Thursday, 29 May 2014

कितना समझते हो मुझको

मेरे कमरे में पड़ी ,
बेतरतीब तमाम चीज़ो से ,
मेरे जिंदगी की ,
कहानी समझना चाहते हो ,
क्या सन्नाटो में फैली ,
उन तस्वीरो को देखने भी ,
एक पल के  लिए ,
हकीकत में आते हो ,
दीवारों के अंदर भी ,
कितनी आसानी से साँसों को ,
अपनी सांसो के लिए ,
महसूस कर लेते हो ,
कभी उस मासूम को ,
अपनी तरह ही ,
आदम  मान लेने की जुगत ,
में भी दिखाई देते हो ,
कैसे पढ़ पाओगे कमरे में ,
मेरी जिंदगी की कहानी ,
बेतरतीब किया जिसने ,
उसका नाम भी ले पाते हो .................
कितना आसान है की हम कह दे हम से पूछो वो कैसी है पर कीटनाकठिन है कि हम मान पाये कि उसको इस हाल में पहुचने में हम कितना जिम्मेदार है , औरत को सही अर्थो में सामान समझ कर समझिए

मुझे समझते हो ??

मेरे जिंदगी में आँधियाँ ,
तेरे जूनून से कुछ कही
कम नहीं ,
जी कर तो मरते है सभी ,
मर मर कर जीने का
दम तुममे नहीं ,
तुम्हे बोल कर जताने ,
बताने की आदत सी है ,
सभी को ,
पर मेरी ख़ामोशी चूड़ियों ,
पायल से सुनने की है ,
सभी को ,
रेत सी  जिंदगी में ,
पानी सा फैलने की तमन्ना ,
किनारे खड़े होकर भीगने ,
की आदत सभी को है ,
मत कहना औरत वरना ,
कई उँगलियाँ उठ जाएँगी ,
जिंदगी कह कर सांस लेने ,
आरजू सभी को  है .......आज एक लड़की ने समाज का जो चित्र अपने साथ हुई आप बीती के साथ सुनाई उन्ही को शब्दों से आपके सामने रख रहा हूँ ...आइये कुछ देर और सोचे ???????

Wednesday, 28 May 2014

गंगा तेरा पानी अमृत

देखिये ये माँ नही ,
गंगा है ,
और सोचिये आदमी ,
कितना नंगा है ,
रोज तन मन को ,
गुमराह कराती ,
घुंघरुओं की आवाज ,
में समाती देश की ,
लज्जा की तरह ,
तुम क्यों आदमी पर ,
भरोसा कर आ गयी ,
इन फितरती लोगो ,
से देखो क्या पा गयी ,
कल तक तेरे आँचल,
से अमृत पीते थे ,
मरते दम तक तेरी ,
बून्द से जीते थे ,
पर आज तुम खुद ,
अपने में लाचार हो ,
फिर भी उसकी पहचान ,
और एक प्रचार हो ,
एक बार तू सोच जरा ,
कब तक यहा नारी ,
भावना में लुटती रहेगी,
कहलाएगी माँ गंगा ,
खुद जीने को तरसती रहेगी .........................हमें अपनी कथनी करनी में अंतर करना होगा तभी जीवन और नारी के हर स्वरुप को  पारदर्शी हम बना पाएंगे ............... ,

Tuesday, 27 May 2014

शर्म कीजिये

हौसला नहीं मुझ में ये ,
हौसला पश्तो से पूछिये ,
जिन्होंने बनायीं डगर ,
उन्ही का रास्ता रोक लीजिये ,
द्रौपदी का चीर हरण कर ,
सत्ता को भोग लीजिये ,
जिन्होंने चुने रास्ते सच ,
उन्हें जंगल भेज दीजिये ,
कैसे कहेंगे चार चोर ,
चोरी ही किया  कीजिये ,
लूट कर हर लाज को ,
बस लाश दिया कीजिये ,
पीट कर हर शाम को ,
खामोश रात बस लीजिये ,
आलोक बेनकाब सरेआम ,
अँधेरे में शर्म तो कीजिये ,..............पता नहीं क्या कहने के लिए लिखता चला गया .......
,


Sunday, 25 May 2014

कड़वा सच

मेरा गुनाह सिर्फ इतना रहा ,
मैं हिमालय से निकल पड़ी ,
निर्मल , बेदाग जिंदगी लेकर ,
पर तुम्हे कहा पसंद ,
सच्चाई और अपने रास्ते.
लो अब तो खुश हो लो ,
मैं तुम जैसी हो गयी ,
मेरी पारदर्शी जिंदगी ,
अब तो मैली सी हो गयी ..................
अगर आप एक सच बन कर जिन चाहते है तो दुनिया के मैले लोग आपको अपने खातिर वैसा ही बना डालेंगे जैसे वो है और देखिये न पुरुष अपने लिए नारी को उसके स्तर से गिरता है और खुश होता है क्योकि अब उससे ज्यादा नारी मैली कहलाती है ...........

