Tuesday 10 February 2015

बलि बेदी ..........या ........किरन बेदी

बलि ....बेदी यानि किरण बेदी
अब आप ना माने तो मैं क्या करूँ आप स्वतंत्र भारत में रहते है और किसी की क्या मजाल जो आपको मजबूर करे कोई बात मनवाने की पर इस देश को बहुत समय बाद एक बेहतरीन नेता मोदी के रूप में मिला जिको पता है कि शब्द कोष में बेदी का मतलब क्या होता है क्योकि दिल्ली में झाडूं के साथ कोई किरन तो दिखाई नहीं देती अब भला आप ही बताइये झाड़ू कब लगती है ???????? अरे बही सुबह सुबह और जब झाड़ू लगती है तो पूरब से निकलते सूरज से आपके आँगन में क्या आती है किरन !!!!!!!!!!!!!!!है कि नहीं तो झाड़ू को कौन समझ सकता था ??????????? किरन ना !!!!!!!!!! तो क्या बुरा किया चुनाव की बेदी पर झाड़ू के सामना करने के लिए किरन को सामने करके  !!!!!!!! आखिर जो देश के लिए सोचते है वो अपनी बलि देने से कब पीछे हटते है और देश के तो अब तो समझ गए ना की देश के लिए ही सोचने वाले नरेंद्र जी ने क्यों बलि .....बेदी के लिए किरन ....बेदी को चुना !!!!!!!!!!!! मैं नरेंद्र जी का कठोर समर्थक हूँ कि वो शतरंज कि बिसात को चलना जानते है काश कभी मैं भी चेक मेट करता .....देखिये देखिये वो वो कृष्णा नगर में बलि बेदी पर किरन बेदी चढ़ गयी क्या आपको सुबह झाड़ू के साथ किरन देखने का अब भी मौका मिलता है ( शहर में अब घरों में उची बिल्डिंग के सामने जाहदु लगने पर कभी घर के आँगन में किरन नहीं आती ) व्यंग्य के इस सच से आप सहमत है ????? डॉ आलोक चांटिया

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