आज शिक्षा माफ़िया में छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से संबध करके निजी महाविद्यालय को खोलने की होड़ लगी हुयी है तथा अनेक शिक्षा माफिया अपनी स्नातक और परास्नातक तथा बी एड और एम् एड की मान्यता को स्थायी करवाने में लगे हुए है.एक अनुमान के मुताबिक इस वर्ष १०० से अधिक निजी महाविद्यालय की शिक्षा की नयी दुकाने इस विश्वविद्यालय से इस साल जुड़ने वाली है.इस साल विश्वविद्यालय के जो कर्मचारी मान्यता देने की इस प्रक्रिया में शामिल है उन को लाखो रुपये की काली कमाई हो रही है.मान्यता देने की इस प्रक्रिया में विश्वविद्यालय के कर्मचारी महाविद्यालय के मानक कम और नोटों की गद्दिया ज्यादा देखते है.इन कर्मचारियों का असल में महाविद्यालय से कोई लेना देना होता ही नहीं है लगर लेना होता है तो वो होता है रिश्वत से.कौन महाविद्यालय कितनी अधिक रिश्वत दे रहा है बस इस बात से मतलाब होता है क्योकि विश्वविद्यालय के कर्मचारी भली भाति जानते है के इन निजी महाविद्यालय में न तो इनके बच्चे पढेगे और नहीं इनके रिश्तेदार पढेगे अगर एसा होता भी है तो फिर इन निजी महाविद्यालय में इनके लिए अलग से कॉपी लिखने की व्यवथा हो जाएगी.आज इस विश्वविद्यालय से संबध शायद ही कोई निजी महाविद्यालय होगा जिसके पुरे मानक हो.अरे पुरे मानक तो छोडो आधे मानक ही हो.फिर भी विश्वविद्यालय मान्यता देने में लगा हुआ है क्यों की विश्वविद्यालय के कर्मचारी रिश्वत ले कर कागजो में मानक पुरे कर देते है.इस वर्ष अनेक महाविद्यालय को स्थायी मान्यता दी जा रही है और वो भी इस शर्त पर की इसके बदले नोटों की मोती गद्दी चाहिए.हैरान कर देने वाली बात तब होती है जब महाविद्यालय ३ साल शिक्षण कार्य कर चुकाने के बाद भी उसके मानक पुरे नहीं होते है फिर भी विश्वविद्यालय उसे स्थायी मान्यता दे रहा है वो भी केवल नोटों के दम पर.विश्वविद्यालय के कर्मचारी स्थायी मान्यता देते वक्त न तोयह देखते है की अनुमोदित टीचर है की नहीं और न ही यह देखते है की इन टीचरों को वेतन दिया गया की नहीं और न ही छात्रो की योग्यता की जांच करते है बस एक बात की ही जांच कटे है वो है नोटों की गद्दिया .कुलपति जी से इस ब्लॉग के मध्याम से अनुरोध है की निजी महाविद्यालय की कमसे कम स्थायी मान्यता देते समय इन बातो का ध्यान अवश्य रखे-
१-सम्बंधित महाविद्यालय में अनुमोदित टीचरों से अध्यापन कार्य करवाया गया है की नहीं इस बात की जानकारी छात्रो से गुप्त तरीके से करे।
२-छात्रो की योग्यता की भी जांच करे।
३-अनुमोदित टीचरों को वेतन ठीक तरह से दिया गया है की नहीं ।
४-पुस्तकालय की किताबे छात्रो में दी गयी की नहीं।
५-छात्रो के खेलकूद की व्यवस्था गत वर्षो में क्या थी।
६-महाविद्यालय की प्रयोगशाला में गत वर्षो में प्रयोगात्मक काम छात्रो ने किया है की नहीं इसकी जांच छात्रो की योग्यता की जाए।
७-महाविद्यालय में छात्रो के लिए शुध्द पेय जल के साधन उचित है की नहीं।
८-छात्रायो के लिए अलग से लेडिज प्रसाधन की व्यवस्था है की नहीं।
९-छात्राओं के लिए कोमन रूम की व्यवस्था है की नहीं .कोमन रूम में उनके बैठने के लिए फर्नीचर है की नहीं.
त्रिपाटी जी आप ने जो लिखा है वो सोलह आने सच बात कही है.अगर एसा हो जाये तो विश्वविध्यालय के कर्मचारियों की काली कमाई पर अंकुश लग जायेगा इसलिए एसा होगा नहीं.क्योकि कुटा के सदस्य कभी नहीं चाहते है की उनकी काली कमाई बंद हो.
