Monday, 8 May 2023

मणिपुर हिंसा और जनजाति

 मणिपुर क्यों जल उठा

1947 में देश स्वतंत्र जरूर हो गया लेकिन देश शब्द को सार्थक और वास्तविक रूप देने में जिन 562 रियासतों का विलय किया गया उनके अंतर्गत उनकी मूल भावना से इधर देश की वृहद भावना को पिरोने के लिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जिस हम भारत के लोग की बात कही गई थी वह हम की भावना एक ऐसी कृत्रिम स्थिति के रूप में सदैव रहा जिसके कारण अनेकता में एकता वसुधैव कुटुंबकम हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई जैसे तमाम सामाजिक सरोकार के सांस्कृतिक प्रयास की सच्चाई हिंसा अराजकता असंतोष विद्रोह में दिखाई देती रही है कभी पंजाब में आग लगती है तो कभी कश्मीर सुलग उठता है और उसी क्रम में 3 मई 2023 को सेवेन सिस्टर्स आफ इंडिया कहे जाने वाले पूर्वोत्तर राज्यों का एक महत्वपूर्ण राज्य मणिपुर हिंसा की चपेट में आ गया जिसमें करीब 54 लोगों की जान चली गई इंजन जाने वाले लोगों को भी भारतीय संविधान की प्रस्तावना में हम के साथ ही देखा जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यह 54 लोग सिर्फ एक हाड मास के ऐसे व्यक्ति बन कर रह गए जिनको प्राकृतिक संस्कृति के अनुसार सिर्फ किसी दूसरे के हक को मारने वाला उस पर कब्जा करने वाला समझ कर देखा जाने लगा

1852 में जब अंग्रेजों द्वारा तत्कालीन समय में कहे जाने वाले वर्मा पर कब्जा किया गया तो वह वहां पर रहने वाले लोग भी अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में आ गए और 1937 में बर्मा भारत से अलग होकर म्यानमार के रूप में आज एक देश के रूप में स्थापित है एक देश के रूप मैं अलग होने पर बर्मा मैं रहने वाले बहुत से लोग भारत सहित वर्मा में भी रह गए और उन्हीं में मेतेई भी एक ऐसा समूह था क्यों दोनों देशों में उभयनिष्ठ रहा इसी बीच में 1972 में मणिपुर भी भारत का एक पूर्व राज्य बन गया और पूर्ण राज्य बनने के बाद वहां पर रहने वाले लोगों में नागा जनजाति और कुकी जनजाति के लोगों को आदिम जनजाति होने का लाभ मिला लेकिन मेतेई करीब 53% प्रतिनिधित्व करने के बाद एक हिंदू समूह के रूप में स्थापित रहा

आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व मेतेई लोगों ने अपने जीवन में गुणात्मक सुधार करने के लिए सरकार से अपने को आदिम जनजाति के रूप में चिन्हित करने के लिए संघर्ष आरंभ किया और यह संघर्ष धीरे धीरे धीरे धीरे फिर न्यायालय में चला गया और न्यायालय ने मेतेई लोगों के सांस्कृतिक सामाजिक जीवन को देखते हुए 19 अप्रैल 2023 को राज्य सरकार से यह निर्देश दिया कि वह इन लोगों को आदिम जनजाति में शामिल करने पर विचार करें और यही निर्देश मणिपुर में हिंसा का प्रमुख कारण बन गया क्योंकि इससे नागा और उनकी जनजाति के लोगों को लगने लगा कि उनके हितों पर अब उन लोगों का कब्जा हो जाएगा जो इसके अधिकारी नहीं थे

मणिपुर का कुल क्षेत्रफल 22237 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 2238 वर्ग किलोमीटर का घाटी क्षेत्र है जिसमें मेतेई लोग रहते हैं और इसके अतिरिक्त 20089 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पहाड़ी क्षेत्र है जिस पर मुख्य रूप से नागा और कुकी जनजाति के लोग रहते हैं यहां पर यह भी जानना आवश्यक है कि मैरीकॉम जैसे खिलाड़ी भी मेतेई जाति समूह की है और भी कई गणमान्य लोग इस समूह को प्रतिनिधित्व करते हैं उच्च शिक्षा होने के बाद भी ज्यादातर प्राकृतिक संसाधनों पर नागा और कुकी जनजाति का कब्जा होने और उनको आरक्षण मिलने के कारण मेतेई लोगों को कई नामों से वंचित होना पड़ता है ऐसे में जब न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को यह निर्देश दिया गया तो नागा और कुकी जनजाति के लोगों ने इसे अपने हितों के विरुद्ध मानते हुए ऑल इंडिया स्टूडेंट्स ट्राइबल यूनियन के माध्यम से 3 मई 2023 को इसका विरोध शुरू किया जो जल्दी ही हिंसात्मक रूप में परिवर्तित हो गया और उसमें बहुत से लोगों की जान चली गई बहुत सी राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान हो गया

यह भी महत्वपूर्ण है कि भारतीय संविधान की पांचवी और छठी अनुसूची में है या व्यवस्था की गई है कि पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम मिजोरम मेघालय त्रिपुरा में स्थानीय क्षेत्र पंचायत और स्थानीय जिला परिषद अपने जनजातीय समूहों के लिए कुछ विशिष्ट कानून बना सकती हैं सड़क स्कूल आदि के लिए अपने नियम बना सकती इसी तरह से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 ए में नागालैंड को विशेषाधिकार प्राप्त है और 371c में मणिपुर को विशेषाधिकार प्राप्त है लेकिन यदि मेतेई लोगों को भी जनजाति का दर्जा मिल जाएगा तो जनजातियों को मिलने वाले सारे लाभ इन लोगों को भी समान रूप से मिलने लगेंगे और उच्च शिक्षा और जागरूकता के कारण यह नागौर की जनजातियों की अपेक्षा ज्यादा लाभ लेकर राज्य में अपने प्रभुत्व को ज्यादा स्थापित करेंगे इस सच को लेकर ही उनकी और नागा जनजातियों के द्वारा इस तरह का हिंसात्मक आंदोलन आरंभ कर दिया गया है और यहीं पर आकर भारतीय संविधान के प्रस्तावना का हम शब्द ज्यादा स्पष्ट होकर सामने दिखाई देता है जिसमें हम नैसर्गिक रूप से बहुत दूर दिखाई देता है और कृत्रिम और वैधानिक रूप से ही हमको स्थापित करने का प्रयास किया जाता रहा है और इसी हम की वास्तविकता का प्रतिफल मणिपुर की वह हिंसा है जो एक राज्य के विशेषाधिकार के अंतर्गत रहने वाले वहां के समस्त समूहों के बीच की प्रतिस्पर्धा हिंसा ईर्ष्या को ज्यादा मुखर करता है जिसको संवैधानिक अस्तर पर आज ज्यादा समझने की आवश्यकता है डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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