कुत्ता ......................
मैं स्वामी का कुत्ता हूँ ,
स्वामिभक्त कहलाता हूँ ,
आने जाने वालो पर ,
भौंक बेवजह आता हूँ |
बेशर्म बना उनकी खातिर ,
पूँछ उठा कर चलता हूँ ,
दो रोटी पर बेचा जीवन ,
दुत्कार लिए मैं मिलता हूँ ,|
इज्जत की मैं सोचूं ना ,
तू तू करके लोग बोलते ,
नोची हड्डी पाकर भी ,
चहेरे से मैं खिलता हूँ |
काम हुआ या डर लगा ,
गोद में इनकी मिलता हूँ,
लात मिली मुझे सौगात में ,
औकात से जब मैं जलता हूँ,
कुत्ता हूँ फिर भी भरोसा ,
आदमी ही मुझ पर करता है ,
कोई ना कह दे दुम हिलाते ,
कुत्ता सुनने से डरता है |
धन्य है वो जो स्वामिभक्त ,
अंधे बनकर सब करते है ,
चाटुकार बन दुम हिलाते ,
कुत्तों का मान तो रखते है,
कर पाता जो उनकी पूजा ,
हाथ हमारे दो जो होते ,
आदमियों में कोई है अपना ,
चार पैर हमारे सार्थक होते ...........
आज पता नही क्यों ऐसा लगा कि कुत्ता का भी अपना एक दर्द होता है बस उसकी को उकेरने की कोशिश है ..................
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