सनातन धर्म और मानव कल्याण
डॉ आलोक चान्टिया , अध्यक्ष , अखिल भारतीय अधिकार संगठन , लखनऊ .
सनातन शब्द से ही यह आभास सभी को मिल जाता है कि एक ऐसे धर्म की चर्चा का प्रयास जिसके उद्भव के बारे में किसी को कोई जानकारी नही है वैसे काफी लोग हिन्दू शब्द को सनातन धर्म से जोड़ कर देखते है और अक्सर कहते मिल जाते है कि हिन्दू धर्म तो सनातन धर्म है जबकि सबसे प्रमाणिक वेड ऋग्वेद में कही भी भी हिन्दू शब्द का प्रयोग हुआ ही नही है | हमारे देश में जनसँख्या बढ़ने का सबसे बड़ा दुष्परिणाम जो हुआ वो है अपने धर्म की जड़ो से दूर हो जाना | यह प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में किसी भी सत्ता के लिए कहना आसान है कि उसके देश में कोई भूखा नही मर रहा है पर भूख को मिटने के लिए दिन रात मर रहा है , इस बात से शायद ही कोई इंकार कर सकता है और रात दिन आदमी को आने वाले समय की चिंता रहती है कि आने वाला कल कैसा होगा और इसी चिंता में उसके पास इतना समय ही नही रहा कि वह कभी अपने धर्म कि जड़ो को महसूस करे और यही कारण है कि आम आदमी यह भी जनता कि सनातन और हिन्दू में कोई फर्क है भी या नही ??????/ जैसा कि शोध से प्रमाणित है फारस कि तरफ से आने वाले आक्रमण करियो ने स को ह खा और यही कारण है कि सिन्धु के किनारे रहने वाले हिन्दू कहलाने लगे और भारत की जगह हिन्दुओ के रहने का स्थान हिंदुस्तान कहलाने लगा और आज यह शब्द हमारे इवान में इतना घुल मिल गया है कि हम हिन्दू नाम पर कट मिटने को तैयार रहते है पर सनातन धर्म तो वह है जिसका आदि अंत ही नही है और यही कारण है कि मनुष्य को भी सनातन खा जाना चाहिए क्योकि न तो विश्व में और न ही भारत में आज तक इस तथ्य पर अंतिम निर्णय हो पाया है कि मानव का उद्भव कब हुआ कैसे हुआ तो उस अर्थ में हम सबको अटकलों से ज्यादा यह मान लेना चाहिए कि मानव खुद में सनातन है और यही नही गाँधी जी ने एक बार कहा था कि विश्व में चाहे जितने धर्म हो पर इस बात से कोई धर्म इनकार नही कर सकता है कि किसी ने भागवान को नही देखा है और यही वह बिंदु है जो हम सबको प्रेम भाव से रहने और एक दूसरे के साथ इर्ष्या का करने के लिए प्रेरित करता है | सनातन धर्म भी सर्व धर्म समभाव की वकालत करता है क्योकि धर्म के आनेक होने से सिर्फ भागवान को जानने का तरीका कई हो गया न कि भागवान भी कई तरीके का हो गया | और यह भी सत्य है कि मानव इस दुनिया में किस तरह फैला , इस पर भी मतभेद है लेकिन विभिन्न तरह के पर्यावरण के कारण एक ही तरह के अनुवांशिक पदार्थो का वाहक होने के बाद भी मानव की विभिन्न श्रेणिया हो गयी जिसे हम प्रजाति के नाम से जानते है पर सनातन धर्म इस विज्ञानं को काफी पहले ही समझ चूका था और यही कारण है कि उसने वसुधैव कुतुम्बुकम यानि पूरी पृथ्वी ही परिवार की तरह है और इसका आज के सन्दर्भ में यह भी अर्थ स्पष्ट है कि सनातन धाम ने इस शिक्षा को पल्लवित किया कि जो भी तुम्हरे पास है उस पर पुरे विश्व या विश्व के अन्य भागो में रहने वालो का भी अधिकार है पर इस भाव में आर्थिकी का कोई पुट नही था बल्कि आतिथ्य का भाव था और एक दूसरे को भी इन्हें का अवसर प्रदान करने का भाव था लेकिन आज यही भाव भूमंडली करण के रूप में फिर हमारे सामने विद्यमान है पर उसमे आर्थिकी का भाव ज्यादा है न कि वसुधैव कुत्तुम्बकम का और इसी अर्थ में सनातन दह्र्म लोक कल्याणकारी बन जाता है और मानव में भागवान होने की संकल्पना साकार हो जाती है जिसके कारण किसी