Saturday, 25 April 2015

भूकम्प से जाना प्रेम की तीव्रता

भूकम्प और प्रेम की तीव्रता
मुझे नहीं मालूम कि आज आपको कैसा लगा पर प्रकृति ( नारी ) की लगातार उपेक्षा ने जिस तरह अपने अस्तित्व का बोध कराया वो करीब ८७६ जान लेकर शांत हुई | पर इन सबके बीच मैं मानव मन को टटोलने में लगा था | लखनऊ के एक कालेज में कार्यरत में व्यक्ति की मंगेतर उससे नाराज चल रही थी ( जैसा उसने कहा ) और आज उसका बर्थ डे था अब वो परेशान कि कैसे उससे बात करें और तभी भूकम्प आ गया और भूकम्प बंद भी नहीं हुआ था कि उस लड़की का फ़ोन आ गया | पुरुष महोदय बहुत खुश हुए उनको इससे कोई मतलब नहीं कि कितने आज मर गए उन्होंने बस यही कहा कि वो मुझसे सच्चा प्यार करतीहै तभी तो नाराज होने के बाद सबसे पहला फ़ोन उसी का आया मेरा हाल जानने के लिए .............शायद इसी लिए दुनिया के कई रंग होते है मेरी जान गयी उनकी अदा ठहरी .कही भूकम्प के दर के साये में लोगो की सांसे चलना मुश्किल है और कही भूकम्प से प्रेम की तीव्रता आंकी जा रही थी | सच है हम सिर्फ अपने लिए सोचते है | क्या आप ने मानवता की तीव्रता महसूस की या फिर आप भी ????????????????

भूकम्प और माँ

भूकम्प और माँ .............
आज कल मैं ख़राब  स्वास्थ्य का पूरा आनंद ले रहा हूँ और इसी लिए आज काफी देर से उठा सर दर्द अपना नृत्य दिखा रहा था पर एक पेपर लिखना था इस लिए जैसे ही लिखने बैठा मुझे लगा कि मेरा सर घूम रहा है पर कुछ पल बाद लगा कि कमरे के सामान भी घूम रहे है तो मैं बाहर आया देखा कालोनी में हल्ली अछा है भूकम्प आया भूकम्प आया ,,,,भागो भागो पर मुझे कोई चिंता नहीं थी क्योकि मरने पर भी मेरे पीछे कुछ नहीं था और जिन्दा रहने पर भी कुछ नहीं है खैर मैंने सोचा जरा यही देख लूँ कि आज के दौर में जब लोग किसी की जान जाने पर झांक कर नहीं देखते तो अपनी जान बचाने के लिए कैसे पागल हुए जा रहे है | भारत पाकिस्तान बटवारे की भीड़ की तरह लोग खुले में दौड़ रहे थे | एक महिला भी एक बोतल में पानी लिए दौड़ रही थी | एक दूसरी महिला ने पूछा कि ये पानी किस लिए लिए जा रही हो ? बोलतल वाली महिला ने कहा कि बच्चे स्कूल से आ रहे होंगे और अगर उनको प्यास लगी तो पानी लेने घर के अंदर कैसे जाउंगी भूकम्प के कारण बच्चे पानी के बिना प्यासे ना रह जाये इस लिए अपनी साथ ले  आई हूँ | इतनी विपरीत क्षणों में भी एक माँ को अपने से ज्यादा अपने बच्चे याद रहे क्या अब भी हम समझना चाहते है कि मानव और मानवता कहा बस्ती है | एक भूकम्प मुझे बहुत कुछ समझा गया था क्या आपको भूकम्प में कोई याद आया | और एक बात भूकम्प के दौरान ही मेरी माँ का फ़ोन आ गया .कहा हो कैसे हो जल्दी से घर से बाहर जाओ और हां ४ बजे फिर बहुत तेज भूकम्प आएगा अपना ख्याल रखना | मैं सोच रहा था कि माँ को अपनी चिंता क्यों नहीं होती !! क्या वही समाज की असली रक्षक है तो महिला दुखी क्या है ????????????

