Wednesday 11 December 2013

गे से ये तक

गे से ये तक
कहने की जरूरत नहीं कि भारतीय समाज में पत्नी अपने पति का नाम ( मैं खच्चर समाज की बात नहीं कर रहा खच्चर यानि घोडा गधा का संयुक्त उत्पाद )नहीं लेती है और नाम न जेन कब ये सुना ..ये चलो में बदल जाता है पर ये कब गे में बदल गया पता ही नहीं चला ? लगता लोगो का मन उब गया था इसी लिए ये कि जगह गे ले आये वो तो भला तो उच्च न्यायालय का कि उसने ये का मतलब बरक़रार रखा और गे तो मजबूर कर दिया कि वह ये को अपनाये खैर आप सोच रहे होंगे कि भला गे में क्या मजा मिलता है ? मालूम तो मुझको भी नहीं पर सुना है खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है तो जब एक ने कहा तो सब कहने लगे और ऊपर से मैं पढता हूँ मानवशास्त्र , मैं तो यही सोच सोच कर मरा जा रहा हूँ कि अगर गे को ये से इतनी एलर्जी है तो गे में मम्मी कौन बनेगा और पापा कौन ? ऊपर से सोने पे सुहागा बच्चे के लिए माँ का दूध अमृत होता है पर पिलायेगा कौन ? भैया गुस्सा होने कि कोई बात नहीं है आखिर आप भगवन बनने चले है वो तो मैं अब समझ पाया कि बहुत दिनों से भगवान ने पृथिवी पर अवतार क्यों नहींलिया ? सारा ठेका तो आपने ही ले लिया है , हा तो जरा मुझे भी बताइयेगा कि माँ बनना सबसे उत्तम काम मन गया है तो माँ बनेगा कौन और बच्चा जानेगा कौन ? ये तो शत शत नमन उच्चतम न्यायलय को को वो समझ गए कि सांप छछूंदर के खेल में लोग पति पत्नी का का मतलब ही भूल जायेंगे और फिर ! ये सुनो , ये चलो , ये इधर ये उधर जाओ !! क्या इसका मजा गे ले पाएंगे ? अरे अरे आप कहा चले ये ये ये सुनिये ( व्यंग्य समझ कर ही पढ़िए )

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