दिल ......................ली ..........या बिना दिल की दिल्ली या दिल्लगी
१९११ में लार्ड कर्जन ने जब कलकत्ता से बदल कर देश की राजधानी दिल्ली बनाई तो किस को मालूम था कि दिल्ली में दिल की ही कमी हो जाएगी !! दिमाग पर जोर ना डालिये अगर दिल होता तो निर्भया कांड क्यों होता भला यह तो सब कुछ शर्रेर के लिए ही हो रहा है अब दिल होता तो क्या सुनंदा पुष्कर कर शरीर चोट और जहर कर निशान लिए होता काश उस बेचारी को दिल्ली में दिल मिला होता | अब आपका दिल तो दिल्ली में लगा ही रहेगा आखिर देश का प्रधान मंत्री वही से तो आपको देखता है पर दिल में क्या चल रहा है क्या इसकी एक किरण भी आपको दिखाई दे रही है कही वैसे तो किरण से आजकल हर तरह प्रकाश दिखाई दे रहा है पर इस प्रकाश से अरविन्द या कमल ( दोनों पर्यायवाची है ) में कौन खिलेगा क्या आप अभी भी दिल्ली में दिल या दिल्लगी का मतलब समझना चाहते है | अगर दिल्लगी करनी है तो आईये दिल्ली में पानी ढँढते है वो देखिये यमुना का काला पानी यही तो पानी है जिसके लिए दिल्ली में चु ............नाव दिख रहा है और कीचड़ में अरविन्द या कमल कौन खिलेगा | दिल्ली में लाइट की चिंता करना आपके दिल्लगी का ताजा उदहारण है वैसे आपके प्रदेश में खुद कितने घंटे लाइट आती है |वैसे आप इस बार के दिल्ली चुनाव में दिल से वोट देने जा रहे या दिल्लगी करने क्योकि आपकी ४९ दिन की दिल्लगी से किसी को अपने वोटो का गर्भपात( अब जबर्दश्ती अपनी तानाशाही में सरकार गिरा देना गर्भपात से कम तो नहीं ) देखना पड़ेगा | तो कम से कम दिल का अपमान तो ना करें वैसे आज कल दिल है कहा सारा दिल तो युवाओ के पास है जो अपनी तरह का दिल ढूंढने में ही खो जाता है पर आखिर दिल्ली के दिल का क्या होगा ?????? दिल उसे दीजिये जो देवदास( वोटर ) का दर्द समझे और प्यार का मतलब समझे दिल्ली से दिल्लगी नहीं दिल का रिश्ता !!!!!!!!!!!!!! कौन बनाएगा ( वैसे अगर दिल का मतलब हम समझ रहे होते तो घरेलु हिंसा , मार पीट , तलाक , बलात्कार , वैश्यावृति होते ही नहीं ) क्या आप वोट ( दिल ) देने जा रहे है .संभल कर आगे कीचड़ है !!!!!!!!!!! ओह आपको पता है कीचड़ में ही कमल होता है ( काश आप इतना समझ पाते )
व्यंग्य समझ कर पढ़िए अखिल भारतीय अधिकार संगठन
१९११ में लार्ड कर्जन ने जब कलकत्ता से बदल कर देश की राजधानी दिल्ली बनाई तो किस को मालूम था कि दिल्ली में दिल की ही कमी हो जाएगी !! दिमाग पर जोर ना डालिये अगर दिल होता तो निर्भया कांड क्यों होता भला यह तो सब कुछ शर्रेर के लिए ही हो रहा है अब दिल होता तो क्या सुनंदा पुष्कर कर शरीर चोट और जहर कर निशान लिए होता काश उस बेचारी को दिल्ली में दिल मिला होता | अब आपका दिल तो दिल्ली में लगा ही रहेगा आखिर देश का प्रधान मंत्री वही से तो आपको देखता है पर दिल में क्या चल रहा है क्या इसकी एक किरण भी आपको दिखाई दे रही है कही वैसे तो किरण से आजकल हर तरह प्रकाश दिखाई दे रहा है पर इस प्रकाश से अरविन्द या कमल ( दोनों पर्यायवाची है ) में कौन खिलेगा क्या आप अभी भी दिल्ली में दिल या दिल्लगी का मतलब समझना चाहते है | अगर दिल्लगी करनी है तो आईये दिल्ली में पानी ढँढते है वो देखिये यमुना का काला पानी यही तो पानी है जिसके लिए दिल्ली में चु ............नाव दिख रहा है और कीचड़ में अरविन्द या कमल कौन खिलेगा | दिल्ली में लाइट की चिंता करना आपके दिल्लगी का ताजा उदहारण है वैसे आपके प्रदेश में खुद कितने घंटे लाइट आती है |वैसे आप इस बार के दिल्ली चुनाव में दिल से वोट देने जा रहे या दिल्लगी करने क्योकि आपकी ४९ दिन की दिल्लगी से किसी को अपने वोटो का गर्भपात( अब जबर्दश्ती अपनी तानाशाही में सरकार गिरा देना गर्भपात से कम तो नहीं ) देखना पड़ेगा | तो कम से कम दिल का अपमान तो ना करें वैसे आज कल दिल है कहा सारा दिल तो युवाओ के पास है जो अपनी तरह का दिल ढूंढने में ही खो जाता है पर आखिर दिल्ली के दिल का क्या होगा ?????? दिल उसे दीजिये जो देवदास( वोटर ) का दर्द समझे और प्यार का मतलब समझे दिल्ली से दिल्लगी नहीं दिल का रिश्ता !!!!!!!!!!!!!! कौन बनाएगा ( वैसे अगर दिल का मतलब हम समझ रहे होते तो घरेलु हिंसा , मार पीट , तलाक , बलात्कार , वैश्यावृति होते ही नहीं ) क्या आप वोट ( दिल ) देने जा रहे है .संभल कर आगे कीचड़ है !!!!!!!!!!! ओह आपको पता है कीचड़ में ही कमल होता है ( काश आप इतना समझ पाते )
व्यंग्य समझ कर पढ़िए अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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