के भूखा सोने की कल्पना ही एक अपराध बोध से भर देती है आज भी व्रत , ददन देना उसी के अवशेष के रूप में हमारे बीच में है | सनातन धर्म में किसी के इए द्वेष का कोई स्थान ही नही था और यही कारण है कि राम के द्वारा शबरी के झूटे बेर खाने का प्रकरण ह या फिर कृष्ण द्वारा विदुर(दासी पुत्र ) के घर खाना खाने का प्रश्न हो , हर जगह भागवान ने यही संदेश देने का प्रयास किया है कि जाति धर्म , धन से आदमी को छोटा बड़ा नही आँका जाना चाहिए बल्कि उसके अंदर मानव और मानवता के भाव को सम्मान देना चाहिए पर सनातन धर्म की यह मूल भावना आज के भारत में ही विलोपन की तरफ है जिसके कारण भारत में भारत वासी तो बढ़ गए पर भारतीयों की निरंतर कमी आई है जो कल्याणकारी भावना के विपरीत है और उन पर पिता परमात्मा के विपरीत हा जिन्होंने अवतार लेकर समानता और सम भाव का सन्देश दिया था | आज का मानव यह भूल गया है की मानव धर्म क्या था | एक बार शंकराचार्य से किसी ने उछ की मानव को पहचानने का तरीका क्या है तो उन्होंने कहा कि जिस घर में पशु पक्षी पाले हो , पेड़ पौधों के साथ तुलसी लगी हो बह्ग्वान का नाम लिया जा रहा हो तो समझ लेना कि मानव यही है पर सनातन धर्म के विपरीत जिस तरह से प्रयावरण को हानि पहुचाई जा रही है , न जाने कितनी प्रजातिया पेड़ पौधों , जीव जन्तुओ की पृथ्वी से समाप्त हो गई है और मानव में गर्रेबी , भुखमरी व्याप्त है , मानव घर विहीन है | सनातन धर्म के विरुद्ध यह मानव कल्याण नह है | सनातन धर्म , दूसरे की जमीन , धन को मिटटी की तरह देखने की बात करता है और पडोसी उसके धन सम्पदा की सुरक्षा करते है आर आज हडपने की नियत ज्यादा हो गई है | यज्ञा वल्क्य ने अपनी स्मृति में लिखा है कि परायी औरत मिटटी के ढेले की तरह है और उसकी तरफ नजर उठा कर भी नही देखना चाहिए पर भारत में रोज २०० लडकियों का अपहरण हो रहा है , बलात्कार , वैश्यावृति हो रही है जो स्पष्ट करता है हम महिला को मांस का टुकड़ा और अपने आनंद का साधन ज्यादा समझने लगे है जबकि सनातन धर्म कहता है कि झा नारी की जा होती है वही पर देवता निवास करते है पर अगर औरत घरो में जलाई जा रही है तो यह भी स्पष्ट है कि मानव ने भागवान के अस्तित्व को नाकारा है और उसका परिणाम सामने है , जिस तरह से मानव रोग ग्रसित हो रहा है , मानसिक रोगी हो रहा है , उस से यही लगता है कि सनातन धर्म में भागवान के पर जाने के लिए जो रस्ते सुझ्ये गए थे उसमे सबसे बड़ा था कि हर प्राणी में , कण कण में भागवान है और हमें सभी का आदर करना चाहिए पर आज हमने मानव और प्राणियों को भागवान से अलग कर दिया है , हमारे लिए भागवान मंदिर में बैठा पत्थर का है और वह सिर्ग हमारे आरती पर भोग लगाने दान करने से प्रसन्न हो जाता है जबकि ऐसा नही है | सनातन धर्म को सही अर्थो में आज समझने की जरूरत है क्योकि जिस तरह से जनसँख्या बढ़ रही है और संसाधनों का आभावहो रहा है उसमे भागवान पर से आस्था का कम होना सिर्फ रोगों की ओर हमें ले जा रहा है और जिओ और जीने दो की अवधारणा को अपनाने से सनातन धर्म हमें मानव कल्याण के ज्यादा नजदीक ले जाता है और यही वह स्त्थिति है जब आपको परम पिता को अनभव करने का मौका मिलता है जो हम मानव जीवन पाकर भी गवां देते है | सनातन धर्म की लोक कल्याणकारी अवधारणा से ही आज की दुनिया का कल्याण है आर सके लिए आपको रुकना होगा और मानसिक चिंतन में मानव के लिए सोचना होगा |
डॉ आलोक चान्टिया , अध्यक्ष , अखिल भारतीय अधिकार संगठन , लखनऊ .
