Friday 29 April 2011

कूटा की प्रासंगिकता

कानपुरविश्वविद्यालय शिक्षक संघ द्वारा अनुदानित महाविद्यालयों के नियमित शिक्षकों को १/१/२००६ से नवीन वेतनमान पुनरीक्षण के फलस्वरूप देय दिसंबर २००८ तक के एरिएअर का भुगतान प्रदेश शासन द्वारा न किये जाने के विरोध में आज विश्वविद्यालय परिसर में सांकेतिक धरने का आयोजन किया गया। सैंकड़ो शिक्षक मुल्यांकन हेतु विश्वविद्यालय परिसर में उपस्थित थे । आशा थी की काफी भीड़ भाड़ होगी । परन्तु पहुँचने पर आश्चर्य हुआ की मात्र ५०-१०० शिक्षकों की उपस्थिति थी और वह भी तब जब कूटा के पदाधिकारी मूल्याङ्कन भवन में शिक्षकों से बार बार चिरौरी करने गए। धरने की मुख्य बात इस तथ्य को स्वीकारना रहा की संगठन को मजबूत करने की आवश्यकता है। मैंने इस बात को प्रमुखता से उठाया की स्ववित्त पोषित महाविद्यालय खोलकर शासन अनुदानित शिक्षकों के विरुद्ध एक बड़ी लकीर खीचकर उन्हें हाशिये पर लाने की कोशिश कर रहा है। अगर समय रहते नहीं चेता गया , समस्त शिक्षकों को एक मंच पर नहीं लाया गया ,तो कोई और बचे न बचे अनुदानित महाविद्यालय धीरे धीरे समाप्त हो जांयेंगे और साथ ही अनुदानित महाविद्यालयों के शिक्षकों का अस्तित्व स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। तमिलनाडु का उदहारण लें, हाल ही में वहां की सरकारनें राज्य के दो प्रमुख अनुदानित कालेज त्यागराज कालेज , मदुरै और पी एस जी कालेज ,कोयम्बतूर को अपग्रेडेशन के नाम पर प्राइवेट विश्वविद्यालय घोषित करने का प्रयास किया लेकिन वहां के जागरूक शिक्षक संगठनो नें ऐसा घोर विरोध किया किया की सरकार को घोषणा वापस लेनी पड़ी। काश हमारे शिक्षक संगठन भी ऐसी ही जागरूकता शिक्षा एवं शिक्षक साथियों के प्रति रखते तो दोनों की दुर्दशा आज प्रदेश में इस प्रकार न होती। आज शिक्षक संगठन कोई दीर्घकालिक लक्ष्य एवं सोच न होने के कारण मात्र केवल खानापूरी के लिए है। पदाधिकारी अपने अपने छोटे छोटे निजी लक्ष्यों के पूर्ति में संलग्न हैं। ऐसे में शिक्षक किसी धरने प्रदर्शन में जाए ही क्यों। पदाधिकारी आज कापी जांचना छोड़कर कर धरने में न आने वाले शिक्षकों को कोसते रहे। क्या यह भी सोचा की क्यों ऐसा हो गया की शिक्षक के लिए १० रु प्रति कापी संगठन से अधिक महत्वपूर्ण क्यों हो गयी। शिक्षक के लिए क्या संगठन की कीमत १० रु से भी कम हो गयी? अगर हो गयी तो इसका दोषी कौन है? क्या पदाधिकारियों को आत्म चिंतन की आवशयकता नहीं है? मेरे विचार से संगठन एवं पदाधिकारियों के प्रति आम शिक्षक में ऐसी धारणा बनती जा रही है की संगठन का प्रयोग एक ऐसे मंच के रूप में पदाधिकारी करते हैं जहाँ शिक्षा-शिक्षक की बात करने वाले एवं संगठन के स्वरुप में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत बात करने वाले शिक्षकों का कोई महत्व नहीं है। अर्मापुर कालेज की डॉ गायत्री सिंह नें एक महत्वपूर्ण बात कही की शिक्षकों संगठन पदाधिकारियों का चुनाव डेलीगेट के माध्यम से नहीं बल्कि समस्त शिक्षकों द्वारा होना चाहिए। आज के कार्यक्रम से हटकर परन्तु अच्छा सुझाव था । इसपर भविष्य में चर्चा भी होनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है।

4 comments:

  1. 300 vs 3000
    let us see that what will be happened in future
    congrets Dr Pandey ji

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  2. kab csjmu ke teacher me ekta hogi

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  3. Dr. Sahab,
    KUTA ke karta-dharta iski website kuta.org.in ko update karna to chhodiye, jinda bhi nahi rakh pa rahe hai. Inse kya ummid kare?

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  4. bhai aashavaadi hoon koshis kar raha hoo. "A man can be destroyed but not defeated"

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