Tuesday 4 March 2014

paisa hi sab kuchh hai

मैं पैसे के पीछे भाग रहा था ,
हर पल जैसे भाग रहा था ,
रात रात क्यों जाग रहा था ,
पैसा फिर भी भाग रहा था ,
वो पीछे पीछे कभी मैं आगे ,
कभी वो आगे हम अभागे ,
मैं दौड़ता रहा वो दौड़ाता रहा ,
न वो रुका न मैं ही रुका ,
पर अब न वो भाग रहा था ,
और ना ही अब जाग रहा था ,
बाल सफ़ेद थे , सफ़ेद था चेहरा ,
नहीं कही था जीवन का सेहरा ,
रंग बिरंगे कपडे सफ़ेद हो ,
थक गए थे कुछ लोग रो रो ,
अब पैसा खड़ा श्मशान में ,
मेरे जल जाने  की मांग में ,
क्यों कहते हो कुछ नहीं है ,
पैसे से ही सब जीते शान में ,
क्या मिल जायेगा आलोक ,
अँधेरे के सिवा सब है दाम में ....................

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