आज कल छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में निजी कॉलेज की बाढ सी आ गयी है.जिधर देखो बस निजी महाविद्यालय ही नजर आएगा.वर्तमान समय में प्रदेश सरकार के सत्ता में भागीदार लोग भी उच्च शिक्षा को एक अच्छा व्यवसाय समझ कर अपना रहे है.प्रदेश शासन में भागीदार विधायक और मंत्री भी या तो खुद महाविद्यालय खोल रहे है या फिर खुद सभी प्रकार के कानूनी और सामाजिक झमेलों से बचने के लिए अपने रिश्तेदारों के नाम पर महाविद्यालय खुलवा रहे है.आज उच्च शिक्षा को एक अच्छे टैक्स फ्री व्यवसाय के रूप में देखा जा रहा है.आज शायद ही इस विश्वविद्यालय से संबध कोई ही ऐसा निजी महाविद्यालय होगा जिसमे शिक्षा का मानक के अनुरूप माहौल हो.इस विश्वविद्यालय से सम्बध्द सभी निजी महाविद्यालय नक़ल के दम पर चलाये जा रहे है.इन सभी निजी महाविद्यालय में टीचर की प्रतिभाओं का ह्रास हो रहा है.जो टीचर इन निजी महाविद्यालय में सालो से पढ़ा रहे है उन टीचरों ने अपनी बहुत सी प्रतिभाये इन निजी महाविद्यालय में आ कर खो दी है.इन निजी महाविद्यालय में कुछ सालो तक काम करने के पश्चात टीचर अनेक मानसिक विकारो से ग्रस्त हो जाता है.इन निजी महाविद्यालय में काम करने वाले अनुमोदित शिक्षको को ५ हजार से १० हजार तक वेतन दिया जाता है.अधिकांश टीचरों को ५ से ७ हजार तक वेतन दिया जाता है.सभी टीचरों को ये वेतन १२ महीने नही मिलता है.अधिकांश टीचरों को वेतान १० या ११ महीने तक ही दिया जाता है.विश्वविद्यालय की परीक्षा शुरु होते ही इन टीचरों का वेतन रोक दिया जाता है.मार्च के महीने से लेकर जुलाई के महीने तक निजी महाविद्यालय के टीचर भुखमरी की कगार पर आ कर खड़े रहते है.इन निजी महाविद्यालय में जो टीचर काम करते है अधिकंश्ता ये टीचर क्षेत्रीय नहीं होते है .ये टीचर काफी दूर से महाविद्यालय में पढ़ने के लिए आते है.किराये भाड़े के रूप में ये टीचर ५०० से १००० रुपये एक महीने में खर्च कर देते है.एक तो इतना काम पेमेंट ऊपर से आने जाने का किराया,ये निजी कॉलेज के टीचर मुश्किल से खर्च चला पाते है.छुट्टी के दिनों में ये टीचर अपने परिवार को जिन्दा रखने के लिए मिलो में और कारखानों में मजदूरी करते है.खली समय ,जो इन निजी महाविद्यालय के टीचरों को अपनी प्रतिभा निखारने का मिलता है ये उस समय अपने परिवार को जिन्दा रखने की लड़ाई लड़ रहे होते है.दूसरा प्रतिभा निखारने का माहौल इन निजी महाविद्यालय में नहीं होता है.ये तो बस शिक्षा की दुकाने है जो कुटा(KUTA) और शासन के इशारे पर चल रही है.इन निजी महाविद्यालय में जो टीचर काम करते है खाली समय में इन टीचरों से बाबूओ का काम कराया जाता है.अगर निजी महाविद्यालय के पुस्कालय की बात करे तो पुस्तकों के नाम पर कोर्स से हट कर किताबे होती है.रेफेरेंस बुक का तो दूर दूर तक नमो निशान नहीं होता है.निजी महाविद्यालय में छात्र टीचर पर दबाब बना कर रखता है .टीचर छात्र पर नहीं.अगर छात्र को मौका मिल जाता है तो वो टीचर की पिटाई भी कर देता है.टीचर की बेज्जती के मामले में कोई कुछ नहीं बोलता है क्यों इन निजी महाविद्यालय का सीधा संचालन प्रबंध के द्वारा होता है और प्रबंधक को इन सब से कोई मतलब नहीं होता है उसे तो मतलब बस पैसे से होता है.
निजी महाविद्यालय में छात्र टीचर पर दबाब बना कर रखता है .टीचर छात्र पर नहीं.अगर छात्र को मौका मिल जाता है तो वो टीचर की पिटाई भी कर देता है.टीचर की बेज्जती के मामले में कोई कुछ नहीं बोलता है क्यों इन निजी महाविद्यालय का सीधा संचालन प्रबंध के द्वारा होता है और प्रबंधक को इन सब से कोई मतलब नहीं होता है उसे तो मतलब बस पैसे से होता है.
ReplyDelete100% true is any body here this matter
jini mahavidhyalaya me teacher apna maan sammaan bachaane ke liye dab kar rhta hai.agar chhatr ko mauka milta hai to vah teacher ko peet bhi deta hai.esa naubat mere sath aate aate bachi hai yaa fir ye kaho ki dimag se kaam liya is vajah se bach gya,varna esa mere sath bhi ho chuka hota.
ReplyDeleteniji college ka teacher hota hi hai pitne aur shoshan ke liye.jab vodhayak aur minister ki shiksha ki dukane hogi to esa hi hoga.sab maun hai jaise niji mahavidhyalaya ka teacher mar gya ho.,
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