Thursday, 14 August 2014

यही तो है स्वतंत्रता दिवस !!!!

संतोषम परम सुखम ..स्वतंत्रता दिवस मुबारक हो
भाई अपने देश में इतनी जनसँख्या इसी लिए हो गयी क्योकि यहाँ संतोष ही संतोष है गरीब सोचता है कि उनके नसीब में गरीबी हो लिखी थी और अमीर सोचता है कि वो क्या कर सकता है जब भगवान ने ही इनको गरीब बनाया तो बच्रे क्या कर सकते है उनके लिए ? खैर स्वतंत्रता दिवस तो इनके लिए भी है वो बात अलग है की सड़क पर दौड़ती गाड़ियों  के धुएं और धूल भी स्वतंत्रता के बात इनके हिस्से में आई | मैं जनता हूँ आप कहेंगे की कम से कम
इनको ये तो मालूम हो जाता है दम घुटना किसे कहते है और बिना पैसे के आपदा प्रबंधन के बारे में सीख लेते है | और वैसे भी रुखा सुख खाए के ठंडा पानी पीयू..देख परायी चुपड़ी मत ललचावे जीव ........यही क्या कम है कि इनको स्वंत्रता सांस लेने का मौका तो मिल रहा है वरना इराक में होते तो जान भी ना पाते कि कल होगी कि नहीं ! छोड़िये नहीं तो आपको लगेगा कि मुझे स्वतंत्रता दिवस मनाना ही नहीं आता और मैं भला ऐसा मौका क्यों छोड़ू ? आखिर जब घर घर में भाई भाई में बटवारा हो जाता है तो अगर देश बाँट कर स्वतंत्रता मिली तो कौन सी हाय तौबा हो गयी पर एक बात मैं आज जाकर समझ पाया कि हम ये क्यों कहते है कि हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई .आपस में सब भाई भाई | अब बटवारा तो भाई भाई में ही होता है | और जो बटवारा हुआ था वो १९४७ वाले भाइयों के बीच हुआ था अब बीसवीं सदी वाले भाई भी तो बटवारा चाहते है और चाहे भी क्यों न आखिर जीवन जीने का अधिकार सभी को है और ये तो हमारे यह मूल अधिकार भी है | लेकिन एक बात मेरे समझ में नहीं आई कि भारत को अम्मा कहकर उसके आँचल को ही काँट डाला ! ये भी आप सही कह रहे है कि १९४७ में माँ के आँचल को काटने वाले बहुत दूर की सोचते थे और वो जानते थे कि आगे के सालों में भूमण्ड़ली करण का वो दौर आएगा कि आँचल कौन लेकर ही चलेगा भाई अब तो जमाना ही टॉप का है तो फिर आँचल के लये दर्द कैसा ? वैसे हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस की बात है तो निराली और हो भी क्यों  ना यहाँ के लोग जो इतने निराले है , इसी लिए तो हम जगद्गुरु कहलाते थे ! यहाँ गर्भ निरोधक तो मुफ्त में बटता है पर जिस झंडे केलिए ना जाने कितनो के सर कलम हो गए वो झंडा आप खरीद कर ही पा सकते है और तो और आपको ये जान कर संतोष होगा कि उसी झंडे को बेच बेच कर ना जाने कितने स्वतंत्र देश के लोगो के घर रोटी बनती है | लेकिन मेरी ये बात सुन कर आपके पेट में खौलन  ना हो तो बात ही अधूरी रह जाएगी क्योकि सर्वोच्च न्यायलय ने इस तरह के झंडे  पर रोक लगा दी है पर स्वतंत्र देश में कानून को मान लिया तो फिर कैसी स्वतंत्रता ? और न विश्वास हो तो चले जाइये चौराहे पर झंडे में डूबा कर्न्तिकारियों का खून २ से १० रुपये में बिक रहा होगा पर आपको इससे क्या क्या क्योकि आप तो इसी से खुश है कि कम से कम अंग्रेज तो इस देश से चले गए और देश में शांति तो आई आप १५ अगस्त को झंडा तो फहरा सके | हमने हमेशा मिल बाँट कर खाने की  शिक्षा पायी है  और भले ही इसके दो चार टुकड़े और हो जाये लेकिन शांति होनी चाहिए क्योकि सबसे बड़ी निधि ही है संतोष ! जब आवें संतोष धन सब धन धूरि सामान ........तो मान गए ना कि संतोषम परम सुखम तो आइये मानते है स्वतंत्रता दिवस .......आरे भैया सुख में ही दुःख है और आज़म दुःख में भी हसि आ जाती है तो अब तो कह दो भारत माता की ........जय .............स्वत्रता दिवस अमर रहे ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

No comments:

Post a Comment