उपचुनाव का खोखलापन .....
आज उत्तर प्रदेश में ११ विधान सभा और ३ लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए |देश के महाविद्यालयों और विश्विद्द्यालयों में ना जाने कितने सृजित पद खाली पड़े है पर पैसे की कमी के कारण ठेके पर कुछ रुपये महीने देकर शिक्षा में काम चलाया जा रहा है | देश के चुनाव आयोग को इस बात का ज्ञान है कि महंगाई कितनी बढ़ गयी है , इस लिए उसने उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा बढ़ा कर ५० लाख कर दी है यानि एक सीट पैट काम से काम सरकारी तौर पर अगर चार पार्टी के लोग खड़े है तो दो करोड़ रुपये खर्च हो जाते है | अगर सत्ता में रहने वाली पार्टी की बात करें तो उसके हर उमीदवार के चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार खर्च किये गए पैसे से पूर्ण तया नियुक्त सहायक आचार्य या असिस्टेंट प्रोफ़ेसर को करीब ८५ से ९० महीने का वेतन मिल सकता है यानि चुने हुए प्रतिनिधि जितने पैसे से सिर्फ साथ महीने सत्ता में रह पाते है उतने पैसे से राष्ट्र को एक शिक्षक करीब ९० महीने केलिए मिल सकता है | ध्यान रहे इसमें चुनाव के सरकारी खर्चे नही शामिल है जैसे बूथ , कर्मचारी , पुलिस, सेना , मतगड़ना आदि | आप कहेंगे तो क्या चुनाव बंद करा दिए जाये ? नहीं बल्कि जनता को सोचना होगा कि उनका भविष्य किस्मे ज्यादा अच्छा है | एक अच्छा शिक्षक राष्ट्र को चन्द्र गुप्त , शिवा जी , राजा जनक , राम , कृष्ण ,रना प्रताप देता है पर एक नेता सिर्फ जनप्रतिनिधि बन कर अपने सुख पर ध्यान देता है | मेरा सिर्फ यही कहना है कि कैंसर की दवा की तरह मुख्य चुनाव अगर जरुरी है तो उपचुनाव तो ताले जा सकते है ! जब भी किसी क्षेत्र से जितने भी उम्मेदवार चुनाव लड़े तो सब से एक शपथ पत्र लिया जाये कि वो पांच वर्ष अपनी सीट नहीं छोड़ सकते और अगर छोड़ते है तो उनकी जगह जो उपविजेता रहा होगा वो वह का जनप्रतिनिधि कहलायेगा ना कि फिर से चुनाव होंगे | इस से राष्ट्र का पैसा बचेगा और हर जनप्रतिनिधि चाहे वो जीते या हारे अपने क्षेत्र केलिए संवेदनशील रहेगा | लेकिन जाते जाते इतना जरूर कहूँगा कि शिक्षा के लिए जिस देश में पैसा नहीं वह पर ऐसे चुनावों से पैसा रोक जाना चाहिए ( ये जीवन का असली व्यंग्य है इस देश में )
आज उत्तर प्रदेश में ११ विधान सभा और ३ लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए |देश के महाविद्यालयों और विश्विद्द्यालयों में ना जाने कितने सृजित पद खाली पड़े है पर पैसे की कमी के कारण ठेके पर कुछ रुपये महीने देकर शिक्षा में काम चलाया जा रहा है | देश के चुनाव आयोग को इस बात का ज्ञान है कि महंगाई कितनी बढ़ गयी है , इस लिए उसने उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा बढ़ा कर ५० लाख कर दी है यानि एक सीट पैट काम से काम सरकारी तौर पर अगर चार पार्टी के लोग खड़े है तो दो करोड़ रुपये खर्च हो जाते है | अगर सत्ता में रहने वाली पार्टी की बात करें तो उसके हर उमीदवार के चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार खर्च किये गए पैसे से पूर्ण तया नियुक्त सहायक आचार्य या असिस्टेंट प्रोफ़ेसर को करीब ८५ से ९० महीने का वेतन मिल सकता है यानि चुने हुए प्रतिनिधि जितने पैसे से सिर्फ साथ महीने सत्ता में रह पाते है उतने पैसे से राष्ट्र को एक शिक्षक करीब ९० महीने केलिए मिल सकता है | ध्यान रहे इसमें चुनाव के सरकारी खर्चे नही शामिल है जैसे बूथ , कर्मचारी , पुलिस, सेना , मतगड़ना आदि | आप कहेंगे तो क्या चुनाव बंद करा दिए जाये ? नहीं बल्कि जनता को सोचना होगा कि उनका भविष्य किस्मे ज्यादा अच्छा है | एक अच्छा शिक्षक राष्ट्र को चन्द्र गुप्त , शिवा जी , राजा जनक , राम , कृष्ण ,रना प्रताप देता है पर एक नेता सिर्फ जनप्रतिनिधि बन कर अपने सुख पर ध्यान देता है | मेरा सिर्फ यही कहना है कि कैंसर की दवा की तरह मुख्य चुनाव अगर जरुरी है तो उपचुनाव तो ताले जा सकते है ! जब भी किसी क्षेत्र से जितने भी उम्मेदवार चुनाव लड़े तो सब से एक शपथ पत्र लिया जाये कि वो पांच वर्ष अपनी सीट नहीं छोड़ सकते और अगर छोड़ते है तो उनकी जगह जो उपविजेता रहा होगा वो वह का जनप्रतिनिधि कहलायेगा ना कि फिर से चुनाव होंगे | इस से राष्ट्र का पैसा बचेगा और हर जनप्रतिनिधि चाहे वो जीते या हारे अपने क्षेत्र केलिए संवेदनशील रहेगा | लेकिन जाते जाते इतना जरूर कहूँगा कि शिक्षा के लिए जिस देश में पैसा नहीं वह पर ऐसे चुनावों से पैसा रोक जाना चाहिए ( ये जीवन का असली व्यंग्य है इस देश में )
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