Saturday 25 April 2015

भूकम्प और माँ

भूकम्प और माँ .............
आज कल मैं ख़राब  स्वास्थ्य का पूरा आनंद ले रहा हूँ और इसी लिए आज काफी देर से उठा सर दर्द अपना नृत्य दिखा रहा था पर एक पेपर लिखना था इस लिए जैसे ही लिखने बैठा मुझे लगा कि मेरा सर घूम रहा है पर कुछ पल बाद लगा कि कमरे के सामान भी घूम रहे है तो मैं बाहर आया देखा कालोनी में हल्ली अछा है भूकम्प आया भूकम्प आया ,,,,भागो भागो पर मुझे कोई चिंता नहीं थी क्योकि मरने पर भी मेरे पीछे कुछ नहीं था और जिन्दा रहने पर भी कुछ नहीं है खैर मैंने सोचा जरा यही देख लूँ कि आज के दौर में जब लोग किसी की जान जाने पर झांक कर नहीं देखते तो अपनी जान बचाने के लिए कैसे पागल हुए जा रहे है | भारत पाकिस्तान बटवारे की भीड़ की तरह लोग खुले में दौड़ रहे थे | एक महिला भी एक बोतल में पानी लिए दौड़ रही थी | एक दूसरी महिला ने पूछा कि ये पानी किस लिए लिए जा रही हो ? बोलतल वाली महिला ने कहा कि बच्चे स्कूल से आ रहे होंगे और अगर उनको प्यास लगी तो पानी लेने घर के अंदर कैसे जाउंगी भूकम्प के कारण बच्चे पानी के बिना प्यासे ना रह जाये इस लिए अपनी साथ ले  आई हूँ | इतनी विपरीत क्षणों में भी एक माँ को अपने से ज्यादा अपने बच्चे याद रहे क्या अब भी हम समझना चाहते है कि मानव और मानवता कहा बस्ती है | एक भूकम्प मुझे बहुत कुछ समझा गया था क्या आपको भूकम्प में कोई याद आया | और एक बात भूकम्प के दौरान ही मेरी माँ का फ़ोन आ गया .कहा हो कैसे हो जल्दी से घर से बाहर जाओ और हां ४ बजे फिर बहुत तेज भूकम्प आएगा अपना ख्याल रखना | मैं सोच रहा था कि माँ को अपनी चिंता क्यों नहीं होती !! क्या वही समाज की असली रक्षक है तो महिला दुखी क्या है ????????????

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