साथियों आज शिक्षा व्यवस्था में जो गिरावट आई है उसके पीछे क्षुद्र एवं निजी स्वार्थ से भरे उद्देश्यों को साथ लेकर चलने वाले शिक्षक संगठनों का भी बड़ा हाथ रहा है. पिछले अनेक वर्षो से संगठनों के पदाधिकारी ऐसे लोग बने जो निजी लोभ, छोटे संकीर्ण उद्देश्यों के चलते अपने को सीमित करते चले गए. लोगों को संगठन में जोड़ने की बजाय स्वयं को ही तोड़ने में लग गए. जिसने भी इनकी नीतियों के विरोध किया उसे संगठन विरोधी करार कर किनारे लगाने की कोशिश की जाने लगी. ऐसे में आम शिक्षक का संगठन के प्रति उत्साह ख़त्म हो गया. और दुर्भाग्यवश एक ऐसे समूह का उदय हुआ जिसके उद्देश्य शिक्षा एवं शिक्षण व्यवस्था में सुधार , शिक्षक के अधिकारों की लड़ाई (पैसा प्राप्ति छोड़) व कर्तव्यों का अनुपालन तो दूर निजी हित में संगठन को इस्तेमाल करना हो गया . डिग्री शिक्षा से जुड़े संगठनों के पदाधिकारियों से अगर आप उनकी शैक्षणिक सुधार योजना या शिक्षकों की सेवा शर्तों में सुधार की बात करें , पाठ्यक्रम सुधार की बात करें, शोध गुणवत्ता पर बात करें तो यकीन मानिये ये बगलें झांकते नजर आयेंगे. हाँ अगर ये बात करें की विश्वविद्यालय के किन कार्यों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धन कमाया जा सकता है, कौन सी कमिटी लाभ वाली हैं कौन सी बेकार माथापची वाली तो शायद ये एक पुस्तक की रचना कर देंगे. अगर आप ध्यानपूर्वक गौर करें तो पाएंगे की हमारे संगठन के पदाधिकारी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की जाने वाली किसी भी परीक्षा के समय सबसे अधिक सक्रिय हो जाते है. अपना कालेज, पढना पढाना, घर बार ,सब छोड़ विश्वविद्यालय के बाबू, चपरासी तक का कार्य सँभालने को तैयार हो जाते हैं. सेंटर बनवाना ,उड़नदस्ते बनवाना , परीक्षको की लिस्ट बनवाना उनको बुलाना उनके चेक बनवाना, उनके पास भेजना, भिजवाना ये शिक्षक नेता ,समाज के सबसे प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिनिधि का मुख्य कार्य हो गया है. इन कार्यों से ये समाज एवं छात्रों को क्या सन्देश दे रहें हैं, उच्च शिक्षा को किस दिशा में ले जा रहें हैं, यह शायद ईश्वर या इनके स्वयं के अतिरिक्त कोई नहीं जानता है. संगठन के संविधान में पदाधिकारियों के कर्तव्यों में इन प्रमुख कार्यों का उल्लेख कहीं भी नहीं है.वह इसमें गर्व का अनुभव करता है की इतने लोगों को ओब्लायिज किया. धन कमाना है कमवाना है नेतागीरी चलाने का सवाल है. किसको कितना कमवा दिया, अगले चुनाव जीतने का आधार है.अभी कुछ दिन माह पूर्व कूटा द्वारा आयोजित एक सेमिनार में गया, विषय था "कक्षाओं में घटती छात्र संख्या". सेमिनार मात्र एक दिखावा, एक पब्लिसिटी स्टंट मात्र था उसके पीछे जो करने की मंशा थी वो पूरी की गयी. हमारे किसी भी गणमान्य पदाधिकारी नें इस अच्छे विषय पर चर्चा में रूचि नहीं दिखाई. नतीजा सेमिनार मात्र एक पाखंड बनकर रह गया,जिसके भागीदार माननीय कुलपति एवं प्रति कुलपति भी हैं . आज जो शैक्षणिक स्तर में गिरावट है कहीं न कहीं हमारे पदाधिकारियों का भी हाथ है. और पदाधिकारी शिक्षक ही चुनते हैं, यह बात उच्च शिक्षा जगत के प्रति चिंता जनक चेतावनी देता प्रश्न है. विश्वविद्यालय स्तर से प्रदेश स्तर तक इसी मानसिकता का लाभ लेकर ९० के दशक में बड़ी चालाकी से सरकार नें महाविद्यालयों में पहले वित्तविहीन योजना एवं कालांतर में स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों की स्थापना सम्बन्धी विधेयक पारित करा लिए. हमारे बड़े बड़े पदाधिकारी नेतागीरी चमकाने के लिए दिखावे के लिए थोडा बहुत हो हल्ला किये लेकिन इतना नहीं की सरकार इन इन योजनाओं को वापस ले ले. आखिर उन्हें भी तो अपने प्रबंध तंत्र स्थापित कर सरकार सहारे धनवान बनने के स्वप्न पूरे करने थे. आज स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है जिसे कहा जाय, कुएं में ही भांग पड़ी है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. डॉ. बी डी. पाण्डेय
तू मुझे खुजा मै तुझे खुजाऊ की तर्ज़ पर ये संगठन काम करते है
ReplyDeleteसत्य लिखा आपने
aaj kuta shikshak santhan ke name par kalank hai.aaj kuta ke log khud hi apni apni shiksha ki dukane khole huye baithe hai.ye kya uchh shiksha ki gandgi saf karege jo khud hi gande hai.
ReplyDeleteaaj kuta me DDT ka chhidkav chahiye,deemak jyada lag gyi hai
ReplyDeleteaaj kuta apne uddeshy se niji svarth ki vajah se bhatk gyi hai
ReplyDeleteश्री रामअवतार महाविद्यालय सिकंदरा से ६ किलोमीटर दूर भोगनीपुर रोड पर है.यह महाविद्यालय छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविध्यालय से संबध है.इस महाविद्यालय में पूरे साल भर कोई पदाई नही होती है.यह महाविद्यालय में केवल एक टीचर रहता है वाही इस महाविद्यालय के प्राचार्य का काम देखता है .इसके प्रबंधक महोदय किसी भी टीचर को पूरे साल भर कोई पेमेंट नहीं देते है.इस महाविद्यालय में सभी टीचर का फर्जी अनुमोदन है.यह महाविद्यालय क्षेत्र में नक़ल के लिए प्रसिध्द है.इस महाविद्यालय में दूर दूर से छात्र नक़ल करने के लिए दाखिला लेते है.इस महाविद्यालय के प्रबंधक रामअवतार कटियार है और इसके प्राचार्य का कार्य अश्वनी कटियार देख रहे है जिनकी अभी हाल में ही रिसर्च की डिग्री पूर्ण हुयी है.
ReplyDeleteयह चिंता की बात है।
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देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।