कानपुर यूनिवर्सिटी का एक और गोरख धंधा
स्ववित्तपोषी कालेज एवं अंशकालिक के प्रवक्ताओ का जो की पहले ही शोषण के शिकार है परीक्षा पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के दौरान शिक्षक कल्याण के नाम पर ५ परसेंट पारिश्रमिक काट लिया जाता है और मजे की बात यह है की इनको वापस कभी भी किसी कैजुएलटी के बाद उस फंड से एक फूटी कौड़ी नही मिलती. विश्विद्यालय में ऊंची रसूख वाले टीचर्स और उनके पिछलग्गू रिश्तेदारों समेत टी डब्ल्यू ऍफ़ का पैसा मनमानी तरीके से खा जाते है.
कुलपति महोदय से अनुरोध है की इस सम्बन्ध में सार्थक कदम उठाये ताकि विश्वविद्यालय में न्याय पूर्ण प्रणाली दुरुस्त तरीके से कर कर सके.
प्रिय यादव जी
ReplyDeleteआपने जो कहा सोलह आने सच है. बात यहीं पर नहीं खत्म होती. टी डब्लू ऍफ़ फंड की वितरण सम्बन्धी मीटिंग की तिथियों पर गौर करें तो पायेंगे की प्रत्येक कूटा चुनाव के कुछ दिन पूर्व यह बैठक अनिवार्य रूप से होती है. और इसकी चेक पदाधिकारी अपने कब्जे में लेकर जगह जगह वोट देने का वादा लेकर बांटते हैं . इसके माध्यम से पैसा प्राप्त किये अधिकांश लोग कूटा चुनाव में वोटर होतें हैं. अगर पिछले कुछ चुनावों के वोटरों और इस फंड से लाभान्वित लोगों की लिस्ट का मिलान किया जाय तो स्थिति काफी हद तक स्पस्ट हो जाती है. कूटा २००८ चुनाव में चुनाव के दिन तक यह चेक बांटी गयी और बदले में वोटों की खरीद की गयी. एक अच्छा धंधा है पदाधिकारियों के लिए चुनाव के वक्त वोट बटोरने का. अधिकाँश ऐसे लोग इस फंड से पैसा प्राप्त करतें हैं जिनकी आर्थिक स्थिति किसी भी रूप में कमजोर नहीं है. वास्तव में जरूरतमंद लोग इसका लाभ बहुत ही कम उठा पातें हैं---डॉ. बी. डी.पाण्डेय
इस सम्बन्ध में जल्द ही सूचना के अधिकार के तहत ब्यौरा माँगा जायेगा
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