Thursday, 18 July 2013

path ke rahi

जिन राहों पर फूल बिछे हो ......
उन राहों का मैं क्या करूँ ..............
काँटों पर चल कर ना पाऊं .........
वो प्रगति का मैं क्या करूँ ........
बूंद बूंद कर खुशियों को मांगू........
हो सागर तो मैं क्या करूँ ................
मुट्ठी में गर बंद आलोक हो ........
ऐसे अंधेरो का मैं क्या करूँ ............मुझको मालूम है कि एक अच्छे काम करने के लिए कितने संघर्ष करने पड़ते है दुनिया को किलकारी देने वाली माँ ही जानती है कि उसने एक शरीर को बनाने  में कितने दर्द और अपना खून मांस  लगाया है ..........शुभ रात्रि

1 comment:

  1. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

    ReplyDelete