Friday, 5 May 2023

बुद्ध पूर्णिमा और लोकतंत्र

 


 बुद्ध पूर्णिमा और लोकतंत्र

जन्म एक जैविक प्रक्रिया है लेकिन जन्म की परिस्थितियां एक जैविक प्राणी होते हुए भी सबको अलग-अलग तरह से स्थापित करती है और इसी क्रम में सिद्धार्थ नाम से जन्म लेने वाला एक बालक कालांतर में महात्मा बुद्ध कहलाने लगा जिनका जन्म लुंबिनी मैं 563 ईसा पूर्व हुआ था और जिनकी मृत्यु 483 ईसा पूर्व हुई क्योंकि गौतम बुद्ध का जन्म ज्ञान और मृत्यु तीनों वैशाख की पूर्णिमा के दिन संपन्न हुआ इसीलिए बुद्ध पूर्णिमा का महत्व बढ़ जाता है

वर्तमान में बुध की प्रासंगिकता सिर्फ राजनीति से होकर गुजरने वाला तथ्य या फिर सोशल मीडिया पर उनके साथ फोटो लगा देने वाला तथ्य बनकर ज्यादा रहा जा रहा है और इसी क्रम में यह समझना जरूरी है कि गौतम बुद्ध वर्तमान में जब लोकतंत्र की पराकाष्ठा है तब क्या प्रासंगिकता है

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध ने इस धर्म की स्थापना ही इसलिए किया था कि व्यक्ति धार्मिक कर्मकांड के जाल में उलझा ना रहे बल्कि अमूर्त रूप में अपने मानसिक स्थिति में जाकर या चिंतन कर सके कि वह कौन है और क्या है और इसी ब्राह्मणवाद के खिलाफ उन्होंने क्षत्रिय होते हुए भी एक धर्म की स्थापना कर दी वर्तमान में हम गौतम बुद्ध के रास्ते पर चलते हुए गौतम बुद्ध को ही कर्मकांड में इतना उलझा दिए हैं कि गौतम बुध की मुख्य शिक्षा बहुत दूर हो गई है

यह भी समझने की आवश्यकता है कि ज्यादातर हम यह कहते हैं कि फलां व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त हो गया ज्ञान प्राप्त होना किसी भी व्यक्ति के जैविक जीवन में अनुकरण की वह सामाजिक सांस्कृतिक स्थितियां है जो वह पैदा होने से पहले से ही ग्रहण करने लगता है और वही ग्रहण करें हुए सामाजिक सांस्कृतिक तत्व उसे एक विशिष्ट तरह का मानव बना कर समाज में प्रस्तुत कर देते हैं जिसके कारण हम किसी को हिंदू कहते हैं किसी को मुसलमान कहते हैं किसी को सिर्फ किसी को ईसाई या सिर्फ उन विशेषताओं के अनुकरण के कारण होता है लेकिन जब कोई व्यक्ति इन अनुकरण की पद्धति से अरे जाकर अपने दिमाग को उस स्थिति में ले जाता है जहां पर अन्य जीव-जंतुओं की तरह मानव भी एक प्राकृतिक मानव की तरह होता है और उस स्थिति में जब मानव प्रकृति के तत्वों को समझने में सक्षम हो जाता है तब उस दृष्टिकोण को ही हम ज्ञान कहते हैं और इस अर्थ में महात्मा बुध की ज्ञान प्राप्त करने की स्थिति को और ज्यादा समझने की आवश्यकता है क्योंकि हमने अनुकरण की पद्धति में जो कुछ भी सीख लिया है उसके अनुसार हमारे अंदर घृणा हिंसा प्रतिस्पर्धा आज इतना बढ़ गया है यह हम उस अनुकरण किए गए तत्वों से ऊपर जाकर सिर्फ मानव बन कर रहे नहीं पाते और इस अर्थ में गौतम बुध की शिक्षा को हमें समझना होगा

दुख से मुक्ति के आठ उपायों को बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग कहा है। ये हैं- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्मात, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। लेकिन आज ना हमारे पास समय दृष्टि है ना सम्यक संकल्प है ना सम्यक वाणी है हम बुद्ध को ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उनके सिद्धांतों से दूर जा रहे हैं जबकि लोकतंत्र में बुद्ध की शिक्षा की बहुत आवश्यकता है

जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो हमें गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी उस कहानी को समझना होगा जिसमें वह अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड या त्याग कर देते हैं बाद में सन्यासी होने पर जब वह अपने गृह प्रदेश में लौटते हैं तो पत्नी यशोधरा उनसे शास्त्रार्थ जब करती है तो वह कहते हैं कि मैं पिछली बातों को तो नहीं जानता लेकिन तुम चाहो तो मेरे साथ आ सकती हो और उनके पुत्र और पत्नी दोनों उनके साथ सन्यासी हो जाते हैं लेकिन उसके बाद पत्नी और बेटे का क्या हुआ कोई नहीं बता सकता ना ही किसी ने आंसू ना होगा कि गौतम बुद्ध ने उन्हें अपना अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया आज बौद्ध धर्म के नाम पर प्रभंजना करने वाले या जो बौद्ध धर्म को नहीं मानते हैं उन सभी को लोकतंत्र में इस बात से शिक्षा लेनी चाहिए व्यक्ति को अपनी तरफ से उत्तराधिकारी घोषित करने में रुचि नहीं रखनी चाहिए नहीं तो उस दिन लोकतंत्र की हत्या हो जाती है यही नहीं वह दिन ही ऐसा होता है जब हम बौद्ध धर्म और बुध का खुले रूप से बहिष्कार करते हैं

आज जिस तरह से बौद्ध धर्म को मानने वाले और उसके सापेक्ष दूसरे धर्म के लोगों के बीच घृणा का माहौल है उसमें भी बुद्ध की शिक्षाओं को उतारना होगा जिसमें एक वेश्यावृत्ति करने वाली महिला की शिकायत होने पर बुद्ध उस गांव के लोगों से कहते हैं कि सब लोग अपना एक हाथ ऊपर उठाओ और ताली बजा कर दिखाओ सब कहते हैं संभव ही नहीं है तब बुद्ध कहते हैं तो आप ही सोचिए कि कोई महिला वैश्या फिर बनी अकेले कैसे आप के कारण ही वह वैश्या कहलाई है आज जो लोग भी आपस में द्वेष घृणा हिंसा फैला रहे हैं उन्हें समझना होगा कि वह बुद्ध की ही बनाएं मानकों से दूर जा रहे हैं

जिस समय बुद्ध ने ब्राह्मणवाद का विरोध करके बौद्ध धर्म की स्थापना किया था उसी के समानांतर में पूरे विश्व में कई ऐसे देश है जो धर्म का मतलब समझते ही नहीं थे और उस अज्ञात के प्रति जुड़ने की संभावनाओं के पीछे भाग रहे थे उसी का कारण है कि बुद्ध का यह प्रयास इस धर्म को विश्व के कई देशों में स्थापित करके इसे एक वैश्विक धर्म के रूप में स्थापित कर गया पर आज बुद्ध की वहीं शिक्षाएं बुद्ध के देश में न्यूनतम स्तर पर है बौद्ध धर्म अपने न्यूनतम स्तर पर है क्योंकि हम बुद्ध की शिक्षाओं से दूर हैं सामान्य अर्थों में बांट समझे तो जिसके पास बुद्धि है वही बुद्ध है और उस अर्थ में हम सिर्फ अपनी कपाल धारिता के कारण अपने को बुद्धिमान कहने लगे हैं लेकिन विश्लेषण की धरातल पर हमारे पास बुद्धि अब रहे नहीं गई है हम अनुकरण की पद्धति अपनाते हुए अपने को विभिन्न धर्म जाति से जुड़ने लगे हैं लेकिन बुध के ज्ञान की परंपरा में हम वहां जाकर अपने को मानव नहीं समझ पा रहे हैं जहां पर प्रकृति की गोद में हम सब एक तरह के जैविक प्राणी हैं और उस अर्थ में संतोषम परम सुखम की भावना रखते हुए हमें एक दूसरे के लिए जीने की जो संकल्पना होनी चाहिए वह गौतम बुद्ध के देश में कम होती जा रही है

गौतम बुद्ध लोकतंत्र की स्थापना में ही जिस तरह एक गाली देने वाले व्यक्ति को या समझाते हुए कहा कि जब आपका कोई दिया हुआ सामान में नहीं लेता हूं तो वह आपके पास ही रह जाता है ऐसे ही अगर आपने अपशब्द जो कहे हैं उसे मैंने ग्रहण ही नहीं किया तो वह आप शब्द भी आपके पास रह जाएंगे इतनी आदर्श चेतना वाली बात को आज हम अपने जीवन में उतारने से बचते हैं हम किसी गाली देने वाले किसी हिंसा करने वाले किसी मारपीट करने वाले को उसको पूरा जवाब देते हैं और वहीं पर आकर हम बौद्ध धर्म और गौतम बुद्ध के आदर्शों के सामने बिल्कुल खोखले खड़े हो जाते हैं हमसे प्रतीक के रूप में गौतम बुद्ध को अपने जीवन में उतार कर अपने जीवन के अर्थ ढूंढने वाले प्राणी जरा दिखाई देते हैं और इसी को समझ पाना आज बुद्ध पूर्णिमा के दिन नितांत आवश्यक है क्योंकि यही आदर्श लोकतंत्र की स्थापना होगी 

डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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