ReplyDeleteश्रीमान जी आप इन कुलपति महोदय से ये उम्मीद बेकार लगाये हुए है.इन कुलपति महोदय ने सिस्टम में बहार से साफ और अन्दर से भ्रष्टाचार फैला रखा है.ये कुलपति महोदय जनता की आँखों में सरेआम मिर्ची झोकते है.इसका एक छोटा सा उदाहराण आप के सामने पेश कर रहा हु-कानपूर देहात में एक ही प्रबंध तंत्र के एक ही नाम के दो महाविद्यालय है जो इस प्रकार से है
ReplyDelete१-श्री कृष्ण जनकदेवी महाविद्यालय रूरा कानपूर देहात
२-श्री कृष्ण जनका देवी महाविद्यालय दिलबल मंगलपुर कानपूर देहात.
कुलपति महोदय सहगल और प्रो कुलपति महोदय नन्दलाल ने २६ मार्च को इन दोनों परीक्षा केंद्र में नक़ल पकड़ी (आप २७ मार्च का हिन्दुस्तान अखवार कानपूर सस्करण में इसे देख सकते है).विश्वविध्यालय का उड़न दस्ता ८ अप्रैल को श्री कृष्ण जनकदेवी महाविद्यालय दिलबल मंगलपुर कानपूर देहात के परिखा केंद्र पर जाता है और इस उड़नदस्ते की जम कर पिटाई की जाती है (देखे ९ अप्रैल का ''आज'' अख़बार कानपूर संस्करण के पेज संख्या २ पर )मामला थाने तक पहुचा.विश्वविद्यालय के इस उड़न दस्ते की टीम में डॉ वी पी सिंह,रविन्द्र कटियार आलोक ,अनिल कुमार शामिल थे.इस उड़न दस्ते पर वसूली का इल्जाम लगाया गया था.घटना स्थल पर थोड़ी देर के पश्चात कुलपति सहगल भी पहुच गए.
अब देखे छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति सहगल की कार्यवाही
कुलपति महोदय ने एक ही नाम के दोनों महाविद्यालय के नाम का फायदा उठा कर एक महाविद्यालय श्री कृष्ण जनकदेवी महाविद्यालय रूरा कानपूर देहात पर नक़ल की कार्यवाही की.दुसरे महाविद्यालय (,जिसमे उड़न दस्ते को जम के धुना गया ) को छोड़ दिया .इस तरह से जनता की आँख में खुद मिर्ची झोकी कुलपति महोदय ने.सूत्रों से यह भी पता लगा है की इन में से एक महाविद्यालय में इस वर्ष बी एड की स्थायी मान्यता विश्वविद्यालय देने जा रहा है.बी एड की स्थायी मान्यता भी हो जाएगी क्यों रिश्वत के पैसे में बहुत दम है भैया.
कानपूर विश्वविद्यालय से मान्यता का मतलब पैसा.आज शायद कानपूर विश्वविद्यालय प्रदेश का सबसे भ्रष्ट विश्वविद्यालय बन गया है.इस भ्रष्टाचार की देंन कुटा के वर्तमान स्थिति है.इस विश्वविद्यालय में मान्यता विकती है इसीलिए तो आज इस विश्वविद्यालय में सबसे अधिक निजी महाविद्यालय है.ये बात सही है की इस साल बहुत से महाविद्यालय की स्थायी मान्यता होने जा रही है किसी महाविद्यालय में बी एड की तो किसी में एम् ए की .विश्वविद्यालय के कर्मचारी को इससे क्या उसे तो बस नोटों से मतलब है.महाविद्यालय में अनुमोदित टीचर है की नहीं ,टीचर को पेमेंट दिया गया की नहीं क्या मतलब.अगर एम् ए की स्थायी मान्यता हो रही है तो केवल एम् ए की ही केवल कागजी कार्यवाही होगी बाकी बी ए या एनी संकाय की कागजी कार्यवाई से भी कोई मतलब नहीं.रही बात प्रो. हर्ष कुमार सहगल की तो आप सब जानते है की कानपूर विश्वविद्यालय के कुलपति के पद की दौड़ में काफी नाम थे जिसकी पहुच अधिक थी उसने पा लिया.सहगल भी कोई दूध के धुले नहीं है जो राजेश जी ने स्पष्ट कर दिया है.हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और
ReplyDeletebaat sahi hai.SAHGAL hathi ke dant dikha rha hai.
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