Monday 30 April 2012

RIGHT TO MEDIA

सत्ता ध्र्सराष्ट्र की तरह अंधी होती है और वह सदैव इस प्रयास में रहती है कि उसके हाथ में सत्ता बनी रहे भले ही वह हर अनैतिक कार्य करे पर ऐसे समय में मीडिया कि भूमिका उस संजय कि तरह है जो कुरुक्षेत्र की हर घटना का सही वर्णन करके सच का साथ दे और सत्ता पर उन लोगो को बैठने का मौका दे जो जनता के लिए जीना चाहते है| आज के दौर में जब जनता मत दान जैसे सबसे महत्वपूर्ण और प्रजातंत्र की रीढ़ का मतलब नही समझ रही है तो उसको क्या मतलब कि देश में कौन सा ननगा नाच नेता कर रहे है और फिर सच की खोज करने वालो की जिंदगी यह कितने दिन सुरक्षित है यह इमानदार लोगो की हत्या और शोषण से स्पष्ट है | शेषण ने इस देश को सुधरने का ही तो प्रयास किया पर एक भी नेता ऐसा नही मिला ज उनको राष्ट्रपति बनाया जाने पर सहमति जताते और इसी से राजनितिक डालो के चरित्र और उनकी असली मंशा सबके सामने नंगी खड़ी है | ऐसे में मीडिया ही एक ऐसा साधन साधन बचता है जिसके सहारे देश की जनता को सच मालूम होता है और देश के नेताओ को भी यह खौफ रहता है की कही मीडिया को न पता चल जाये अगर आज मीडिया न होती तो क्या बंगारू लक्षमण जेल के पीछे जा पाते ?  अरुशी कांड आज इस लिए जिन्दा है क्योकि मीडिया ने उसे उठाया | मनु सिंघवी जैसे भोले दिखने वाले नेता का असली चेहरा हम क्यों जन पाए क्यों कि मीडिया ने उसको सामने लेन में मदद की|  नेता और प्रशासन में पतन का परिणाम है कि जब भी किसी माध्यम से जनता के जागरूक होने का डर नेताओ में पैदा होता है तुरंत इन्हें संसोधन की जरूरत समझ में आने लगती है | चुनाव आयोग ने इन पर शिकंजा कसा तो इन्हों ने उसको बहु सदसीय  बना दिया | जन सुचना अधिकार अधिनियम से इनकी पोल खुलने लगी तो उसके लिए संसोधन की बात करने लगे | इन्हें जनता का खर्च ३२ रूपए का दिखाई देता है और इसी लिए महंगाई बढ़ाते चले जा रहे है अपर अपने भत्ते काफी कम दिखाई देते है और बिना किसी विरोध के उसको संसोधन करते है | क्या जनता और अपने स्तर को नेता एक जैसा समझ पाए है | नही इसी लिए जब ये जनता के सामने नंगे होते दिखाई देते है तो कपडा पहने या लोग कानून बना कर अपने चरित्र को ढकने का प्रयास करते है | इनके चरित्र को उसी से समझ लिया जाना चाहिए जब अपने लिए इन्हें अपराध सिद्ध न हो जाने तक अपने पार्टी के उम्मीदवार शरीफ  लगते है और ये उसके लिए कोई कठोर कानून नही बना प् रहे है क्योकि पैसा और बहुबल पर जीते जाने वाले चुनाव का दौर ख़त्म हो जायेगा और जनता अपने मन मंथन से शरीफ लोगो को चुनने लगेगी तब सुख राम , शिबू शोरेन , जय ललिता , लालू प्रसाद  आदि का क्या होगा पर एक आम आदमी के लिए इनको याद है अपराधी करण नही होना चाहिए और भारत का चाहे प्रवेश का मामला हो या फिर कही नौकरी  का मामला , हर जगह यह कालम बना रहता है कि आप पर कोई अपराधिक मुकदमा तो लंबित नही है या आप सजा पा चुके है या कभी कोई दंड मिला हो , निष्काषित हुए हो | क्या यह नेताओ के लिए दोहरा चरित्र का उदाहरन नही है जो अपने लिए हमेशा वही कानून बनाते है  जिससे उनका फायेदा होता रहे  | ऐसे में क्या कुछ कहने की जरूरत रह जाती है कि इनको सामाजिक मीडिया से इतना डर क्यों सताने लगा है ??????? देश में कितने नेताओ की लड़की का अपहरण होता है ??????? कितनो के साथ बलात्कार होता है ? कितने के घर डाका पड़ता है ??? कितने के घर नही है ?? कितने गरीब है ??? कितने भूख का मतलब जानते है ???? क्या इस से मतलब साफ़ नही कि देश से डाकू क्यों खत्म दिखाई देते है क्योकि उनके बस पद बदल गए है और इसी लिए ये बाहुबली मीडिया पर नकेल डाल प्रजातंत्र में तानाशाही का प्रयोग करते और हम एक नपुंसक राष्ट्र के लिए जीने वाले सिर्फ बीज बन कर रह जाते है क्योकि विरोध करने की ताकत तो ये नेता कब कि छीन कर हमें सिर्फ खेतो में काम करने वाला बैल बना चुके है | अब जागने की जरुरुत है और मीडिया को बचने के लिए आवाज उठाने की जरूरत है ...डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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