Thursday, 12 June 2014

आंसू को क्या मला

जो आँखे बही ,
कुछ बाते कही ,
मौन के शब्द ,
है दिल स्तब्ध ,
नीरवता की लय ,
ये कैसी पराजय ,
मन है अशांत ,
जैसे गहरा प्रशांत
हिमालय से ऊचे ,
जमीन  के नीचे ,
तड़प है ये कैसी ,
अँधेरे के जैसी ,
समुद्र सिमट आया ,
पा आँख का साया ,
 थे बादल से  सपने ,
हुए ना आज अपने ,
बरसे तो खूब बरसे ,
सन्नाटो के डर से ,
क्यों अकेली आत्मा ,
पूछती परमात्मा ,
कसूर क्या है मेरा ,
चाहा सच का बसेरा ,
रावणो की लंका ,
क्यों न हो आशंका ,
तार तार है सीता ,
 है मन भी आज रीता ,
जब मिला न सहारा ,
तो सब कुछ था हारा,
ज्वार भाटा सा आया ,
जब आँखों का साथ पाया ,
सच निकल पड़ा बूंदबन कर ,
दुनिया के सामने तन कर ,
रोया जब झूठ ही पाया ,
आँखों के हिस्से क्या आया ,
खारा पानी , दर्द ,खुली पलके ,
क्या पाया जिंदगी यूँ जलके ................
जिंदगी में सब सच सामने आता है तो आंसू काफी काम आते है पर आंसू को खुद क्या मिलता है



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