Saturday, 19 January 2013

Commercialisation of Education

शिक्षा: बाजारीकरण
भौतिकतावादी संस्कृति के प्रसार के कारण शिक्षा को उद्योग के रूप में देखना प्रारंभ होने के बाद से इसके दुष्परिणाम आने प्रारंभ हो चुके हैं। बाजारीकरण होने के कारण आज उच्च शिक्षा में वे तमाम हथकंडे अपनाये जा रहे हैं जो बाजारों में अन्य किसी सामान की खरीद-फरोख्त में अपनाये जाते हैं। दलाली, घूसखोरी, नक़ल करवाना , पी एच डी थीसिस लिखवाना आदि प्रचलन में है।स्ववित्त पोषित शिक्षा व्यवस्था तो पूरी तरह से जैसे पैसे की बुनियाद पर रखी हुई है। पहले शिक्षा ज्ञान की उपलब्धि , संस्कारों की प्राप्ति का साधन थी . समय के साथ धीरे धीरे यह व्यवसाय /नौकरी का साधन बनी और अब इसका उद्देश्य मात्र डिग्री पाना भर रह गया है। मुश्किल यह है की जाने अनजाने हम सभी इस व्यवस्था के भागीदार बनते जा रहें हैं। शिक्षा के सारे स्थापित मूल्य ध्वस्त हो रहें हैं और समस्त सम्बंधित बाजारू होते जा रहें हैं। लगाम लगानी होगी। अन्यथा एक ऐसी अंतहीन दौड़ प्रारंभ हो चुकी है जिसमे व्यक्ति का सारा जीवन पैसा देकर शैक्षिक डिग्रियां खरीदने एवं फिर उन डिग्रियों की सहायता से उनकी कीमत वसूलने में ही बीत जायेगा। और जो डिग्रियों की कीमत नहीं वसूल पायेगा वो कुंठित और निराश होकर ऐसे कार्य करना प्रारंभ कर देगा जिन कार्यों को करने के लिए उसे उन डिग्रियों को प्राप्त करने की आवश्यकता ही न थी। डॉ बी डी पाण्डेय

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