वर्ष १९२९ तक विश्व के कई देशो में औरत को ना तो मनुष्य माना जाता था और न ही उनको कोई वोट देने का कोई अधिकार था और अपने को मनुष्य की श्रेणी में लाने के लिए काफी संघर्ष किया तब कही जा कर महिला को पुरुष के बराबर सम्मान मिल सका पर भारत में महिला को कभी इस तरह का संघर्ष नहीं करना पड़ा पर इतना जरुर है कि पति को परमेश्वर समझने वाली औरत को कभी घर से ज्यादा कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला और जो पुरुष ने कहा औरत ने आँख बंद करके कर दिया पर हमारी संस्कृति में बताया गया है और हमने माना भी है कि धर्म , अर्थ काम के सन्दर्भ में औरत ही पुरुष को रास्ता दिखाती है पर वास्तविकता में औरत यह ना जानती है ना खुद मानती है पर आज देश के धर्म , अर्थ काम को रास्ते की दरकार है और इसके लिए औरत को अपनी क्षमता का ज्ञान करना चाहिए और इस बार किसी की अनुगामी बन कर नहीं अपनी क्षमता का प्रयोग करके देश की उन्नति के लिए वोट करना चाहिए | अगर देश की औरत इस बार देश के मतदान में अपनी बुद्धि का प्रयोग कर ले गयी तो ५० % का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला इस देश का इतिहास बदल कर एक सक्षम सरकार को बनाने में अपना योगदान अपने वोट से करेगी | क्या महिला अपनी क्षमा का लिटमस टेस्ट इस बार करेंगी और देश को पूर्ण बहुमत की सरकार देने में इस देश का मदद करेंगी
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