Friday, 9 August 2013

चींटी सा जीवन

हमें बटोरने की आदत हो गयी है ........
चींटी जैसी सहादत हो गयी है ..........
मौत से भागते भागते आलोक ........
जिन्दगी कब की खो गयी है ...........डॉ आलोक चान्टिया ..............हो सकता है आपको मेरी बात सही न लगे पर जैसे चींटी बस कल की चिंता में हर समय बटोर करती है और उसको अपने कल या शाम को घर लौटने तक का इल्म नहीं होता .....वैसे ही कुछ मनुष्य हो गया है .........शुभ रात्रि

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