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कार्ल मार्क्स का द्वि शताब्दी जन्मोत्सव .................. साम्यवाद के जनक कहे जाने वाले कार्ल मार्क्स १८१८ में इस दुनिया में आये और १८८३ में चले गए आज पूरी दुनिया में उनके जन्मदिन के दोहरे शतक की गूंज मैं हर कही कई दिनों से सुन रहा हूँ पर मेरा मन कही और उड़ रहा है क्योकि मैं जिस कार्ल को जानता हूँ वो कार्ल इस विद्वान जनों की जमात में कही भी फिट नहीं बैठते है और न ही उनके लिए इस बात का कोई भी महत्व है कि जीवन में अपने ज्ञान से कितना पैसा कमा ले पर ये सच है कि अपनी काली खासी का इलाज न करा सकने वाले कार्ल के सिधान्तो को बता कर पढ़ा कर न जाने कितने मनुष्य वैश्विक ज्ञानी बन गए कितनो को उनके सिधान्तो की छाव में कम से कम ६०-७० हज़ार रुपये महीने की पेंशन मिल रही है पर ये वो कार्ल मार्क्स की कहानी है जिसके पास खुद की लड़की के इलाज के लिए पैसे तक नहीं थे और उनको अपने कोट तक को गिरवी रखना पड़ा पर तब तक देर हो चुकी थी और लड़की दुनिया से जा चुकी थी | आज हम सब उस कार्ल मार्क्स का दोहरा शतक जी रहे है जिसने पुस्तकालय में उन किताबो के बीच बैठ कर अपने फेफड़े को छलनी कर डाला जिसकी धूल उसकी सांसो में घुसकर कर उसके जीवन को छत विछत कर गयी | कोई नही जानता कि दास कैपिटल , कम्युनिस्ट मैनिफिस्तो जैसे आदर्श ग्रन्थ देने वाले अपने जीवन को धूल के बीच कैसे धूल धूसरित कर रखा था .आज जब किसी के पास किताब देखने तक की फुर्सत नहीं है तब उस व्यक्ति ने क्या कर डाला था | आप को शायद पता नही है कि कार्ल ने अपने से ४ साल बड़ी जेनी वोन वेस्त्फ्लेन से शादी की जबकि वो नहीं चाहते थे क्योकि जेनी के पिता जेर्मनी की सरकारमे ऊँचे पद पर थे | जर्मनी सरकार उनके राई निश जीतुंग समाचार पत्र को लेकर सरकार उनसे नाराज रहती थी और अपने सिधान्तो और राष्ट्र के लिए जीने वाले कार्ल को न जाने कितने देशो से निर्वासन की मार झेलनी पड़ी पर वो कभी झुके नहीं पर आज हम को सरकार की घुड़की भी मिल जाती है तो हम अपने बिल में छिप जाते है ऐसे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति से जेनी ने शादी की और जिस दिन शादी कर ली उस दिन के बाद हर तरह के सुख में पलने वाली जेनी ने सिर्फ अपने पति के सम्मान के लिए सारे सुख का त्याग कर दिया क्योकि वो नहीं चाहती थी कि कभी उनके कारण उनके पति को शर्मिंदा होना पड़े | आज एक सिर्फ पढने वाले व्यक्ति जो गरीब हो कितनी जेनी शादी कर के उसका साथ देना चाहती है ऐसे कार्ल के जीवन के दोहरे शतक मनाने वाले कार्ल की पत्नी का बड़ा भाई भी शादी के बाद जर्मनी सरकार मे मंत्री पद पा चुका था और इन्ही सब के बीच जेनी और कार्ल का बड़ा लड़का मर गया घर मे गरीबी का हाल ये था कि अपने मृतक बेटे के लिए काफिन बॉक्स तक बनवाने के पैसे नहीं थे और अगर जेनी चाहती तो अपने पिता भाई से सहायता ले सकती थी पर अपने पति की गारिमा को ध्यान में रख कर वो अपने पडोसी के घर गयी और कुछ पैसे उधार लायी और अपने पुत्र की अन्तेय्ष्टि की क्या ऐसे आदर्श जीवन का एक भी अंश आज हम जी रहे है शायद नहीं हमको आज के दौर में सिर्फ कार्ल मार्क्स के सिधान्तो को पढ़ा कर इति कर ली जाती है पर अगर उनके जीवन के इन पहलुओं को भी पढाया जाए तो शायद बच्चे के जीवन में शिक्षा के प्रति ज्यादा जाग्रति और संवेदनशीलता आएगी .कार्ल मार्क्स के ऊपर फूल चढ़ा कर , उनकी फोटो लगा कर या सोशल मिडिया पर उनको शुभकामना देकर उनके २०० वे जन्मदिन की बधाई न देकर सोचिये कि क्या आज तक आपने कभी कार्ल मार्क्स जैसे एक इंच भी जीवन जीकर समाज को कुछ देने का प्रयास किया है यदि नही तो कार्ल मार्क्स के साम्यवाद की यही सबसे बड़ी हार है जो कार्ल को सिर्फ ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाने वाली एक तस्वीर से ज्यादा कुछ नहीं बना रही जैसे बुद्ध के लिए आज इस देश में हो रहा है | कार्ल का जीवन उन सारे बुद्धिजीवियों के लिए प्रेरक है जो ये कह कर पीछे हट जाते है कि आर्थिक विपन्नता के कारण या पारिवारिक वजहों से वो शिक्षा के क्षेत्र मे कुछ नही कर पाए क्योकि कार्ल ने इन सब बातो को झूठा साबित करते हुए मानव को पृथ्वी की सबसे सुंदरतम कृति क्यों कहा जाता है ये सिद्ध करने में सफलता अर्जित की | अखिल भारतीय अधिकार संगठन ऐसे महा मानव को नमन करता है डॉ आलोक चान्टिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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