सनातन शब्द से ही यह आभास सभी को मिल जाता है कि एक ऐसे धर्म की चर्चा का प्रयास जिसके उद्भव के बारे में किसी को कोई जानकारी नही है वैसे काफी लोग हिन्दू शब्द को सनातन धर्म से जोड़ कर देखते है और अक्सर कहते मिल जाते है कि हिन्दू धर्म तो सनातन धर्म है जबकि सबसे प्रमाणिक वेड ऋग्वेद में कही भी भी हिन्दू शब्द का प्रयोग हुआ ही नही है | हमारे देश में जनसँख्या बढ़ने का सबसे बड़ा दुष्परिणाम जो हुआ वो है अपने धर्म की जड़ो से दूर हो जाना | यह प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में किसी भी सत्ता के लिए कहना आसान है कि उसके देश में कोई भूखा नही मर रहा है पर भूख को मिटने के लिए दिन रात मर रहा है , इस बात से शायद ही कोई इंकार कर सकता है और रात दिन आदमी को आने वाले समय की चिंता रहती है कि आने वाला कल कैसा होगा और इसी चिंता में उसके पास इतना समय ही नही रहा कि वह कभी अपने धर्म कि जड़ो को महसूस करे और यही कारण है कि आम आदमी यह भी जनता कि सनातन और हिन्दू में कोई फर्क है भी या नही ??????/ जैसा कि शोध से प्रमाणित है फारस कि तरफ से आने वाले आक्रमण करियो ने स को ह खा और यही कारण है कि सिन्धु के किनारे रहने वाले हिन्दू कहलाने लगे और भारत की जगह हिन्दुओ के रहने का स्थान हिंदुस्तान कहलाने लगा और आज यह शब्द हमारे इवान में इतना घुल मिल गया है कि हम हिन्दू नाम पर कट मिटने को तैयार रहते है पर सनातन धर्म तो वह है जिसका आदि अंत ही नही है और यही कारण है कि मनुष्य को भी सनातन खा जाना चाहिए क्योकि न तो विश्व में और न ही भारत में आज तक इस तथ्य पर अंतिम निर्णय हो पाया है कि मानव का उद्भव कब हुआ कैसे हुआ तो उस अर्थ में हम सबको अटकलों से ज्यादा यह मान लेना चाहिए कि मानव खुद में सनातन है और यही नही गाँधी जी ने एक बार कहा था कि विश्व में चाहे जितने धर्म हो पर इस बात से कोई धर्म इनकार नही कर सकता है कि किसी ने भागवान को नही देखा है और यही वह बिंदु है जो हम सबको प्रेम भाव से रहने और एक दूसरे के साथ इर्ष्या का करने के लिए प्रेरित करता है | सनातन धर्म भी सर्व धर्म समभाव की वकालत करता है क्योकि धर्म के आनेक होने से सिर्फ भागवान को जानने का तरीका कई हो गया न कि भागवान भी कई तरीके का हो गया | और यह भी सत्य है कि मानव इस दुनिया में किस तरह फैला , इस पर भी मतभेद है लेकिन विभिन्न तरह के पर्यावरण के कारण एक ही तरह के अनुवांशिक पदार्थो का वाहक होने के बाद भी मानव की विभिन्न श्रेणिया हो गयी जिसे हम प्रजाति के नाम से जानते है पर सनातन धर्म इस विज्ञानं को काफी पहले ही समझ चूका था और यही कारण है कि उसने वसुधैव कुतुम्बुकम यानि पूरी पृथ्वी ही परिवार की तरह है और इसका आज के सन्दर्भ में यह भी अर्थ स्पष्ट है कि सनातन धाम ने इस शिक्षा को पल्लवित किया कि जो भी तुम्हरे पास है उस पर पुरे विश्व या विश्व के अन्य भागो में रहने वालो का भी अधिकार है पर इस भाव में आर्थिकी का कोई पुट नही था बल्कि आतिथ्य का भाव था और एक दूसरे को भी इन्हें का अवसर प्रदान करने का भाव था लेकिन आज यही भाव भूमंडली करण के रूप में फिर हमारे सामने विद्यमान है पर उसमे आर्थिकी का भाव ज्यादा है न कि वसुधैव कुत्तुम्बकम का और इसी अर्थ में सनातन दह्र्म लोक कल्याणकारी बन जाता है और मानव में भागवान होने की संकल्पना साकार हो जाती है जिसके कारण किसी के भूखा सोने की कल्पना ही एक