Friday, 10 June 2011

अब कालेज बनेगे विश्वविद्यालय: वाह वाह .... आह आह


आने वाले समय में कॉलेजों की जगह विश्वविद्यालय ही होंगे। सरकार की योजना कॉलेजों की गुणवत्ता में सुधार करके उन्हें विश्वविद्यालय का दर्जा देने की है। पहले चरण में करीब पांच सौ चुनिंदा कॉलेजों को विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। उसके बाद तीन सालों के भीतर चरणबद्ध तरीके से कॉलेजों को अपनी गुणवत्ता सुधार कर विवि का दर्जा हासिल करना होगा। जो कॉलेज यूजीसी के मानकों के अनुरूप नहीं होंगे, उन्हें कम्युनिटी कॉलेज बनाकर उनमें वोकेशनल ट्रेनिंग कोर्स शुरू कि एजाएंगे। इस कवायद के पीछे मकसद है कि विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य बेहतर होऔर वे रिसर्च गतिविधियों का भी कें द्र बनें। यूजीसी के चेयरमैन डॉ. वेद प्रकाश के अनुसार, देश मेंकरीब चार सौ विश्वविद्यालय हैं और उनसे संबद्ध कॉलेजों की संख्या करीब 31हजार है।उस्मानिया जैसे विवि तो ऐसे हैं,जिनसे एक एक हजार कॉलेज संबद्ध हैं। ऐसे में विवि की भूमिका परीक्षा आयोजित करने की रह गई है,जो चिंताजनक है।कॉलेजों की संबद्धता प्रक्रिया को पहले कम किया जाएगा, फि रधीरे-धीरे इसे खत्म कर दिया जाएगा। पहले चरण में तीन मानकों के आधार पर कॉलेजों काचयन कि या जाएगा। इनमें यूजीसी द्वारा घोषित बेहतरीन कॉलेज, स्वायत्त कॉलेज तथा नैक की ए ग्रेडिंग पाने वाले कॉलेजशामिल होंगे। यदिइन कॉलेजों में अच्छीफैकल्टी तथाबुनियादी ढांचा है तो इन्हें सीधे विवि बना दिया जाएगा।इस श्रेणी में करीब पांच सौ कॉलेज आ जाएंगे। जो कॉलेज आस-पास हैं, उन्हें भीजोड़कर विवि बनादिया जाएगा। बाकी जो कॉलेज बचेंगे, उन्हें तीन साल के भीतर गुणवत्ता सुधारनी होगी(मदन जैड़ा,हिंदुस्तान,दिल्ली,10.6.11) एवं भाषा शिक्षा और रोज़गार ।



Friday, 3 June 2011

व्यथा: सब चौपट कर दिया इस वी सी नें

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय मूल्याङ्कन केंद्र में आजकल एक अजीब सी शांति दिखाई पड़ती है । माहौल कुछ अलग सा है। मूल्याङ्कन कर्ता शिक्षक सीधे जाकर बाबू से अपनी कापियों का बण्डल प्राप्त कर सीट पर जा कार्य आरम्भ कर देते हैं। कानाफूसी बंद है। बाबू द्वारा कापियों का बण्डल देते समय शिक्षक को चुपके से चिट पकडाना या कुछ कापियों को उलटकर बण्डल में रख शिक्षक के कान में धीरे से बोलना ,बंद है। शिक्षकों का एक दूसरेके पास जा यह पूंछना की किस सेंटर की कापी है , बंद है। यहाँ तक की लोगों के मोबाइल फ़ोन भी बंद हैं।मूल्याङ्कन केंद्र रुपी बाज़ार की रौनक चली गयी। कुछ जुगाडू लोग निराशा में हाथ पाँव मारते अवश्य दिखाई पड़ जातें हैं। बच्चे के इतने प्रतिशत अंक कैसे आयेंगे , बड़ी चिंता है। क्या क्या उम्मीदें लगा रखी थीं , अपना तो छोडो दूसरों तक के तमाम ठेके ले रखे थे । सब चौपट कर दिया इस वाइसचांसलर नें। भगवान् जाने परिणाम आने पर क्या होगा? खैर इस वर्ष तो वी सी को चले ही जाना है , अगले वर्ष इस व्यवस्था का तोड़ ढूढना ही पड़ेगा।