  इसलिए पेड़ पौधे लगाना पर्यावरण की संपूर्णता में सिर्फ 33 प्रतिशत भाग है|  शेष 33% में जल की शुद्धता है और 33% पृथ्वी या जमीन की उर्वरता और उसके पोषक तत्वों के निर्माण को बनाए रखने का प्रयास है जो हम  समझ नहीं पा रहे हैं या जनसंख्या के विकराल स्वरूप के आगे हमारे सामने सिर्फ यही विकल्प शेष रह गया है कि हम जमीनों को उर्वरकों के माध्यम से नष्ट कर डालें ! रहने के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जंगल काट डाले!

  ऐसे में यह भी आवश्यक है कि विश्व पर्यावरण दिवस को जनसंख्या विस्तार के संदर्भ में भी जागरूक किया जाए और इस तथ्य पर ज्यादा कार्य किया जाए कि जितनी संतुलित जनसंख्या होगी पर्यावरण उतना ही अच्छा होगा और पर्यावरण को स्थापित करने के लिए व्यक्ति को वातानुकूलित घरों में, गाड़ियों में रहने के बजाय पेड़ पौधों से आच्छादित घरों में रहना स्वीकारना होगा|  अपनी इज्जत और समाज में वैभव को दिखाने के सापेक्ष शरीर को स्वस्थ रखने और वायु को प्रदूषित होने से बचाने के लिए या तो पैदल या साइकिल से चलने का प्रयास करना होगा जैसा कि 3 जून को विश्व साइकिल दिवस पर यह संदेश भी देने का प्रयास किया जाता है और इन सभी तत्वों को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने आने वाले दशक 2021 से 2030 तक को पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्स्थापना  का दशक घोषित किया है अर्थात अगले 10 वर्षों में विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को अपने चारों तरफ के जीव-जंतुओं, पौधों और मनुष्यों को जीवित रहने के लिए पृथ्वी के पोषक तत्व, उर्वरता को बनाए रखने के लिए सार्थक प्रयास करना है और इस प्रयास में भारत जैसे देश को इसलिए बड़ा प्रयास करना होगा क्योंकि उसकी संस्कृति में जल, वायु, पृथ्वी सभी को  देवता-देवी  का दर्जा मिला हुआ है|  यदि धर्म की स्थापना करनी है, और  धर्म सर्वोच्चता पर है तो आज मानव धर्म में सबसे बड़ा प्रयास यही होना चाहिए कि धर्म की परिभाषा में हमने जीवित रहने के लिए आवश्यक जिन तत्वों को देवी देवता समझ कर उनके प्रति सम्मान और संरक्षा का एक भाव पैदा किया था उसको निरंतरता प्रदान करते हुए विश्व में भारतीय धर्म को उस सर्वोच्चता पर दिखाने की आवश्यकता है जो आज से नहीं सनातन परंपरा में हजारों साल से पर्यावरण के प्रति पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए किया जाता रहा है लेकिन इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को लगातार प्रयास करना होगा जो विश्व पर्यावरण दिवस की मांग है और आवश्यकता है | ( लेखक दो दशक से मानवधिकार विषयों पर कर कर रहे है )


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