अपराध बोध से भर देती है आज भी व्रत , ददन देना उसी के अवशेष के रूप में हमारे बीच में है | सनातन धर्म में किसी के इए द्वेष का कोई स्थान ही नही था और यही कारण है कि राम के द्वारा शबरी के झूटे बेर खाने का प्रकरण ह या फिर कृष्ण द्वारा विदुर(दासी पुत्र ) के घर खाना खाने का प्रश्न हो , हर जगह भागवान ने यही संदेश देने का प्रयास किया है कि जाति धर्म , धन से आदमी को छोटा बड़ा नही आँका जाना चाहिए बल्कि उसके अंदर मानव और मानवता के भाव को सम्मान देना चाहिए पर सनातन धर्म की यह मूल भावना आज के भारत में ही विलोपन की तरफ है जिसके कारण भारत में भारत वासी तो बढ़ गए पर भारतीयों की निरंतर कमी आई है जो कल्याणकारी भावना के विपरीत है और उन पर पिता परमात्मा के विपरीत हा जिन्होंने अवतार लेकर समानता और सम भाव का सन्देश दिया था | आज का मानव यह भूल गया है की मानव धर्म क्या था | एक बार शंकराचार्य से किसी ने उछ की मानव को पहचानने का तरीका क्या है तो उन्होंने कहा कि जिस घर में पशु पक्षी पाले हो , पेड़ पौधों के साथ तुलसी लगी हो बह्ग्वान का नाम लिया जा रहा हो तो समझ लेना कि मानव यही है पर सनातन धर्म के विपरीत जिस तरह से प्रयावरण को हानि पहुचाई जा रही है , न जाने कितनी प्रजातिया पेड़ पौधों , जीव जन्तुओ की पृथ्वी से समाप्त हो गई है और मानव में गर्रेबी , भुखमरी व्याप्त है , मानव घर विहीन है | सनातन धर्म के विरुद्ध यह मानव कल्याण नह है | सनातन धर्म , दूसरे की जमीन , धन को मिटटी की तरह देखने की बात करता है और पडोसी उसके धन सम्पदा की सुरक्षा करते है आर आज हडपने की नियत ज्यादा हो गई है | यज्ञा वल्क्य ने अपनी स्मृति में लिखा है कि परायी औरत मिटटी के ढेले की तरह है और उसकी तरफ नजर उठा कर भी नही देखना चाहिए पर भारत में रोज २०० लडकियों का अपहरण हो रहा है , बलात्कार , वैश्यावृति हो रही है जो स्पष्ट करता है हम महिला को मांस का टुकड़ा और अपने आनंद का साधन ज्यादा समझने लगे है जबकि सनातन धर्म कहता है कि झा नारी की जा होती है वही पर देवता निवास करते है पर अगर औरत घरो में जलाई जा रही है तो यह भी स्पष्ट है कि मानव ने भागवान के अस्तित्व को नाकारा है और उसका परिणाम सामने है , जिस तरह से मानव रोग ग्रसित हो रहा है , मानसिक रोगी हो रहा है , उस से यही लगता है कि सनातन धर्म में भागवान के पर जाने के लिए जो रस्ते सुझ्ये गए थे उसमे सबसे बड़ा था कि हर प्राणी में , कण कण में भागवान है और हमें सभी का आदर करना चाहिए पर आज हमने मानव और प्राणियों को भागवान से अलग कर दिया है , हमारे लिए भागवान मंदिर में बैठा पत्थर का है और वह सिर्ग हमारे आरती पर भोग लगाने दान करने से प्रसन्न हो जाता है जबकि ऐसा नही है | सनातन धर्म को सही अर्थो में आज समझने की जरूरत है क्योकि जिस तरह से जनसँख्या बढ़ रही है और संसाधनों का आभावहो रहा है उसमे भागवान पर से आस्था का कम होना सिर्फ रोगों की ओर हमें ले जा रहा है और जिओ और जीने दो की अवधारणा को अपनाने से सनातन धर्म हमें मानव कल्याण के ज्यादा नजदीक ले जाता है और यही वह स्त्थिति है जब आपको परम पिता को अनभव करने का मौका मिलता है जो हम मानव जीवन पाकर भी गवां देते है | सनातन धर्म की लोक कल्याणकारी अवधारणा से ही आज की दुनिया का कल्याण है आर सके लिए आपको रुकना होगा और मानसिक चिंतन में मानव के लिए सोचना होगा |
No comments:
Post a Comment