Sunday, 31 August 2014

जन धन योजना - दरिद्र नारायण का अवतार

जन धन योजना - दरिद्र नारायण है देश में
कुछ भी लिखने से पहले बता दूँ कि मैं नरेंद्र मोदी को एक निर्माता के रूप में देखता हूँ पर बेबाक खाने से चूकना नहीं चाहिए क्योकि मैं एक दरिद्र नारायण हूँ ?? नहीं समझ ना अरे भाई मैं इस देश का प्रजातान्त्रिक नागरिक हूँ यानि जिस नागरिक की मदद से सरकार बनती है लेकिन हल्ला होता है कि किन धन कुबेरों ने देश में सरकार बनवायी और तो और अब देश की विकास दर को ऊचा ले जाना है तो  धन कुबेरों से ये होने से रहा हा वो बात और है कि इन धनकुबरों के लिए इस देश में पुरूस्कार बहुत है | अब देखिये कैसे इस देश को दरिद्र नारायण बढ़ाने जा रहे है | सरकार ने एक योजना शुरू कि है जन धन योजना जिसमे उन लोगो के बैंक खाते खोले जायेंगे जिनके खाते है ही नहीं | करीब १५ करोड़ खाते खोले जायेंगे | खाते खोलने वालो का बीमा वो भी एक लाखका हो जायेगा यानि सरकार ने मान लिया कि मरते सबसे ज्यादा यही दरिद्र नारायण ही है और हम तो तेरहवीं पर भी खाने के लिए चले जाते है तो भला एक लाख का बीमा सुन कर क्यों न खाता खुलवाओ | यानि जो पैसा गरीबो का सरकार तक नहीं पहुंच पाता था अब आसानी से पहुंचेगा | और ख़ुशी की बात ये कि अगर छह महीने तक आपका कहता ठीक से चलता रहा !!!!!!!!! यानि आप उसमे पैसा डालते रहे तो आप को पांच हज़ार का ओवर ड्राफ्ट आप करा सकते है | केवल साल में एक बार होली के रंग खेलने के बाद के बेकार कपडे में खुश हो जाने वाले दरिद्र नारायण के लिए ये किसी करोड़पति से कम होने कि बात नहीं है पर इस से प्रजातान्त्रिक देश के पास छह महीने तक उन गरीबों का भी पैसा पहुचने लगेगा जो आज तक नहीं पहुंच पाता था तो अच्छे दिन तो आएंगे ही ना !!!!!!!!!! मरे पास न घर नही ना गाड़ी है पर आप से बता नहीं सकता कितना खुश होता हूँ जब ये पता चलता है पासबुक में कितना पैसा है तो कम से कम बेघर , अभावग्रस्त लोगो के लिए देश में ख़ुशी की एक लहर तो आई | इसकी चिंता ना करियेगा अगर आपको सरकार देश के निर्माण का अवार्ड ना दे भाई वो तो टाटा बिरला रिलायंस के लिए ही ना है | आप तो प्रजातंत्र की नीवं है बस इस देश को मजबूत बनाते रहिये | क्या गांव से शहर में आये हो रिक्शा चलाने के लिए और उसी पर सो जाते हो , शौचालय सड़क के किनारे जाते हो तो क्यों नहीं बैंक में खाता खुलवाया ??खुलवाओ भैया खुलवाओ आखिर देश का निर्माण तो तुमको ही करना है आखिर  इस देश में ही तो दरिद्र नारायण की कल्पना है | मैं तो चला खाता खुलवाने ( व्यंग्य समझ कर पढ़िए )

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