Friday 1 November 2013

बोलियेगा नहीं ?????????????????

आलोक चांटिया को क्यों दीपावली माननी चाहिए ????????????????
दीपावली का त्यौहार माँ लक्ष्मी ( महिला ) के लिए समर्पित होता है और इस देश में जब द्रौपदी नग्न की जाती है तो समाज के अच्छे लोग ????? खामोश रहते है .जब इस देश में अहिल्या पत्थर की बनती है तब भी अच्छे लोग खामोश ही रहते है और जब एक औरत सारी रात घर से बाहर रहने केकारण पति द्वारा मारी जाती है एक औरत को वनवास होता है तब भी ये अच्छे लोग चुप ही रहते है ..........और फिर २१ वीं शताब्दी में एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय में एक लड़की मारी जाती है तब भी वो अच्छे शिक्षक चुप रहते है जो समाज को दिशा देते है जो समाजको अँधेरे से दूर ले जाते है ............वही अच्छे लोग शिक्षक के रूप में कहते है कि बेटी समझ कर मारा तो क्या यही लोग जब इनकी बेटी कभी सड़क पर मारी जायेगी , तो समझ पाएंगे कि मारने वाला पिता था ??????????? क्या छेड़े जाने पर मान पाएंगे कि छेड़ने वाला भाई था .........और किसी भी लड़की का बलात्कार हो तो क्या यही अच्छे लोग कहेंगे कि ऐसा करने वाला पति समझ लिया जाये ..............क्या आज शिक्षक ऐसी सोच लेकर समाज के लड़के लड़कियो को देख रहा है .........जब लक्ष्मी रूपी लड़की का सम्मान नहीं तो दीपावली कैसी ??????????? लड़की से बयां बदलवा कर आप अगर यह सीना थोक रहे है कि कुछ हुआ नहीं तो क्या ये आपकी सोच को लड़की के प्रति नहीं प्रदर्शित करता ???????????? कहा है वो महिला जो महिला उत्पीड़न सेल की सदस्य तो बनना चाहती है पर लड़की के साथ हुई घटना को छिपा लेनी चाहती है ????????????? कहा है वो शिक्षक जो समाज में समाज सेवक का लबादा ओढ़ता है और लड़की का बयां बदलवा का समाज में लड़की के साथ हुए शोषण को छिपाने में मदद करता है | .......कहा है वो लोग जो लड़की के मारे का समर्थन करते है और लड़की की गरिमा और अस्मिता की रक्षा करने वाले के विरुद्ध बयान देकर अपनी लड़की के प्रति सोच को दिखाते है | क्या करूँ ऐसे भारत में सिर्फ इस लिए दीपावली मनाऊ क्योकि लड़की मेरे घर की नहीं है और देखता रहूँ  चाहे जो होता रहे  क्या इसी लिए भारतीय संविधान में निति निदेशक तत्वो का समाधान किया गया था कि हैम सब लड़की के सम्मान और गरिमा के लिएय कार्य करें .......................मैं जनता हूँ कि अच्छे लोग क्या करें वो जानते है लड़ना आसान नहीं है और आलोक का क्या उसके नीचे हमेशा अँधेरा रहता है .....पर आलोक तो आज आप भी अपने घर चाहते है तो फिर अँधेरे से क्यों डर रहे है .........क्यों दो तरह का जीवन जी रहे है ..आप चुप इस लिए है कि नौकरी बची रहे फिर हम मनुष्य किसी अर्थ में है ???????????/ जानवर भी अपनों के लिए लड़ता है ...क्या हम उससे भी ????????????/ और इसी सब से दुखी होकर मैंने इस बार दीपावली ना मानाने का निर्णय लिया है ...क्या करूँ उस देश में दीपावली मना कर जहा कथनी करनी में अंतर है और लक्ष्मी को हम चौराहे पर नीलाम करते है ..............माफ़ी चाहता हूँ अगर आप सभी सम्मानित भारतीयो को मेरी बात से कोई ठेस पहुची हो ......भगवान न करें आपकी बेटी बहन , पत्नी , माँ किसी को चौराहे पर किसी की मदद की जरूरत पड़े और आप के पास हाथ मलने के अलावा कुछ न बचे ................खैर आप दीपावली जरुर मनाये आखिर लक्ष्मी( महिला ) तो हाथ की मैल( गंदगी ) है उसके लिए सोचने की क्या जरूरत ????????????????? आलोक चांटिया ऐसे से शामिल नहीं जिसमे आप सब देख कर भी खामोश है .................देखिये कही दिए का अँधेरा आपके घर में ना छूट जाये ............जय भारत ..अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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