भगत सिंह .......................भुगत सिंह
छाती ५६ इंच की हो जाती है आपकी और हो भी क्यों ना आखिर आपके देश में ही तो भगत सिंह हुए थे ना !!!!!क्या नहीं जानते भगत सिंह को ??????????/अरे वही वाले भगत सिंह जिनके पिता ने उनसे पूछा कि भगत खेत में क्या बो रहे हो जमीन को खोद रहे भगत बोले पिता जी बंदूक बो रहा हूँ और एक दिन उनकी बंदूक जमीन से निकली भी और देखते देखते अंग्रेज की तबियत नरम हो गयी पर भैया भला हो गांधी जी का जिनको ये खून खराबा बिलकुल पसंद नहीं था और उनको पता था कि अंग्रेज अंहिसा प्रेमी है उनको भी गोला बारी प्रिये नहीं ( अब ये ना कहियेगा कि मैं इतिहास नहीं जानता भला कभी अंग्रेजो ने कोई गोली चलायी वो तो उन्होंने सिर्फ तफ़रीह में अनेको क्रांतिकारियों को मार डाला आखिर अंहिसा वाले को भी तो मारने का मजा मिलना चाहिए ) बस फिर क्या था गांधी जी भी हो गए भगत के विरोधी और जो व्यक्ति १९१० में पैदा हुआ उसका अंग्रेजो ने १९३१ में फांसी दे दी वो भी रात में क्योकि जैसे ही देश के लोगो ने सुना ( अरे भैया गांधी की नेहरू की बात नही कर रहा मैं तो देश वासियों की बात कर रहा हूँ ) वो सब जेल के दरवाजे पर इकठ्ठे हो गए और बवाल के डर अंग्रेजो ने भगत सिंह को रात में ही फांसी दे दी | वैसे गांधी जी चाहते तो भगत सिंह छूट सकते थे ( भैया मैं नहीं इतिहास कार लिख गए है ) पर भला गांधी जी ये कैसे बर्दाश्त कर लेते कि अतिथि देवो भाव वाले देश में कोई भारतीय अंग्रेजो को आँख उठा कर देख ले या मार दे | गांधी के लिए देश बड़ा व्यक्ति नहीं था और तब तो बिलकुल नहीं जब विदेशी का अपमान हो उसे मार जाये आखिर गांधी उसी अंग्रेज के देश में वकालत पढ़ कर आये थे तो क्या उनका इतना भी फर्ज नहीं बनता कि वो भगत सिंह की फांसी को सही ठहराए | गांधी के लिए अपने देश ( पता नहीं क्या फिर भी पाकिस्तान बनवा गए ) और देश में अतिथि ( अंग्रेज जैसे लुटेरों ) से ऊँचा कुछ नहीं था और यही बात देश के भगत सिंह नहीं समझ पाये और देखते देखते भुगत गए .....अब ना कहियेगा कि भगत सिंह को भुगत सिंह क्या कहना चाहिए ( व्यंग्य के अर्थ को समझे , अखिल भारतीय अधिकार संगठन ऐसे महान सपूत को नमन करता है ) डॉ आलोक चान्टिया
छाती ५६ इंच की हो जाती है आपकी और हो भी क्यों ना आखिर आपके देश में ही तो भगत सिंह हुए थे ना !!!!!क्या नहीं जानते भगत सिंह को ??????????/अरे वही वाले भगत सिंह जिनके पिता ने उनसे पूछा कि भगत खेत में क्या बो रहे हो जमीन को खोद रहे भगत बोले पिता जी बंदूक बो रहा हूँ और एक दिन उनकी बंदूक जमीन से निकली भी और देखते देखते अंग्रेज की तबियत नरम हो गयी पर भैया भला हो गांधी जी का जिनको ये खून खराबा बिलकुल पसंद नहीं था और उनको पता था कि अंग्रेज अंहिसा प्रेमी है उनको भी गोला बारी प्रिये नहीं ( अब ये ना कहियेगा कि मैं इतिहास नहीं जानता भला कभी अंग्रेजो ने कोई गोली चलायी वो तो उन्होंने सिर्फ तफ़रीह में अनेको क्रांतिकारियों को मार डाला आखिर अंहिसा वाले को भी तो मारने का मजा मिलना चाहिए ) बस फिर क्या था गांधी जी भी हो गए भगत के विरोधी और जो व्यक्ति १९१० में पैदा हुआ उसका अंग्रेजो ने १९३१ में फांसी दे दी वो भी रात में क्योकि जैसे ही देश के लोगो ने सुना ( अरे भैया गांधी की नेहरू की बात नही कर रहा मैं तो देश वासियों की बात कर रहा हूँ ) वो सब जेल के दरवाजे पर इकठ्ठे हो गए और बवाल के डर अंग्रेजो ने भगत सिंह को रात में ही फांसी दे दी | वैसे गांधी जी चाहते तो भगत सिंह छूट सकते थे ( भैया मैं नहीं इतिहास कार लिख गए है ) पर भला गांधी जी ये कैसे बर्दाश्त कर लेते कि अतिथि देवो भाव वाले देश में कोई भारतीय अंग्रेजो को आँख उठा कर देख ले या मार दे | गांधी के लिए देश बड़ा व्यक्ति नहीं था और तब तो बिलकुल नहीं जब विदेशी का अपमान हो उसे मार जाये आखिर गांधी उसी अंग्रेज के देश में वकालत पढ़ कर आये थे तो क्या उनका इतना भी फर्ज नहीं बनता कि वो भगत सिंह की फांसी को सही ठहराए | गांधी के लिए अपने देश ( पता नहीं क्या फिर भी पाकिस्तान बनवा गए ) और देश में अतिथि ( अंग्रेज जैसे लुटेरों ) से ऊँचा कुछ नहीं था और यही बात देश के भगत सिंह नहीं समझ पाये और देखते देखते भुगत गए .....अब ना कहियेगा कि भगत सिंह को भुगत सिंह क्या कहना चाहिए ( व्यंग्य के अर्थ को समझे , अखिल भारतीय अधिकार संगठन ऐसे महान सपूत को नमन करता है ) डॉ आलोक चान्टिया