Wednesday, 8 April 2015

किसान !!!!!!!!!!!!!!! किस .........आन

किसान ............................या किस ........आन
सारे किसान फसल बर्बाद होने के कारण आत्महत्या नहीं कर रहे है वो तो परिवार का आकर बड़ा होने के कारण आत्महत्या कर रहे है !!!!!!!! जी आप ठीक समझे ये मैं नही सरकारी विश्लेषण बता रहे है और देश इस बात पर क्यों दुखी हो या किसानो के लिए कोई बड़ी योजना क्यों चलाये ?? कम से कम किसान ही देश के लिए रोटी के लिए भी सोचते है और बढती जनसँख्या के लिए भी सोचते है ( सरकार के पास तो विदेश जाने से ही नहीं फुर्सत है खैर जिसने गरीबी देखी है वो देश में पैसा लाने के लिए दौड़ेगा ही ) और तो बेचारे किसान कुछ कर नही सकते , इस लिए आत्महत्या ही करके देश के लिए रोटी बचा रहे है ( जिन्दा रह कर तो खुद रोटी को तरस जाते है ) वैसे देश को ऐसे किसानो को राष्ट्रीय पुरूस्कार देना चाहिए जो कम से कम जान देकर देश में अन्न की कमी को कम करना चाहते है | देखिये मैं नहीं कह रहा हूँ ये तो देश का प्रधान सेवक कह रहा है कि किसान अन्नदाता है पर मैंने कब कहा वो गुलाम है !!! आरे वो देश की मज़बूरी है कि आज तक किसान देश की जेलों में बंद कैदियों के बराबर भी अपने घर में बल्ब की रौशनी नहीं पाता है |अब आप उसको गुलाम कहना चाहते है तो कहिये | अगर देश के जेलों में बंद कैदियों को डॉक्टर और सरकारी नल का पानी मिलता है तो वो अपराध भी तो करते है बेचारे किसान ने कौन सा अपराध किया जो सरकार उसको सरकारी नल का पानी और डॉक्टर उपलब्ध कराये | सड़क पर किसान चलेगा तो नखरे नहीं करने लगेगा गीले खेतों में बीज बोने से उसके पावों में कीचड़ लग जाने पर उसे भी तो शहर वालों की तरह घिन आने लगेगी | वो तो भगवन है उसको तो कोढ़ जैसे भिनभिनाते जीवन में भी अनुराग ढूँढना है | और इसी लिए तो किसान के पास अच्छी सड़क नहीं है | अब आप बताइए आप को नींद कब आएगी जब आपका पेट भरा हो और हमारे देश में तो कहा भी गया है कि भूखे पेट न भजन गोपाला............ अब शहर वालों , संसद विधान सभा में बैठे लोगो का पेट भरा नही होगा तो देश के विकास के लिए सोचेंगे कैसे | और भूखे पेट अगर इन महान लोगो को नींद नही आई तो देश को उच्चा उठाने के लिए काम कौन करेगा ??? इसी लिए तो किसान को भूखा पेट सोना पड़ता है ताकि उसको नींद ना आये और जब आप सुबह की उन्माद में किसी सपने में डूबे हो तो उस समय यही किसान आपके लिए खेतों में अन्न उगा रहा हो पर क्या मेरी मजाल तो आज प्रजातंत्र में किसान को आप गुलाम कह दे | ये तो सिर्फ देश की मज़बूरी है कि देश के किसान को पानी बिजली के बिना सड़क के बिना अच्छे स्वस्थ्य के बिना और भूखे रहते हुए पथरायी आँखों से संसंद में बैठने वाले जे ज्यादा आसमान में चल रही संसद से कहना पड़ता है कि इस बार तो पूरा खाना दे दो भगवन .............इस बार तो मैं भी अपने तन को पूरा ढक लूँ भगवन .........मेरी भी बेटी के हाथ पीले हो जाये .............हम तो गीता पढने वाले लोग है जो आया है वो जायेगा तो क्यों करे किसान के मरने पर शोक ( क्या किसी दिन आपने देश के किसान के ५ मिनट भी सोचा ) आप को तो लगेगा लिख डाला फिर ना जाने क्या क्या ......................पर गावं का रहने वाला वो आदमी किस .............आन से कहे किसान ....खुद को ...................... आपने किस आन( किसान ) को पाया उस गावं के आदमी में !!!!!!!!!!!!!!!! क्या आप आदमी है !!!!!!!!!!!!!!!! तो वो किसान !!!!!!!!!!!व्यंग्य समझ कर देश के दर्द को पढ़िए ) अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपको सिर्फ विचार दे सकता है आगे आप स्वयं देश के निर्माता है डॉ आलोक चान्टिया