रात फिर मुझे अकेला कर रही है ..........
दुनिया में ही सब से दूर कर रही है .......
सामने होकर भी सबसे दूर हो रहे .....
नींद इस कदर मजबूर कर रही है ........
कितने विश्वास से आँख बंद हो रही ......
कल खुलेंगी इसी लिए सो रही है .......
मिलेंगे कितने खुली आँखों से फिर ....
रिस्क को लेकर खुद से खो रही है .....
जब सपनो का सफ़र अकेले चले हो ........
फिर किसी की इच्छा क्यों हो रही है ........
जब काट देते हो कालिमा इस तरह से ...
उजाले से क्यों फिर घबराहट हो रही है.... जब हम सब रात के अँधेरे को अकेले सोकर काटने का सहस रखते है तो फिर दुइअ के उजाले में आने वाले किसी भी स्थिति को देख कर भाग क्यों पड़ते है .....मुकबला करिए ..हम मनुष्य है .....शुभ रात्रि
दुनिया में ही सब से दूर कर रही है .......
सामने होकर भी सबसे दूर हो रहे .....
नींद इस कदर मजबूर कर रही है ........
कितने विश्वास से आँख बंद हो रही ......
कल खुलेंगी इसी लिए सो रही है .......
मिलेंगे कितने खुली आँखों से फिर ....
रिस्क को लेकर खुद से खो रही है .....
जब सपनो का सफ़र अकेले चले हो ........
फिर किसी की इच्छा क्यों हो रही है ........
जब काट देते हो कालिमा इस तरह से ...
उजाले से क्यों फिर घबराहट हो रही है.... जब हम सब रात के अँधेरे को अकेले सोकर काटने का सहस रखते है तो फिर दुइअ के उजाले में आने वाले किसी भी स्थिति को देख कर भाग क्यों पड़ते है .....मुकबला करिए ..हम मनुष्य है .....शुभ रात्रि
उजाला तो जीवन है इससे कैसी घबराहट ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति ...