Wednesday 11 June 2014

जिंदगी और मौत

जिंदगी तलाश रहा हूँ ,
तेरे पास आ रहा हूँ ,
कितना सफर है लम्बा ,
न जान पा रहा हूँ ,
कभी धूप की है गर्मी ,
कभी धूप है सुहाती ,
कभी खुद में सिमट कर ,
कभी खुद से बिखर कर ,
बस दौड़ा जा रहा हूँ ,
कभी पास तू है लगती ,
कभी दूर तक न दिखती ,
हर रात रहती आशा ,
साँसों की बन परिभाषा ,
जब खुल कर गगन में ,
उड़ कर जा रहा हूँ ,
तू चील की नजरों से ,
मुझे खोजे जा रही है ,
ये मिलन अधूरा कैसा,
ये सफर कुछ है ऐसा ,
कितना तड़पी जिंदगी है ,
मौत ये कैसी बंदगी है ,
सब जीते आलोक में है ,
अब अँधेरे के लोक में है ,
अब घोसला है खाली,
ये दोनों का मिलन है ,
है जिंदगी एक धोखा ,
ये मौत का जतन है .............
जिंदगी किसी की नहीं पर हम उसे न जाने कितने जतन से जीते है अगर मौत का एहसास कर ले तो कोई क्यों लालच करें ................,
,

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