चौराहे पर रुपये के साथ खुलेआम बलात्कार ....................
मनमोहन सिंह जी क्या आप राखी का मतलब समझ रहे है या देश कि आर्थिकी को राख में मिलाकर ही राखी( बर्तन को साफ़ करने वाली कोएले की राख को भी राखी कहते है ) से प्रगति को चमकाएंगे ...............वैसे ही देश में लोग रोटी प्याज़ ( देश के गरीब किसानो का भोजन )खाने के लायक नहीं बच रहे है फिर देश २०२० में अमीर कैसे होगा क्या उस समय तक आप लोगो को पश्चाताप की आग में जल कर स्विस बैंक का सारा पैसा देश में ले आयेंगे ??????? या स्विस बैंक में इस देश को रख कर उसके ब्याज से देश वालो को प्याज़ दिलवाएंगे ??????? मुझे नहीं लगता की देश में लोग रहते है क्या विदेश में लोगो ने बच्चा पैदा करना बंद कर दिया है उसी के कारण तो जनसँख्या नीति बनाने में हिचक रहे है कि आने वाले समय में भारत का सामान तो कोई देश खरीदने से रहा हा उस देश में बच्चा पैदा करने के लिए लोगो को बेच जायेगा और देश उसी से कम कर अपनी आर्थिक नीति सुधारेगा!!!!!!!! रूपया ऐसे गिर रहा है जैसे उबड़ खाबड़ सड़क पर गाड़ी चलाने वालो कि रीड की हड्डी >>.......क्या इसको रोकने के लिए कोई ट्रेक्सन( एक व्यवस्था जिसमे रीड की हड्डी सीधी रखने के लिए पैर में भर बांध कर खीचा जाता है ) पर उसके बाद कही पूरा देश ही विकलांग तो नहीं हो जायेगा ( वैसे भी विश्व में सबसे विकलांग इसी देश में पाए जाते है ) वैसे भी अपनों को विकलांग दिखा कर भीख मांगने का प्रचलन इस देश में मंदिर मस्जिद के बाहर देखन एको मिल जाता है , कही देश को विकलांग दिखा कर भीख मांगने का इरादा तो नहीं है ........मुझे तो लगता है कि नेता नगरी ने मुंशी प्रेम चाँद का कफ़न उपन्यास पढ़ रखा है .......देश कि जनता ( अंदर बहु प्रसव वेदना में मर रही होती है और बाहर ससुर और बीटा मिल कर आलू भून भून कर खाते है ) को मरने देकर आप खुद अपने जीने का रास्ता सोच रहे हो और वैसे भी आपको प्याज़ से क्या मतलब ..कौन आपको बाज़ार जाकर खरीदना पड़ता है .....कहिये सारी बाज़ार खुद बिना पैसे के प्याज़ डाल जाये ) और विअसे भी जनता यही कि पढ़ी लिखी ( किताब और डिग्री की बात नहीं कर रहा हूँ ) है ही कहा वो तो सूरदास की तरह बस अंगूठा छाप आज भी है ....................बस चुनाव से पहले इन मत वाले लोगो के हाथ में वैसे ही कुछ दे दीजियेगा जैसे भिखारी को देते है बस पेट की आग में जलते ये अंधे लोग फिर ५ साल आपको ढोयेंगे क्योकि इनको भी देश से क्या लेना देना ये तो बस अपने खून मांस से बने लोगो के लिए जीते है वो किसी तरह जी जाये बाकि देश जाये भाड़ में ....कौन जागीर लिखा कर आये है और अमर होकर आये है .... इस लिए आप न जनसँख्या रोकिये ...न डीजल न पेट्रोल और प्याज़ जैसे फर्जी बातो पर तो ध्यान ही न दीजिये बस रात दिन यही सोचिये कि भिखारी दर्शन का ऐसा कौन सा फार्मूला लगाया जाये और इनके आगे फेंक कर कैसे इन मानव बीजो को फिर ५ साल गुलामो से भी बदतर रखा जाये आखिर प्रजातंत्र में अगर इनको खाना , पानी बिजली सब मिलाना शुरू हो गया तो आपको रजा कौन समझेगा और फिर ये ४०० साल की गुलामी भूल नहीं जायेंगे ...............आप तो बस राखी टैक्स भी लगा दो आखिर आपके देश में राखी बांध कर देश की शाशन व्यवस्था और पोलिस व्यवस्था की सीधे खिल्ली उड़ाते है .....और टैक्स लगाने का फायदा देखिये देश को पैसा मिलने लगेगा और क्या पता कल रोज नेताओ की तरह गिर रूपया कुछ शर्म खा जाये और ऊपर उठने की कोशिश कर ले ............क्या मैं गलत कह रहा हूँ आखिर आप देश को चलाने वाले क्या नहीं कर सकते ये प्रजा वजा क्या है ये तो कीड़े मकोड़े है जब चाहिए मसल दीजिये ................इनको गरिमा पूर्वक जीने का अधिकार कहा है सारी गरिमा तो नेताओ के पास होनी चाहिए और हो भी क्यों न कोयल घोटाला , चारा , पशु , राष्ट्र मंडल खेल और २ जी अब कितने गिनाऊ ..इन घोटालो के कारण ही तो आप गरिमा मय दिखाइए देते है ......खैर इस समय देश को बचाइए और राखी टैक्स को लगा कर बीच चौराहे पर रुपये के बलात्कार ( वैसे अभी देश में गे संस्कृति को क़ानूनी मान्यता मिली नहीं है ) को रोकिये लोगो बस में ट्रेन जाने डरने लगे है क्योकि रुपये के साथ जिस तरह इस देश में हो रहा है उसके बाद तो हर भारतीय को कल से डर लगने लगा है ....क्या आपको डर नहीं लग रहा ( इसको व्यंग्य समझ कर पढ़ा जाये )
ReplyDeleteबित्ता बित्ता बढ़ रहा, घाटा नित वित्तीय ।
गिरती मुद्रा देख के, जन-मुद्रा दयनीय ।
जन-मुद्रा दयनीय, नहीं लत-हालत बदले ।
दल दल दले-दलान, देश में ऊँचा पद ले ।
शास्त्री अर्थ अनर्थ, गिरेंगे देखो कित्ता ।
नेता नापे मील, रुपैया बित्ता बित्ता।।
गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल |
रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल |
पाए कौन निकाल, बहे दल-दल में नारा |
मगरमच्छ सरकार, अनैतिक बहती धारा |
घटते यहाँ गरीब, देखिये फिर भी तुर्रा |
पानी में दे ठेल, भैंसिया फिर तू गुर्रा ||
उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।
आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।
गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।
डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए ।
बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े ।
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥
गिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार |
जितना यह सरकार, नरेगा नरक मचाये |
बस पनडुब्बी रेल, मील मिड डे भी खाए |
लेता फ़ाइल लील, सदन में भुक्खड़ फिरता |
मँहगाई में डील, रुपैया नेता गिरता ||
रोके से ना रोकड़ा, ले रुकने का नाम ।
रुपिया रूप कुरूप हो, मचा रहा कुहराम ।
मचा रहा कुहराम, हुआ अब राम भरोसे ।
मँहगाई की मार, गरीबी जीवन कोसे ।
कह गरीब के साथ, हाथ नित बम्बू ठोके ।
डालर हँसता जाय, रहे पर रुपिया रो के ॥