आज मजदूर दिवस है और यह अपने आप में कितनी आश्चर्य जनक बात है कि मानव सभ्यता की इतनी लम्बी यात्रा के बाद भी मानव की एक श्रेणी ऐसी है जिसे हम मजदूर कहते है वैसे तो ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के दसवे मंडल के अनुसार जो शारीरिक श्रम करने वाला होता है वही शूद्र कहलाता है तो उस के प्रकाश में आज शुद्रो की संख्या ही बढ़ी है पर ऐसा क्या है कि मानव जीवन की महत्ता बताने वाले हर धर्म अपने यह शूद्रो को बनाये रखना चाहते है ? क्या हम पाने सुख के लिए आज भी ऐसी मानव फ़ौज चाहते है जो उतने सुख में ना रहे जितने में हम रहते है ? जब मानव जीवन नश्वर है और बड़ी मुश्किल से मिलता है तो हम क्यों नही चाहते कि हर मनुष्य को इस बात का सुख और आनंद मिले कि उसे मानव जीवन मिला ? हम क्यों कहते है कि यह सब कर्मो का खेल है और इसी लिए मजदूर को नरक सा जीवन मिला है और उसे यह सब भोगना ही पड़ेगा और अगर यह दर्शन सत्य है तो फिर हम्मे से कोई क्यों अपने दर्द के लिए डॉक्टर , मंदिर , साधू , फकीर के पास दौड़ता है यानि वह मानता है कि कुछ भी प्रयास से बदला जा सकता है तो क्या मानव झूट का सहारा लेकर अपने दायित्वों से बचना चाहता है ? या फिर उसे गुलाम चाहिए और मानवाधिकार के आईने में यह अब संभव नही है तो अभावो में रहने वाले ऐसे मनुष्यों को हमने जिन्दा रखा जिनको हम अपने सुख के लिए प्रयोग करते है और हर देश का कानून , संविधान और खुद लोग ( समृद्ध ) यह कह कर बच निकलते है कि वे ( मजदूर ) अपनी मर्जी से काम कर रहे है कोई उन पर जबरदस्ती नही कर रहा है , इस लिए कोई कार्यवाही बनती ही नही है | एक सामान्य मनुष्य गर्मी में इतना पागल हो उठता है कि वह पैदल चलने कि सोच ही नही पाता और एक उसी के समान मनुष्य उतनी ही गर्मी में आपको रिक्शा में लेकर ढोता है और पसीने से लत पथ उस मनुष्य से हम अपने गंतव्य पर पहुच कर यह भी नही पूछते कि भैया क्या प्यास तो नही लगी है क्योकि आपके लिए तो यह उसके कर्म है जो वह भोग रहा है ? कभी सोचा कि अगर सब भगवन को ही देना था तो उसने आरम्भ ( ६० लाख साल पहले जब पहली बार मनुष्य के साक्ष्य पृथ्वी पर मिले ) के मनुष्य को नंगा , भूखा , बिना घर के क्यों रखा ? क्या इस लिए कि उन सब के कर्म में यह लिखा था और आज से १०००० ( दस हजार साल ) पहले तक वह ऐसे ही रहा या फिर वह कर्म का पुजारी आपके लिए संस्कृति की वह दीवार बना रहा था जिस पर आज आप हम और ऐश कर रहे है | उन्ही मनुष्यों के अवशेष है यह मजदूर कहे जाने वाले मनुष्य जिनका सम्मान हम सबको इस लिए करना चाहिए क्योकि मानव संस्कृति के देवता है ये सब जो पाने को गला कर खेतो में आनाज उगाते है | तपती धूप में आपका घर बनाते है | और इसी लिए मंदिर नही मस्जिद नही गुरु द्वारा नही गिरजा घर नही मंदिर के देवताओ को अपने इर्द गिर्द खोजिये और उन्हें एक गिलास ठंडा पानी ही पिया दीजिये क्योकि भगवन तो प्रेम का भूखा है और इतना पाकर भी तृप्त हो जायेगा और समझ लेगा की अभी पृथ्वी पर उसके अवशेष में मानव शेष है | मजदूर भाई बहनों का शत शत अभिनन्दन , आज अखिल भारतीय अधिकार संगठन ने राज्य सभा में एक याचिका प्रस्तुत करके मजदूरो के बेहतर जीवन के लिए वकालत की है जो आने वाले समय में उनके लिए मील का पत्थर साबित होगी ....हे पृथ्वी के श्रम देवी देवता मेरा प्रणाम स्वीकार करो ....डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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