Wednesday 21 January 2015

दिल्ली मेरे बाप की

दिल्ली नास्ति दूरे................दिल्ली दूर नही है
दूसरे विश्व युद्ध के समय अपने सैनिकों को सम्बोधित करते हुए देश के महान नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने हिम्मत बांधते हुए कहा था कि दिल्ली दूर नही है लेकिन ७० साल बाद दिल्ली दूर लगने लगी क्यों ???? जी जी मुझको मालूम है आप ट्रैन और एयर बस से चलने लगे है पर दिल्ली किन से दूर है ???????? खैर आपने जब सुभाष चन्द्र बोस का ही सौदा कर लिया तो दिल्ली की दूरी कहा समझ पाएंगे दिल्ली में कोई आये जाये आपसे क्या | वैसे दिल्ली हमारे देश के उत्तर दिशा के खुले हिस्से से इतनी पास थी खैबर दर्रा पार करके दिल्ली को उन लोगो ने ज्यादा हथिया लिया जो इस देश में आक्रमण कारी ज्यादा थे | क्या दिल्ली की दूरी कम हो रही है फिर से ???? ओह हो आप चाहते है कि तुगलक वंश को मैं कैसे भूला जा रहा हूँ न न न भला मोह्हमद बिन तुगलक को मैं कहा भूला वही तो था जिसे दिल्ली से प्यार हो गया था पर दिल्ली अपने ऊपर शासन करवाने की इतनी आदी हो चुकी थी कि बेचारा वो भी दिल्ली के आगे मुँह की खा गया | आप शायद पृथ्वी राज चौहान की दिल्ली फिर गजनी के हाथो में दे रहे है क्या ????? वो राजा अँधा होकर भी अपनी दिल्ली बचाने के लिए लड़ गया पर आप तो आखिरी बार अंग्रेजो के साथ रहे है और जो अंत में साथ दे वही तो सच्चा मित्र है और मित्र जाते जाते सीखा जो गया कि अगर राज करना है तो भाई भाई  को लड़ा दो उनको रोटी में इतना उलझा दो कि ये सोचने का मौका ही न मिले दिल्ली किसके हाथ में जा रही है ???? क्या आपको पता है दिल्ली का दिल क्या चाहता है या वेलेंटाइन डे की तरह दिल को भी बाजार में उतारना और बेचना आपको आ गया है ?? चलिए कह भी डालिये  तुमसे क्या मतलब कोई तुम्हारा  दिया खाता हूँ क्या ?? मैं जिसे चाहूँ  उसे दिल्ली दूँ !!!!!!!! चलिए मैं समझ गया कि आप एक को माँ समझ सकते है अब भला हिन्दू मुस्लिम सिक्ख  ईसाई सबकी माँ ( भारत ) को अपनी माँ मैंने का कोई ठेका थोड़ी न ले रखा है आपने ???पर इस माँ का दिल अपने बेटे की तरह देख रहा है आपकी तरफ ( वैसे दुनिया के सबसे जयदा अंधे इसी देश में है ) क्या आपको दिखाई दे रहा है ???टी ओ किसको ये दिल( वोट ) सौप रहे है ???????????? व्यंग्य समझ कर वोट की राजनीती समझिए और राष्ट्र को एक ही के हाथ में दीजिये ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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