Friday, 23 August 2013

संत का अंत या इच्छा अनन्त

संत या अंत या इच्छा  अनंत
जनगन में घूमने वाले नंगे आदमी और आप के कपडा पहनने में क्या कोई फर्क है ....हा हा आप नंगे जो नहीं दिख रहे है पर नंगे हा समय होना चाहते है क्योकि आपतो प्राकृतिक बनाने और बनने की कसम जो खाए बैठे है !!!!!!!!!!!!!!!! शेर तक इतना कमीना नहीं है ( भैया शेर जी माफ़ करियेगा मनुष्य के कारण आपको अब्शब्द कह डाला ) जो किसी भी घूमती शेरनी के शील का हरण कर ले ....वो भी पहले अपने शरीर के पराक्रम का प्रदर्शन करता है फिर शेरनी अपने अस्तित्व और सतीत्व को उसको सौपती है .....पर आप तो जहा लड़की या औरत को देखेंगे उसको जब तक ये न समझा डाले कि लाख संस्कृति बन गयी हो पर तुमको पुरुष शरीर से ज्यादा न देखता था और ना देखेगा ( मानव का सबसे पहला आगमन पृथ्वी पर अस्ट्रेलो पिथिकस के रूप में हुआ जो खुले रूप से मादा के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाता था क्या आज मानव में वही गुण नहीं रह गए है ) ...कितनी बढ़िया बात है कि लड़की आपको पिता गुरु संत सम्ह कर सर झुकाए और आप ऊँगली पर ये गिने कि एक और फसी या उपभोग का अंत अगर संत के पास न हुआ तो परमार्थ कैसे होगा ?????? वह क्या है ज्ञान वैसे भी अगर लड़की ही कुलाक्षनी, कुलटा, व्यभिचारनी , चरित्र हीन कही गयी भला पुरुष ये सब कहा हो सकता है वो तो बेचारा बदल की तरह अपना ही सनबी कुछ दान कर देता है भिखारी तो लड़की है जो आपसे लेती और भिखारी की कोई इज्जत नहीं होती इसी लिए माँ की तो हम ऐसी तैसी कर देते है चाहे देश को माँ कह कर बाट दे या गंगा  को माँ कह कर मैली कर दे और या फिर मानव के रूप में महिला तो आपकी गुलाम है ....और औरत कहती रहे वो पवित्र है साफ़ है पर उसकी क्या औकात आपकी नज़र में जो आप उसकी बाट मान ले आप तो अग्नि परीक्षा भी लेंगे ही ...........................अब तो साफ़ है ना कि ऐसे में आप क्यों न कहे कि १६ साल की लड़की कलयुग के अंत पर जो आरोप लगा रही है वो संत का मार्ग है ही नहीं ..................कब तब हम विवेकानंद जी का सर शर्म से झुकाते रहेंगे जिन्होंने शिकागो में अपने कमरे में नग्न लड़की को पाकर भी उसका स्वागत माँ के रूप में किया उसको मार्गेट नोबल से भगिनी निवेदिता बनाया .........और आप ने लड़की देखी नहीं कि सिर्फ कपडा उतरने का मन हुआ .............कैसे कोई बेटी आज किसी पुरुष के कहने पर अकेले में मिले ......हा हा हा आप को तो मेरी बाट गलत लगेगी ही क्योकि अकेले मिलने पर आप उसको जीवन का दर्शन जो दे देते है और तो दर्शन इतना पीड़ा दायक होता है कि न तो वो किसी को बता सकती है न कह पाती है और आप मंच पर नाच नाच कर कहते है ....इसको इश्वर की प्राप्ति हो गयी है ........इसने ब्रह्म को समझ लिया है जिसका वर्णन कोई नहीं कर सकता ...इसी लिए ये लगातार रो रही है ....ये पागल नहीं है ये तो उस ब्रह्म में डूब कर चिल्ला रही है ये बचाओ बचाओ इस लिए कह रही है क्योकि इसका मन इस सांसारिक दुनिया से उठ गया है .पर कोई नहीं जान पाता कि आपने अपने अलौकिक ज्ञान की जन जाने कितनी कुदाल उस सृजन की धरती पर चलाई है .........चिल कर कहिये कि आलोक तो दर्शन की बात करते है  और हम संत लोग सिर्फ आपके अंत की बात करते है ..............इस बालिका को मेरे कमरे में ले चलो आ रात इसके मन में जो कुछ भय रह गया हा उसको अपने तेज ( जनन द्रव ) से मई भस्म कर दूंगा और कल की सुबह में ये इसी दुनिया में रह कर उस सब को भूल जाएगी और इसके गर्भ से कुमारी रहते हुए भी एक दिव्या शक्ति जन्म लेगी ..........................क्यों संत जी मैं सही  कह रहा हूँ ना ..ऐसा करिए एक और महिला कालेज खोल दीजिये ताकि रोज कियो को दिव्या ज्ञान करा सके आखिर शक्ति के बिना तो आप शव है ना .......................वैसे अगर आप लोग संत बन कर लड़की को इस दुनिया का अंत दिखाना चाहते हो तो आइये आइये हमारे शिविर में पंजीकरण शुरू है .............दो का पंजीकरण करने पर एक का मुफ्त और रात की कलि शक्तियों का प्रशिक्षण  बिलकुल मुफ्त और आपभी कर सकते है टीका लगा कर किसी सोलह साल की लड़की ??????????????????????? जीवन  .........................क्या आपका अंत कोई संत है ( व्यंग्य समझ कर पढ़ा जाये )

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