Tuesday 11 August 2015

संसद की संस्कृति

क्यों न करें हम संसद में दंगा !!!!!!!!!!!
देश के लोगो को देश के हित में सब सीडी छोड़ देनी चाहिए आखिर देश की संसद में होने वाला रोज का खर्च १४.५ करोड़ कहा से आएगा | अब तक करीब १७० कॉर्ड रुपये खर्च हो चुका है और काम कितना हुआ ?????? पर आप तो महाराणा प्रताप के देश में रहते है और आप अपनी काम वाली से पूछ सकती है कि जब आई ही नही तो पैसा कैसे और नौकरी वालो से कह सकते है कि जब जब काम ही नहीं किया वेतन किस बात का | पर क्या मजाल जो आप अपने नेताओ से पूछ ले कि जब संसद में काम ही नहीं किया तो किस बात का बाटता और किस लिए रोज करोडो कि बर्बादी | पर आप तो दया के सागर है और फिर सब्सिडी भी तो इसी लिए छोड़ रहे है क्योकि नेता मनुष्य ????????? की तरह संसद में लड़ सके | शायद आपको १९७३ की रेलवे हड़ताल याद नहीं जिसमे जिन लोगो ने हड़ताल की थी उनकी नौकरी का क्या हुआ वो आज तक लड़ रहे है | वैसे आप जानते है क्यों नेता लड़ते है इतना संसद में !!!!!!!!!!!!!!!!! बताइये बताइए .........अब अपने मुह मिया मिठ्ठू क्यों बनने लगे हा हा कह डालिये कि हमारे देश कि ज्यादातर जनता अशिक्षित है तो उसके प्रतिनिधि भी तो वैसे ही होंगे लेकिन मैंने तो सुना है कि पढ़े लिखे जाहिल ( बेवकूफ ) होते है अब ऐसा कह देंगे तो देश के जगत गुरु होने पर प्रश्न  चिन्ह लग जायेगा और आप देश के लिए कुछ नहीं सुन सकते भले जान चली जाये लेकिन नेता इतना संसद में लड़ते क्यों है ? कहते है कि तुमहरा नेता चोर है तो दूसरा कहता है कि तुम्हारा नेता चोर है पर इतना हाय तौबा क्यों हमने तो संविधान में मान ही लिया है कि अनुच्छेद १४ के अनुसार विधि के समक्ष सब समान है तो सब चोर है सिद्ध है तो क्यों झगड़ा हो रहा है ???अच्छा अच्छा जाति पाती वाले देश में  बढ़ा चोर और छोटा चोर बराबर कैसे हो सकते है आखिर इतनी म्हणत से बड़े चोर का दर्ज हासिल हुआ है तो कैसे छोड़ दे आखिर किसी चीज में तो जमींदारी बची रहे | लीजिये अब आप कहने लगे कि सब्जी महंगी हो गयी बैया १४ करोड़  रुपये रोज खर्च करवाओगे तो सब्जी तो महंगी होगी ही और बोलोगे इस लिए नहीं क्योकि संतोषम परम सुखम .......जियो और जीने दो सब तो आप जानते है और इसी लिए घर के भेदी लंका ढाह रहे है और कह रहे है कि हम सब संसद में लड़ेंगे मेरी मर्जी आखिर हम भारतीय संस्कृति के पोषक है तो कैसे पता चलेगा कि भसमासुर यही हुआ था ( जिसने खुद को मूर्खता में भस्म कर डाला था ) अब तो आप मान गए होंगे कि संसद ना चलने देना कितना सही है और आप सही के साथ हमेशा रहे है ( व्यंग्य समझ कर पढ़े ) आलोक चान्टिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

No comments:

Post a Comment