Thursday 28 August 2014

मैं और समय

अब मैं पौधा ,
नहीं रहा हूँ ,
अब मुझे जब ,
जहा चाहे उठाना ,
बैठना आसान ,
नहीं रहा है ,
अब मैं दरख्त ,
बन गया हूँ ,
जो छाया दे ,
सकता है , ईंधन ,
भी दे सकता है ,
मुझ पर न जाने ,
कितने आशियाने ,
बन गए है ,
पर अब मैं हिल ,
नहीं सकता ,
मैं किसी से खुद ,
मिल नहीं सकता ,
ठंडी हवा देकर ,
सुकून दे सकता हूँ, ,
आपके लिए जल ,
भी सकता हूँ ,
सब कुछ अच्छा कर,
मैं कुल्हाड़ी से ,
कभी कभी आरे से ,
कट भी सकता हूँ ,
खुद को बर्बाद कर,
आपके घर की ,
चौखट बन सकता हूँ ,
कितना बेबस आलोक ,
दरख्त बन कर भी ,
लोग टहनी ले जाते ,
क्या मिला जी कर भी ..............
जीवन में समय की कीमत को समझिए क्योकि वही आपके जीवन में दोबारा नहीं आता है ...

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