Sunday, 30 March 2014

वर्तमान कूटा का भविष्य

किसी भी संगठन में मुख्य पदाधिकारी (अध्यक्ष/मंत्री) यदि  अपने को केंद्र में रखकर कार्य करेंगे तो वह संगठन अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता। वर्तमान में कानपुर विश्वविद्यलय शिक्षक संघ इसी संकट के दौर से गुजर रहा है ; कार्यकारिणी को ताख  पर रख निर्णय लिए जा रहे है।  स्वय को संगठन के ऊपर रखा जा रहा है। छुद्र निजी स्वार्थो से पदाधिकारी ऊपर उठ आम शिक्षक भावना का सम्मान करने में असमर्थ हो रहे है। दो वर्ष पूर्व नयी कार्यकारिणी के गठन के पश्चात  शिक्षकों की विभिन्न समस्याओं पर बैठक तो भूल जाईये , कुलपति महोदय को आज तक कोई ज्ञापन तक नहीं दिया गया है। संगठन की गतिविधियों समबन्धी पत्रक जारी हों बंद हो चुके हैं। कूटा बुलेटिन का प्रस्तावित प्रकाशन ठन्डे बस्ते में है। मीडिया प्रभारी शांत है।  शिक्षकों के प्रमोशन खटाई में हैं। शोध कार्य ठप्प पड़ा है।शोध पर्यवेक्षकों सम्बन्धी सूची संशय में है; शोध पर्यवेक्षकों सम्बन्धी सूची संशय में है। शिक्षकों के मूल्याङ्कन पारिश्रमिक के भुगतान पर को स्पष्ट जबाव नहीं है। बाहरी शिक्षकों के टीए/डीए भुगतान में विसंगतिया है शिक्षकों के मूल्याङ्कन पारिश्रमिक के भुगतान पर को स्पष्ट जबाव नहीं है। बाहरी शिक्षकों के टीए /डीए भुगतान में विसंगतिया है । शिक्षकों की वरिष्ठता सूची जारी होने से मनमाने ढंग से परीक्षकों आदि की नियुक्तियां हो रहीं हैं। खोखली आदर्शवादिता युक्त लोभी शिक्षक विश्वविद्यालय स्टाफ के इर्द गिर्द चक्कर लगा जेबे भरने में व्यस्त हैं। कूटा के संविधान के उद्देश्यों में एक की भी पूर्ति नहीं हो पाना सुनिश्चित है। सांगठनिक कार्यों से ये पदाधिकारी विमुख है। मुख्य रूचि विश्वविद्यालय से पारिश्रमिक प्राप्त कार्यों को स्वयं हथियाने में है।  परीक्षाओं के दौरान निजी रूप से विश्वविद्यालय से सम्बद्ध शहर से बाहर के कुछ कालेजो में दौरा कर शिक्षकों से मुलाकात के दौरान पाया की समस्त जागरूक शिक्षकों में संगठन पदाधिकारियों के प्रति  आक्रोशयुक्त निराशा का भाव है। मुझे नहीं लगता की कूटा के वर्तमान स्वरुप का लम्बा भविष्य है।   

No comments:

Post a Comment