Saturday, 24 May 2014

आवारापन

आज लोग क्यों मुझे
मुझे आवारा कह गए ,
जमीन के टुकड़े बस ,
बंजर से अब रह गए ,
न बो सका एक बीज ,
न की कोई ही तरतीब.
पसीने का एक कतरा,
भी नही बहाया मैंने ,
न तो मैं कभी थका,
और ना ही उतरी थकान ,
आलोक कैसे चुनता अँधेरा ,
कैसे होता सृजन महान ,
मुझे आवारा कह कर ,
क्यों बादल बना रहे हो ,
धरती की अस्मिता को ,
घाव सा हरा कर रहे हो,
कहते क्यों नहीं तुम्हे ,
अपने सुख की आदत है ,
तुम्हारी ख़ुशी के लिए ,
जमी की आज शहादत है ,
जी लेने दो हर टुकड़े को ,
वही सच्ची इबादत है ..............पता नहीं क्यों मानव ने संस्कृति बनाने के बाद एक अजीब सी फितरत पाल ली कि अगर लड़का लड़की साथ में है तो सिर्फ एक ही काम होगा या फिर लड़की का मतलब ही सिर्फ एक ही है अगर आप अकेले है तो आप से कोई जरूर पूछ लेगा क्या भाई ???????????कोई मिली नहीं क्या ? अगर किसी के साथ है तो और भाई आज कल तो आपके बड़े मजे है शायद इसी मानसिकता के लिए हमने संस्कृति बनाई ....सोचियेगा जरूर

Friday, 23 May 2014

नीर की पीर

आँखों के बादल से ,
निकल कुछ बून्द ,
दौड़ पड़ी कपोल ,
तन की धरती पर ,
किसी के मन में ,
हरियाली फैली तो ,
कोई दलदल में डूबा ,
अविरल धारा देख किसी ,
दिल का सब्र था उबा ,
खारा पानी आया कैसे ,
समुद्र कहाँ से टूटा,
नैनो की गहराई में ,
कौन रत्न है छूटा ,
छिपा बादलों में सूरज ,
आलोक नीर ने लूटा ,
....................जब भी दुनिया को पानी की जरूरत हुई है तो आलोक को बादलों में छिपाना पड़ा है या फिर धरती की अतल गहराई के अंधकार से उसे निकलना पड़ा है पर आज दुनिया अँधेरे में नही रहना चाहती इसी लिए उसके आँखों में पानी नहीं रह गया है जब भी कोई रॉय है तो आप मान लीजिये कि उसने मान लिया है कोई सच्चाई ( आलोक ) उसके भीतर छिपा है

Thursday, 22 May 2014

जिंदगी

ये धूप सी फैली जिंदगी ,
काश समेट लेता आँखों में ,
शायद अपनी बाँहों में ,
दुनिया को देखने की आरजू ,
हर आँखों में उम्र भर जैसे ,
क्या है इन सांसो की राहों में ,
सब ने एक टुकड़ा थाम लिया .
अपना समय काटने के लिए ,
मैं क्यों इतना बेचैन सा रहा ,
क्या यहाँ कुछ पाने के लिए,
निकल लो तुम भी कभी ,
मुझे एक दिन पागल कह कर
जिंदगी कही तुम उबी तो नहीं ,
मुझे ही आज मौत कह कर,
जिंदगी एक बार धूप सी आओ ,
मुझे नही सबको भिगो जाओ ,
आँखों के अँधेरे  में डूबे सपने ,
कभी तो आलोक में दिखाओ

..................जिंदगी को हर पल महसूस कीजिये क्योकि यही एक ऐसी धरोहर है जो आपके पास कब तक है आप बता नहीं सकते ये जिंदगी लक्ष्मी से भी ज्यादा चंचल है