Friday 5 May 2023

नाम जैविक शरीर का एक कोड है और इस कोड को बदला जा सकता है

 अपने नाम को बदलना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत संवैधानिक मौलिक अधिकार है 


यह एक सामान्य सी बात है कि जब भी हम किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान का नाम लेते हैं तो हमारे दिमाग में तत्काल ही उस नाम के प्रतिबिंब के रूप में मस्तिष्क में एक आकृति उभर आती है और हम जान जाते हैं कि हमारे सामने जो नाम लिया गया है वह क्या है कौन है ऐसे ही जब हम किसी भी भीड़ में खड़े होकर किसी व्यक्ति का नाम पुकारते हैं तो एक समान मनुष्यों की भीड़ होने के बाद भी वही व्यक्ति उस नाम को सुनकर अपना दृष्टिकोण और अपनी अभिव्यक्ति करता है जिसका नाम पुकारा जा रहा है इससे यह तो स्पष्ट है कि नाम किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान के आकार संरचना व्यक्तित्व को परिभाषित करने वाला एक सशक्त माध्यम और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) a के अनुसार भी व्यक्ति को अपना नाम रखना या उस नाम को बदल कर दूसरा रख लेना उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत मौलिक अधिकार है इसको कोई यह कहकर नहीं रोक सकता कि तकनीकी कारणों से सरकारी दस्तावेजों में जो नाम दर्ज हो गया है उस नाम को दोबारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता है और यह अदाओं पर और पेचीदा तब उभर कर सामने आई जब भारत के केरल राज्य के उच्च न्यायालय में कशिश गुप्ता नाम की एक 17 साल की लड़की ने याचिका दायर करके सीबीएसई बोर्ड के विरुद्ध  यह वाद दायर किया कि उसने अपना नाम परिवर्तित कर लिया है लेकिन सीबीएससी बोर्ड उसके नाम को तकनीकी आधार पर उतरने की विधियों के आधार पर परिवर्तित करने से इंकार कर रही इसके लिए वह परीक्षा नियम 69.1 (I) का हवाला दे कर सर्टिफिकेट में छप चुके नाम के बाद उस नाम को परिवर्तित करने से इंकार कर रही है जबकि कशिश गुप्ता ने अपने नाम को परिवर्तित करने की सारी औपचारिकताएं पूर्ण कर ली और उसके नाम को परिवर्तित करके नए नाम को स्वीकृति राज्य सरकार द्वारा भी मिल चुकी थी ऐसे में जब सीबीएसई बोर्ड ने उसके नाम को परिवर्तित करने से इंकार कर दिया तो याचिकाकर्ता ने केरल हाई कोर्ट में वाद दायर किया जिसके प्रकाश ने कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि नाम एक व्यक्ति के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है उसकी पहचान है वह समाज में उसी के द्वारा जाना जाता है पहचाना जाता है और यह उस व्यक्ति पर है कि वह अपने नाम के साथ किस तरह से जुड़ना चाहता है यदि कोई व्यक्ति यह चाहता है कि उसका नाम परिवर्तित हो जाए या उसे दूसरे नाम से जाना जाए तो यह भी उसके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और इसको बाधित नहीं किया जा सकता या उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा और इसीलिए केरल हाईकोर्ट में सीबीएसई बोर्ड को निर्देश देते हुए आदेश दिया है कशिश गुप्ता के नाम के परिवर्तित होने के बाद जो नया नाम है उसको सर्टिफिकेट में भी परिवर्तित किया जाए यह विवाद तब ज्यादा गहरा गया जब गुप्ता ने अपने नाम को परिवर्तित करने की प्रक्रिया के बीच में ही सीबीएसई बोर्ड की हाईस्कूल की परीक्षा दी और स्कूल द्वारा उसका नाम परिवर्तित नाम के बजाय पूर्व वाला नाम ही भेज दिया गया जो सर्टिफिकेट गुप्ता के अनुसार उसका नाम नया वाला जाना चाहिए था इसीलिए उसने सीबीएसई बोर्ड के सर्टिफिकेट पर नाम परिवर्तित कराने के लिए आवेदन किया और सर्टिफिकेट  नाम परिवर्तित किए जाने से इनकार करने पर उसने केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर की जिस पर यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया वैसे सामान्य सी बात है कि अक्सर अखबारों में यह देखने को मिलता है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने नाम परिवर्तन की घोषणा की जाती है और उस घोषणा में कहा जाता है कि अब उसका पूर्व नाम बदल गया है और अब वह अपनी इस नए नाम से जाना जाएगा इस प्रक्रिया के बाद ही वह सभी जो हो पर उस समाचार पत्र की कटिंग के साथ अपने नाम परिवर्तित किए जाने की सूचना देता है और उसके अनुसार उसका नाम सभी दस्तावेजों में पूर्व नाम की जगह नए नाम से लिख लिया जाता है लेकिन परीक्षाओं के सर्टिफिकेट पर नाम परिवर्तित किया जाना तकनीकी आधार पर हर जगह देखने को मिलता है जिससे है कभी-कभी नाम परिवर्तित करने वाले व्यक्ति को अपनी ही पहचान स्थापित करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इसीलिए उपरोक्त प्रकरण एक महत्वपूर्ण प्रकरण है और इसको ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करके इस बात की स्थापना की जा सकती है या की जानी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति अपना नाम परिवर्तित करता है तो सभी शैक्षिक प्रमाण पत्रों पर भी उससे संबंधित बोर्ड यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थाएं उसने नाम को स्वीकार करने और उससे परिवर्तित करने से कोई भी रोक नहीं लगा सकती ऐसा करना सिर्फ और सिर्फ मौलिक अधिकार का उल्लंघन ही होगा 

आलोक चाटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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